पुस्तक






                      पुस्तक

 

जीवन की पुस्तक खुली, बांचू मैं मुंहजोर।

सात बचन को याद कर, हंसती हूं पुरजोर।।

***

खुलती पुस्तक बांच के,अंदर झांकू खोय ।,

विषय वासना चोलना, अच्छा लगा न मोय ।।

***

पुस्तक संगत साधु की, ज्ञान पिपासा खोल।

गड़बड़ झाला दुनिया का, दो कौड़ी में तौल।।

***

पुस्तक के चंद पेज मां, सार ज्ञान का होय ।

बार-बार उसको पढूं,शंका मन की धोय  ।।

***

स्वर व्यंजन सब साध के, पुस्तक बनी अंजोर।

तुलसी कृत रामायण को, हिन्दू पढ़ते भोर ।।

***

पुस्तक छोटी ही भली, शब्द शब्द हो सार ।

ज्ञान की जोति जल पड़े, मृगतृष्णा को मार।।

***

साखी कबीर नाम की , अंदर झांके ज़ोय।

पानी से तो हिम भया, रहस्यवाद में खोय।।

 

*डॉ रंजना सिन्हा सैराहा*

 सेवानिवृत्त प्राचार्या, 

राज महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय बांदा उ प्र