शर्म उनको मगर नहीं आती




संसद में आजम खान ने जो कृत्य किया है वह जितना निंदनीय और शर्मनाक है उससे कहीं अधिक भर्तस्नायोग्य है इस पूरे मसले पर समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव का बेशर्म व संवेदनहीन रवैया। आजम की लानत मलामत तो संसद से लेकर सड़क तक हो ही रही है और होनी भी चाहिये। बल्कि पहले केन्द्रीय कानूनमंत्री रविशंकर प्रसाद और बाद में लोकसभा ओम बिड़ला ने उन्हें माफी अथवा सजा में से किसी एक विकल्प का चयन करने की जो छूट दी है उसके वे हकदार ही नहीं हैं। उन्हें तो सीधे तौर पर पूरे सत्र के लिये सदन की सदस्यता से निलंबित किया जाना चाहिये और साथ ही यह शर्त भी जोड़ देनी चाहिये कि अगर भविष्य में उन्होंने अपने वचन या कर्म से मर्यादा की लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करने की गलती की तो उसके बाद उन्हें संसद की सदस्यता से ही निष्कासित कर दिया जाएगा। इससे कम सजा तो होनी ही नहीं चाहिये उस दुष्कृत्य के लिये जो उन्होंने ना सिर्फ पूरी बेशर्मी व बेगैरती के साथ सदन की अध्यक्षता कर रही रमादेवी के साथ किया। आजम इसलिये भी माफी के लायक नहीं हैं क्योंकि जब उनके द्वारा रमादेवी की शान में गुस्ताखी किये जाने के बाद उन्हें अपने शब्द वापस लेने के लिये कहा गया तो उन्होंने इसे अपनी तौहीन करार देते हुय यह कह कर सदन से बहिर्गमन कर दिया कि अगर उनके द्वारा बोले गये शब्दों में कुछ भी असंसदीय होगा तो वे इस सदन की सदस्यता से ही इस्तीफा दे देंगे। ऐसे में आजम को माफी मिलनी भी नहीं चाहिये और उन्हें मांगनी भी नहीं चाहिये। बल्कि अगर उन्हें माफी मांगने का निर्देश दिया जा रहा है तो इसका साफ मतलब है कि सभी इस बात पर एकमत हैं कि उन्होंने असंसदीय व अमर्यादित आचरण किया है। ऐसे में अपनी बात पर कायम रहते हुए उन्हें सीधे तौर पर संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे देना चाहिये। लेकिन अगर वे ऐसा ना करें और माफी मांग कर मामले को रफा दफा कराने का प्रयास करें तो उन्हें कम से कम मौजूदा संसद सत्र तक के लिये सदन की सदस्यता से निश्चित तौर पर निलंबित कर दिया जाना चाहिये ताकि यह मामला भविष्य के लिये नजीर बन जाये और अनुराग ठाकुर के शब्दों में कहें तो ऐसा इंसाफ हो जिसे सिर्फ सत्रहवीं लोकसभा में ही नहीं बल्कि सौवीं लोकसभा में भी याद किया जाये। हालांकि बेहद सुकून की बात है कि इस पूरे मसले पर समूचा सदन एकजुट नजर आया है और जितना आक्रोश सत्ता पक्ष में था उससे कतई कम विपक्ष में नहीं था। तमाम राजनीतिक दलों ने आज शून्यकाल में इस मसले पर आजम को जमकर धोने में कोई कसर नहीं छोड़ी और सर्वसम्मति से लोकसभा अध्यक्ष से यह मांग की गई कि आजम को कतई माफ नहीं किया जाए बल्कि उन्हें ऐसी सख्त सजा दी जाये ताकि भविष्य में ऐसी गुस्ताखी करने की कोई हिम्मत भी ना कर सके। लेकिन इस पूरे मामले को लेकर कुछ भी फैसला करने का निर्णायक अधिकार सिर्फ ओम बिड़ला के हाथों में ही है लिहाजा वे जो भी फैसला लेंगे उसके अलावा इसमें कुछ भी कहना, जोड़ना या घटाना किसी के लिये भी संभव नहीं है। लिहाजा उम्मीद ही की जानी चाहिये कि वे आजम को उसके दुष्कृत्य की पूरी और कड़ी से कड़ी सजा देने में कतई कोताही नहीं बदतेंगे। लेकिन इस सबसे अलग जिस बात ने सबसे अधिक निराश किया है वह इस पूरे मामले में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव का संवेदनहीन रवैया। या तो वे इस मामले की गंभीरता को समझ नहीं पाए हैं या फिर किसी मजबूरी के कारण समझना ही नहीं चाह रहे हैं। वजह चाहे जो भी हो, लेकिन सच यही है कि अखिलेश में अगर आजम के खिलाफ कुछ कहने या करने की हिम्मत नहीं है तो कम से कम वे संसद में दिखी सियासी सर्वानुमति का सम्मान करते हुए आजम के विवादास्पद बयान से किनारा तो कर ही सकते थे। इसे वे आजम का निजी बयान बताकर खुद को और अपनी पार्टी को उससे अलग कर सकते थे। लेकिन ऐसा करने के बजाय जिस तरह से ना सिर्फ उन्होंने आजम के बयान को जायज ठहराते हुए उनकी मंशा को पाक-साफ, उनके शब्दों को संसदीय और उनके भाव को निर्दोष करार देते हुए उन्हें सियासी साजिश के शिकार के तौर पर प्रस्तुत करने की पहल की है उससे यह समझना मुश्किल है कि अपने दुष्कृत्य के लिये आजम अकेले ही जिम्मेवार हैं या उनको इसी छवि में बनाए रखने को लेकर सपा की भी सहमति है। हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब महिलाओं के प्रति किये गये अपराध को लेकर सपा के शीर्ष संचालक परिवार की ओर से बेशर्म संवेदनहीनता का मुजाहिरा किया गया हो। बल्कि ऐसी ही बेशर्मी सपा का मुखिया रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने तब दिखाई थी जब अखिलेश की सरकार के दौर में सपा के परंपरागत मतदाता माने जानेवालों पर थोक के भाव में बलात्कार, दुष्कर्म और महिलाओं के साथ तमाम तरह के अमानवीय अपराध किये जाने की घटनाएं सामने आ रही थीं। तब उन्होंने सार्वजनिक मंच से झल्लाते हुए कहा था कि लड़के हैं, गलती हो जाती है, तो क्या इसके लिये उन्हें फांसी पर टांग दिया जाए? एक बार फिर अखिलेश ने वैसी ही संवेदनहीनता और बेशर्मी दिखाई है। यह जानते हुए कि आजम ने कोई सामान्य अपराध नहीं किया है। सच कहा है कि स्मृति ईरानी ने कि अगर ऐसा अपराध किसी भी सामान्य आदमी ने किसी सामान्य महिला के साथ भी किया होता तो उसे पुलिस की कार्रवाई का सामना करना पड़ता। लेकिन आजम ने जो किया है वह तो कहीं बड़ा है। इसकी कोई तुलना ही नहीं हो सकती। उन्होंने तो लोकतंत्र के मंदिर के संचालक पर लिंगभेद जनक व घोर अपमानजनक टिप्पणी करने की गुस्ताखी की है। यह सिर्फ भारत की किसी महिला का मसला नहीं है बल्कि हर मां-बहन के सम्मान से जुड़ गया है। लिहाजा इसकी सजा भी उसी हिसाब से होनी चाहिये और एक ओर आजम को माफ नहीं किया जाना चाहिये बल्कि जनता को भी सपा सुप्रीमो की बात को अक्षरशः याद रखना चाहिये।