समृद्धि से सशक्तता की सिद्धि




भारत और भारतीयों की मूलभूत समस्याओं की ओर नजर दौड़ाएं तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि इन सबकी जड़ें कहीं ना कहीं हमारी आर्थिक अशक्तता से ही जुड़ी हुई हैं। कहीं ना कहीं यह संसाधनों की ही कमी है कि हम अपने नागरिकों को ना तो विश्वस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करा पा रहे हैं और ना ही दो वक्त का पौष्टिक भोजन और ना ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षण का माहौल बना पा रहे हैं। देश की अधिकांश आबादी गरीबी के दुष्चक्र में फंस कर पढ़ाई, दवाई, कमाई और सुरक्षा की समस्याओं को सुलझाने में ही जूझ रही है। इसके लिये सरकार को दोषी ठहराकर अपनी जिम्मेवारियों से मुंह मोड़ लेना बेहद आसान है लेकिन इससे निपटने के लिये समग्रता में कोई प्रयास करना उतना ही मुश्किल है। आजादी के बाद से अब तक के कालखंड पर गौर करें तो भारत को आर्थिक महाशक्ति बनाने की दिशा में समग्रता में कभी प्रयास ही नहीं हुआ है। हालांकि इसके लिये कौन जिम्मेवार रहा है और कौन दोषमुक्त है इस पर लंबी बहस की जा सकती है लेकिन सच्चाई यही है कि राजनीतिक नेतृत्व के पास अब तक ऐसा विजन ही नहीं दिखा है जिसे कार्यरूप में परिवर्तित करके आगे बढ़ा जाये। हालांकि देश की आम जनता ने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों का अनुसरण करने में कभी कसर नहीं छोड़ी और इसका प्रमाण लालबहादुर शास्त्री के कार्यकाल में भी दिखा जब देश में अन्न की कमी की समस्या से निपटने के लिये उन्होंने सप्ताह में एक दिन सिर्फ एक वक्त के लिये अन्न का त्याग करने की अपील की तो समूचे देश ने उनका साथ दिया और सोमवार का व्रत करने के लिये पूरा देश आगे आया। इसी प्रकार अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में जब परमाणु परीक्षण हुआ और समूचे विश्व ने हम पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया तब भी अगर भारत में कहीं भी कोई असंतोष नहीं पनपा तो यह आवाम द्वारा आंखें मूद कर निजाम का साथ देने के कारण ही संभव हो सका। यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी ने जब गरीबों को रसोई गैस उपलब्ध कराने के लिये सक्षम वर्ग से सब्सिडी का त्याग करने की अपील की तो लोगों ने बढ़-चढ़ कर सरकार का साथ दिया और इसी का नतीजा है कि उससे हुई बचत से अब तक सात करोड़ घरों में उज्वला योजना के तहत गैस का कनेक्शन उपलब्ध कराया जा चुका है। बात जब स्वच्छता की उठी तो इसमें भी आम लोगों ने सरकार के साथ कांधे से कांध मिलाकर स्वच्छ भारत की परिकल्पना को साकार करने की मुहिम छेड़ दी जिसके नतीजे में आज 98.5 फीसदी घरों में शौचालय उपलब्ध हो चुका है और पूरा देश खुले में शौच से मुक्त होने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसी प्रकार भ्रष्टाचार, आतंकवाद और कालेधन पर निर्णायक प्रहार करते हुए जब सरकार ने नोटबंदी की घोषणा की तो पूरा देश बिना उफ किये इस यज्ञ में सरकार के साथ आकर खड़ा हो गया। कहने का तात्पर्य यह कि आज अगर भारत को विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बनने और तमाम सुख-सुविधाओं से युक्त देश बनने में कामयाबी नहीं मिल पायी है तो इसके लिये आम जनता को कतई दोष नहीं दिया जा सकता है बल्कि इसकी सबसे बडी वजह सत्ता के संचालकों में विजन का अभाव ही रहा है। अगर आंकड़ों और संसाधनों की बात करें तो कोई कारण नहीं है कि भारत विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बन कर ना उभर सके। आज अगर अमेरिका निर्विवाद रूप से विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति बन कर सामने आया है उसके पीछे वह आर्थिक और सैन्य ताकत ही है जिसके समक्ष विश्व के सभी देशों को उसके सामने नतमस्तक होना पड़ता है। विश्व के सभी देश अगर अमेरिका से दबते हैं तो उसके दो ही कारण हैं। पहला सैन्य कार्रवाई का डर और दूसरा आर्थिक प्रतिबंधों का डर। अमेरिका इस स्थिति में है कि अगर वह किसी पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दे तो उसकी पूरी अर्थव्यवस्था ही चरमरा जाए। सैन्य कार्रवाई करके वह किसी को भी नेस्तोनाबूत कर सकता है। इन दोनों भय से निजात पाने का एक ही उपाय है कि हम भी आर्थिक महाशक्ति के रूप में खुद को इतना मजबूत करें कि हमारे द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने से दूसरों की अर्थव्यवस्था चरमराने उठे। यह करने में हम सक्षम भी हैं और संसाधन युक्त भी। कमी है तो सिर्फ उस इच्छाशक्ति को जगाने की और लक्ष्य तक पहुचाने में सक्षम योजनाओं की। इस लिहाज से आज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी में भाजपा के सदस्यता अभियान की शुरूआत करते हुए जो बातें कही हैं वह बेहद ही महत्वपूर्ण हैं। भारत को हमेशा से 'सादा जीवन उच्च विचार' की अवधारणा पर अमले करने का पाठ पढ़ाया गया और फकीरी को मौज व गर्व का विषय बना दिया गया। बचपन से ही पढ़ाया गया कि जहां आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान। लेकिन संतोष धन तब ठीक है जब हर तरह से सम्पन्नता उपलब्ध हो। मजबूरन भूखे रहने को व्रत-उपवास का नाम कैसे दिया जा सकता है। लिहाजा आज जिन समस्याओं से देश को जूझना पड़ रहा है उससे निपटने के लिये आर्थिक समृद्धि आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य है। इसके लिये आवाम और निजाम को कांधे से कांधा मिलाकर ही आगे बढ़ना होगा। सही कहा है मोदी ने कि कुएं में पानी होगा तो बाल्टी में आएगा ही। केक का आकार बड़ा होगा तभी सबको उसका बड़ा हिस्सा मिलेगा। लिहाजा देश की अर्थव्यवस्था के आकार को 5 ट्रिलियन डाॅलर का आकार देकर विश्व की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बनने के इस यज्ञ में सबको अपनी भूमिका निभानी होगी। इसकी जमीन तो पहले ही तैयार हो चुकी है और अब उससे आगे छलांग लगाने की बारी है। इस लिहाज से देखें तो अब जबकि तिलहन को छोड़कर भोजन के मामले में देश आत्मनिर्भर हो चुका है, आवास की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में युद्ध स्तर पर काम जारी है, पानी-बिजली की किल्लत को दूर करने की दिशा में भी मजबूती से कदम उठाया जा रहा है और ऊर्जा व परिवहन से जुड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये भी परिणामदायक योजनाएं अमल में लाई जा रही हैं तब दुनिया के सबसे युवा देश को आसमान में ऊंची छलांग लगाने और 5 ट्रिलियन डाॅलर की अर्थव्यवस्था बनने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है।