नहीं रहीं आधुनिक दिल्ली की शिल्पकार













                         शीला दीक्षितजी को भावभीनी श्रद्धांजलि








(राकेश रमण)

लगातार तीन बार  दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती शीला दीक्षित के निधन की खबर आज जिसने भी सुनी वह सन्न रह गया। सदमे में आ गया। सहसा यकीन नहीं हुआ किसी को इस खबर की सत्यता पर। आखिर कैसे यकीन किया जा सकता था कि ऐसी जीवट वाली महिला जिसने उम्र के आखिरी पड़ाव पर आकर भी थकने या ठहरने का कोई संकेत दिये बिना अचानक हमारे बीच से चला जाएगी। उनके जाने के बारे तो सोचा भी नहीं जा सकता था बल्कि उन्होंने तो अब नए सिरे से दिल्ली में कांग्रेस को दोबारा खड़ा करने का अभियान अपने हाथों में लिया था। अपने इस अभियान में वे पूरी तरह जुटी हुई थीं और इस राह की अंदरूनी बाधाओं से भी लड़ रही थीं और बाहरी चुनौतियों से भी दो दो हाथ कर रही थीं। करीब एक हफ्ते पहले ही दिल्ली के प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने शीला दीक्षित के साथ हुए विवाद के बाद कहा था कि आपकी तबियत खराब है, आपको आराम की जरूरत है। लेकिन आराम के नाम से भी चिढ़नेवाली शीला ने राजनीतिक सक्रियता में कोई कमी नहीं आने दी और दिल्ली में कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लाने के अपने सपने को साकार करने के लिये वे चाको से भी भिड़ गईं। यहां तक कि बीते मंगलवार को प्रदेश प्रभारी पीसी चाको ने तीनों कार्यकारी अध्यक्षों के अधिकार बढ़ाए तो प्रदेश अध्यक्ष शीला ने चाको समर्थक कहे जानेवाले कार्यकारी अध्यक्ष हारून यूसुफ और देवेंद्र यादव के पर कतरते हुए यह जता दिया कि दिल्ली की राजनीति में वे किसी का भी दखल स्वीकार या बर्दाश्त नहीं करेंगी। उनका मकसद साफ था और रणनीति भी पूरी तरह स्पष्ट और आक्रामक। दिल्ली के आम लोगों का झुकाव भी उनकी ओर बढ़ रहा था और उन पर आम लोगों के यकीन और भरोसे का पुराना दौर लौटने की ओर अग्रसर दिख रहा था। लेकिन सांसों ने उनका साथ नहीं दिया और दिल का दौरा पड़ने के बाद एक ही झटके में काल ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया। कपूरथला में जन्म होने के कारण पंजाब की बेटी और उन्नाव में ससुराल होने की वजह से उत्तर प्रदेश की बहू कहलानेवाली आधुनिक दिल्ली की शिल्पकार शीला दीक्षित का अचानक ही हमारे बीच नहीं रहना यकीकन एकबारगी यकीन करने लायक खबर हो भी नहीं सकती थी। हालांकि केरल की राज्यापाल रह चुकीं शीला 81 वर्ष की थीं और बीते काफी समय से उनकी तबियत खराब चल रही थी। तकरीबन दस दिनों तक भर्ती रहकर इलाज के बाद बीते सोमवार को ही वह अस्पताल से वापस घर लौटी थीं। लेकिन आज सुबह पेसमेकर के ठीक से काम नहीं करने के कारण उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें फौरन आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। बताया जाता है कि आईसीयू में ही इलाज के दौरान उन्हें दिल का दौरा पड़ा और डाॅक्टरों के अथक प्रयासों के बावजूद भी उन्हें बचाया नहीं जा सका। शीला दीक्षित के निधन की खबर सामने आते ही राजनीतिक गलियारों से लेकर आम लोगों के बीच भी शोक की लहर दौड़ गई और सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर संवेदनाओं का तूफान दिखाई पड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शीला दीक्षित के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए उनके साथ अपनी एक तस्वीर भी ट्वीट की है। दिल्ली की प्रगति में उनके उल्लेखनीय योगदान को याद करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने उन्हें बेहद मिलनसार व ऊर्जावान नेत्री बताया है। उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने भी उनके निधन पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वे अच्छी प्रशासक थीं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित के निधन पर संवेदना जाहिर करते हुए ट्वीट करके कहा है कि यह दिल्ली के लिए बहुत बड़ी क्षति है और उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। निवर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने शीला दीक्षित को कांग्रेस की प्यारी बेटी करार देते हुए अपने शोक संदेश में कहा है कि शीला से उनका बेहद गहरा व अपनापन का आत्मीय रिश्ता था। आज दोपहर के वक्त शीला दीक्षित के निधन की खबर सार्वजनिक होते ही हर खासो-आम के बीच शोक की लहर दौड़ गई। वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से सांसद चुने जाने के बाद वर्ष 1986 से 1989 के दौरान केन्द्र सरकार में पहले संसदीय कार्य राज्यमंत्री और बाद में प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री रह चुकीं शीला दीक्षित के निधन पर समाज के सभी वर्ग के लोगों, सभी पार्टियों के नेताओं, जनप्रतिनिधियों, केन्द्रीय मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, कलाकारों, लेखकों, खिलाड़ियों व जनसेवकों ने अपनी शोक संवेदनाएं प्रकट की हैं। अपने शोक संदेश में सबने एक स्वर में उन्हें आधुनिक दिल्ली की मुख्य शिल्पकार करार देते हुए उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुए कहा है कि दिल्ली के विकास में उनके योगदान को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। शीला दीक्षित का जीवन ऐसा रहा जिसे वाकई कभी भुलाया नहीं जा सके। एक आदर्श बहू के तौर पर भी उनकी नजीर दी जाएगी, एक आदर्श महिला के तौर पर ही नहीं बल्कि एक आदर्श नेतृत्वकर्ता के तौर पर भी और एक आदर्श संगठनकर्ता के तौर भी वे हमेशा याद की जाती रहेंगी। वह देश की पहली महिला रही हैं जिन्होंने लगातार तीन बार मुख्यमंत्री पद के लिये निर्वाचित हुईं। दिल्ली के राजनीतिक इतिहास सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री पद की जिम्मेवारी संभालनेवाली शीला दीक्षित साल 1998 से 2013 तक लगातार तीन बार दिल्ली की मुख्यमंत्री चुनी गईं। उनके पंद्रह साल के कार्यकाल में ही दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स भी आयोजित हुए थे। उन्हीं के कार्यकाल में दिल्ली को विश्वस्तरीय मेट्रो रेल का तोहफा मिला, दर्जनों फ्लाइओवर बने, दिल्ली परिवहन निगम की बसों को डीजल-पेट्रोल के बजाय सीएनजी से चलाया गया और डीटीसी के बेड़े में हजारों सीएनजी चालित बसें शामिल कर दिल्ली की परिवहन व्यवस्था को सुधारते हुए दिल्ली का चेहरा की बदल दिया गया। 'मेरी दिल्ली मैं ही संवारूं' और 'भागीदारी' सरीखी योजनाएं लागू करके और सत्ता को जमीन से जोड़ते हुए हर मोहल्ले में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन का गठन कराके शीला दीक्षित ने अपने कार्यकाल में आवाम और निजाम के बीच की दूरी को खत्म करने की दिशा में जो ठोस कदम उठाया था उसे हमेशा याद किया जाता रहेगा।