मरुस्थलीकरण और सूखा दुनियां के समक्ष बड़े खतरे


        (बाल मुकुन्द ओझा)


मरुस्थल की चुनौती से निपटने के लिए समूची दुनियां के देश एकमत है। विश्व के समक्ष यह एक बड़ी समस्या है जो दिन प्रतिदिन गहराती जा रही है। हमार लाख प्रयासों के बावजूद मरुस्थल का फैलाव रोका नहीं जा सका है। इस समस्या की जड़ में एक वजह मानवजनित कारणों को बताया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया हर साल 24 अरब टन उपजाऊ भूमि खो देती है। भूमि की गुणवत्ता खराब होने से राष्ट्रीय घरेलू उत्पाद में हर साल आठ प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। भूमि क्षरण और उसके दुष्प्रभावों से मानवता पर मंडराते जलवायु संकट के और गहराने की आशंका है। मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखा बड़े खतरे हैं जिनसे दुनिया भर में लाखों लोग, विशेषकर महिलाएं और बच्चे, प्रभावित हो रहे हैं। इससे निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों की महती जरुरत है।
मरुस्थल या रेगिस्तान ऐसे भौगोलिक क्षेत्रों को कहा जाता है जहां जलपात (वर्षा तथा हिमपात का योग) अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा काफी कम होती है। मरुस्थलीकरण की परिभाषा के अनुसार यह जमीन के खराब होकर अनुपजाऊ हो जाने की ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जलवायु परिवर्तन तथा मानवीय गतिवधियों समेत अन्य कई कारणों से शुष्क, अर्द्ध-शुष्क और निर्जल अर्ध-नम इलाकों की जमीन रेगिस्तान में बदल जाती है। इससे जमीन की उत्पादन क्षमता में कमी और ह्रास होता है। एशियाई देशों में मरुस्थलीकरण पर्यावरण सम्बन्धी एक प्रमुख समस्या है। मरुस्थलीकरण शुष्क, अर्द्ध शुष्क और शुष्क उप-आर्द्र जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भूमि का क्षरण है। मुख्य रूप से, यह मानवीय गतिविधियों और फिर जलवायु परिवर्तन के कारण होता है। इसका मतलब मौजूदा रेगिस्तानों का विस्तार नहीं है, बल्कि यह शुष्क भूमि पारिस्थितिक तंत्र, वनों की कटाई, अधिक चराई, खराब सिंचाई कार्य प्रणाली आदि के कारण होता है जो भूमि की उत्पादकता को प्रभावित करता है।
 भारत के नागरिक संगठनों के प्रतिनिधि के रूप में  संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन की और से बुरकिना फासो की राजधानी वोगेडोगु (पश्चिमी अफ्रीका) में 18 से 22 जून, 2019 तक आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन डेजर्टिफ एक्शन 2019 में भाग लेकर लौटे  राजस्थान के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता भवानी शंकर कुसुम का कहना है  मानव स्वास्थ्य प्र प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना साल 2030 तक भूमि क्षरण प्रक्रिया को पूरी तरह थामना बेहद जरूरी है। कुसुम ने बताया इस तरह की कार्यशालाओं के आयोजन का मुख्य उद्देश्य यूएनसीसीडी से जुड़े देशों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना तथा उनके द्वारा भूक्षरण रोकने के उपायों की रिपोर्ट हासिल करना है। 
संयुक्त राष्ट्र मरूस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन (यूएनसीसीडी) का 14वां अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आगामी 2 से 13 सितम्बर, 2019 तक भारत सरकार के आतिथ्य में नई दिल्ली में होने जा रहा है। सम्मेलन में नागरिक संगठनों  तथा गैर सरकारी संगठनों  की सक्रिय भागीदारी के लिये यूएनसीसीडी सचिवालय (बोन, जर्मनी) तथा भारत सरकार के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परियोजना मंत्रालय ने भवानी शंकर कुसुम को राष्ट्रीय प्रतिनिधि नियुक्त किया है। दो सप्ताह तक देश  की राजधानी में होने वाले इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में दुनियां  के 197 देशों  के राष्ट्राध्यक्ष, राजनयिक, नागरिक संगठन तथा मीडिया के लगभग 5000 प्रतिनिधि भाग लेंगे।
नई दिल्ली में आयोजित होने वाले समारोह में भारत ने सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर की। वर्ष 2019 के लिये इसकी थीम  लेट्स ग्रो द फ्यूचर टुगेदर है। इसमें भूमि से संबंधित तीन प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है सूखा, मानव सुरक्षा और जलवायु। मरुस्थलीकरण की चुनौती से निपटने के लिये अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह अभियान 25 साल पहले शुरू किया गया था। मानव स्वास्थ्य प्रर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना साल 2030 तक भूमि क्षरण प्रक्रिया को पूरी तरह थामना बेहद जरूरी है। 
भारत में भूमि क्षरण का दायरा 96.40 मिलियन हेक्टेयर है जो कि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 29.30 प्रतिशत है। देश में प्रति मिनट 23 हेक्टेयर शुष्क भूमि सूखे और मरुस्थलीकरण की चपेट में आ जाती है जिसकी वजह से 20 मिलियन टन अनाज का संभावित उत्पादन प्रभावित होता है। देश का 70 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र शुष्क भूमि के रूप में है जबकि 30 प्रतिशत जमीन भूक्षरण और 25 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया से गुजरती है। भारत में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र की लगभग 30ः भूमि क्षरण से प्रभावित है, भारत के पास उच्च हिस्सेदारी है और वह इस अभिसमय के प्रति दृढ़ता से प्रतिबद्ध है। भारत सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएँ शुरू की गई हैं जैसे  प्रधानमंत्री आवास बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना, मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना  प्रति बूंद अधिक फसल, आदि। ये सब भूमि क्षरण को कम करने में मदद कर रहे हैं।