*मन की व्यथा*
*मन की व्यथा*





 

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है।

वक़्त से पहले समझदार हो गए है

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है।

अपना जीवन जिन पर 

कर दिया हमने न्योछावर

उन बच्चों के लिए हम

बोझ हो गए है 

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है।

कभी छोटे थे तब लड़ते थे 

माँ मेरी है माँ मेरी है 

पता न लगा कब माँ को तेरी 

कहने लगे है

हां मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है ।

 

हर बात मुझसे पूछते थे

हर बात मुझे बताती थे 

क्या है अच्छा क्या बुरा है 

सब मुझसे ही सीखते  थे 

आज मुझे वही सब सिखाने लगे है

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है।

 

अंधेरे में जाने से डरते थे जो

अकेले पूरी दुनिया घूमने लगे है 

है मेरे बच्चे अब बड़े हो गए हैं।

 

छोटी सी गलती पर जो 

नज़रे झुका लेते थे।

लाख पाप करके भी 

मुझे आंखे दिखाने लगे है 

हाँ मेरे बच्चे अब बड़े हो गए है ।

 

मजबूर हूँ मैं पर नादान नही हुँ

उनकी हरकतों से मैं अनजान भी नही हु

बस डरता हूँ कैसे वो नज़रे मिलाएंगे

बस डरता हूँ वो कैसे जवाब देंगे

सब कुछ देख जानकर भी हम चुप रहने लगे है 

क्यों कि अब हमारे बच्चे बड़े हो गए है ।


प्राजक्ता डॉन गोधा 

दुर्ग छत्तीसगढ़