उच्च रक्तचाप वाले लोगों में से केवल 13 फीसदी ही बताये अनुसार दवा लेते हैं-डॉ. राजीव राठी 

नई दिल्ली। एक नये अध्ययन से संकेत मिला है कि हाइपरटेंशन या उच्च रक्तचाप वाले 50 प्रतिशत से अधिक भारतीय अपनी स्थिति से अनजान हैं। इसके अलावा, 7 में से 1 से कम (यानी 13 प्रतिशत) ही रक्तचाप कम करने वाली दवा लेते हैं, और 10 में 1 से कम (18 प्रतिशत) ही स्थिति पर नियंत्रण हासिल करने में सक्षम हैं। समय की मांग है कि उच्च रक्तचाप, इसके कारणों और इस तथ्य के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाए कि यदि इसका इलाज न किया जाये, तो यह अन्य अंगों को नुकसान पहुंचा सकता है।


हाइपरटेंशन को ऐसे रक्तचाप के रूप में परिभाषित किया गया है जो 140/90 मिमी एचजी के अनुशंसित स्तर से लगातार अधिक होता है। लक्षणों की कमी के कारण, यह स्थिति वास्तविक शुरुआत के कुछ साल बाद ही पता चल पाती है। इसलिए एहतियाती उपाय जरूरी हैं, विशेषकर उन लोगों में जिनके परिवार में पहले भी किसी को यह परेशानी रह चुकी हो।


इस बारे में बात करते हुए, मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के ट्रांस-रेडियल इंटरवेंशनल प्रोग्राम के डायरेक्टर और हेड, डॉ. राजीव राठी ने कहा, “उच्च रक्तचाप एक साइलेंट किलर है और एक ऐसी स्थिति है जो समय के साथ हृदय, मस्तिष्क, गुर्दों व आंखों जैसे महत्वपूर्ण अंगों को प्रभावित कर सकती है। इन रोगियों में, हृदय को अधिक प्रतिरोध के खिलाफ काम करना होता है, जिससे उस पर अधिक दबाव पड़ता है। यह आगे चलकर हृदय को बड़ा और कमजोर करता है, जिसके परिणामस्वरूप हार्ट फेल्योर हो सकता है। उच्च रक्तचाप से लकवा (स्ट्रोक) और दिल के दौरे का खतरा बढ़ जाता है। बहुत बार तो, इस बीमारी का पता तब चलता है जब हार्ट फेल्योर, दिल के दौरे या पक्षाघात के कारण रोगी को अस्पताल लाया जाता है। इसके लिए, उच्च रक्तचाप को एक साइलेंट किलर भी कहा जाता है। इसलिए नियमित स्वास्थ्य जांच करवाते रहना अनिवार्य है, ताकि पता रहे कि आपका रक्तचाप नियंत्रण में है या नहीं। दवा के शेड्यूल का पालन करना चाहिए, जिसके विफल रहने पर यह स्थिति उपरोक्त जटिलताओं का कारण बन सकती है।”


एक उदाहरण 45-वर्षीय एक व्यक्ति का है, जिसे बेहोश हालत में अस्पताल लाया गया था। उसके शरीर के दाहिनी ओर कोई गति नहीं थी। उसकी मेडिकल हिस्ट्री ने संकेत दिया कि उसे पिछले 7 वर्षों से उच्च रक्तचाप था, लेकिन कुछ समय बाद ही उसने दवा लेना बंद कर दिया था। चूंकि उसे लगा कि अब उसका रक्तचाप नियंत्रित है। जबकि शुरू में सब कुछ ठीक लग रहा था, एक दिन अचानक सिरदर्द शुरू हो गया, जिसके बाद वह बेहोश हो गया। सीटी स्कैन से संकेत मिला कि उसे ब्रेन हेमरेज हुआ है और शरीर का दाहिना हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया है।


डॉ. राजीव राठी ने आगे कहा, ”भारत में लगभग 2.6 लाख लोग उच्च रक्तचाप के कारण मर जाते हैं और यह देश की सबसे पुरानी बीमारी बन गयी है। उच्च रक्तचाप और इसके कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के प्रबंधन और रोकथाम में जीवनशैली में बदलाव करना बेहद महत्वपूर्ण है।”


उच्च रक्तचाप के उपचार में जीवनशैली में बदलाव तथा दवाइयां शामिल हैं। मरीज को यह याद रखना चाहिए कि दवाओं से, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित तो किया जा सकता है, लेकिन इस स्थिति को ठीक नहीं किया जा सकता। यदि कोई व्यक्ति दवाएं लेना बंद कर देता है, तो उसका रक्तचाप बढ़ने की संभावना है। इस तरह बढ़ा रक्तचाप शरीर के सभी अंगों, विशेष रूप से मस्तिष्क और हृदय के लिए बहुत खतरनाक है।


कुल 6,13,815 रोगियों के एक विस्तृत अध्ययन से पता चला है कि एचजी सिस्टोलिक रक्तचाप में 10 मिमी की कमी लाने से भी हार्ट फेल्योर, ब्रेन हेमरेज, दिल का दौरा पड़ने और मौत की घटना में उल्लेखनीय कमी आ सकती है। इस अध्ययन ने बिना किसी संदेह के रक्तचाप को नियंत्रित करने के महत्व और आवश्यकता को साबित किया है।


यदि किसी मरीज को दिल का दौरा पड़ता है, तो हृदय की मांसपेशियों को हुए नुकसान को कम करने या उससे बचने के लिए, उसका एंजियोप्लास्टी द्वारा तुरंत इलाज किया जाना चाहिए (यदि यह सुविधा उस स्थान पर उपलब्ध है)। उपचार के इस तरीके में, ताजा अवरुद्ध धमनी, जिसके कारण दिल का दौरा पड़ा हो, को अच्छी गुणवत्ता वाले स्टेंट डालकर खोला जा सकता है। स्टेंट की कीमत में कमी आई है और दवा-लेपित स्टेंट भी अब उसी कीमत पर उपलब्ध हैं, यहां तक कि अच्छी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के भी।