विधार्थियों के स्वर्णिम भविष्य को संवारते हैं खेल

(बाल मुकुन्द ओझा)


किसी ने सही कहा है शिक्षा से व्यक्ति विद्वान बनता है तो खेलकूद से स्वस्थ और बलवान । शिक्षा और खेलकूद का चोली दामन का सम्बन्ध बताया जाता है। प्राचीन काल में गुरुकुल में शिक्षा के साथ खेलकूद की अनिवार्य व्यवस्था थी। अर्जुन जैसे खिलाडी गुरुकुल की उपज थे। वर्तमान में खेलकूद का हमारे जीवन में वो स्थान नहीं रहा जो पहले था। आज विधालयों में खेलकूद की उचित और पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। स्कूल है तो खेल मैदान नहीं है और खेल मैदान है तो खेल का अध्यापक उपलब्ध नहीं है। यदि किसी विधालय में खेल मैदान है तो अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुका है। विधार्थी काल में खेल ही वह चीज है जो उसे शारीरिक दृष्टि से न केवल पुष्ट करता है अपितु अनुशासन में रहने की सीख भी देता है। मगर विधार्थी की रूचि भी खेलों में होनी चाहिए जो देखने को नहीं मिल रही है। देखा जाता है विधालय में खेल का पीरियड आते ही विधार्थी के हाथ में मोबाईल आ जाता है। विधार्थी खेल के स्थान पर मोबाईल से खेलना शुरू हो जाता है। आज उसने खेल के स्थान पर इंटरनेट को अपना मित्र बना लिया है। उसके लिए खेल दूसरे दर्जे का हो गया है। खेल विधार्थियों को कई प्रकार की बीमारियों से बचाता है और उसके शरीर को स्वस्थ रखता है। यदि विधार्थी ने किसी भी कारण से खेल को त्याग दिया तो वह अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारेगा।
खेलों से एक नहीं अपितु अनेक लाभ हैं। इनका हमारे जीवन में विशिष्ट स्थान है। शारीरिक और मानसिक स्थिति कायम रखने के लिए खेलों का बड़ा महत्त्व है। इसलिए प्राचीन काल से ही खेलों को महत्त्व दिया जाता है। विद्यार्थी गुरुकुल में पठन पाठन के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खेलों में भी पारंगत होते थे। खेलों से केवल शरीर ही पुष्ट नहीं बनता अपितु इससे मस्तिष्क और मन का भी पर्याप्त विकास होता है। सच है मन और शरीर स्वस्थ और प्रसन्न चित रहने पर ही हमारी पढ़ाई-लिखाई ठीक तरह से हो सकती है और हमारा भविष्य सुन्दर और सुखी बन सकता है। खेलों से विद्यार्थियों में अनुशासन, प्रतिस्पर्धा, परिश्रम की भावना तो उत्पन्न होती है, जो बच्चों को अपने जीवन के लक्ष्य को हासिल करने में सार्थक सिद्ध होती है। खेलों से मानव में धैर्य सहनशीलता और मानवीय गुणों का विकास होता है। खेल के अनेक फायदे है। इससे बच्चे में खिलाड़ी भावना आती है। मस्तिष्क और सामाजिक कौशल का विकास होता है, बच्चा टीम वर्क सीखता है, अच्छे अंग विन्यास (मुद्रा) के विकास में सहायक, स्वस्थ हृदय और स्वस्थ श्वसन, इम्यूनिटी के लिए स्पोर्ट्स फायदेमंद हैं, प्रतियोगी भावना के साथ खिलाड़ी भावना आती है, जीत का मूल्य समझता है। खेल सभी के व्यस्त जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है। खास कर छात्र जीवन में। खेल कूद हर व्यक्ति के जीवन का एक अहम हिस्सा है, जिस तरह पढ़ना, कमाना, वक्त पर खाना और सोना हमारी सेहत एवं जीवन के लिए आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार खेलों की उपयोगिता भी विद्यार्थी के जीवन में अति महत्वपूर्ण है ।
खेल प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का एक हिस्सा है और यह उतना ही जरूरी है जितना शरीर के लिए भोजन। जिस प्रकार शरीर को नई ऊर्जा देने के लिए भोजन की जरूरत पड़ती है उतना ही ऊर्जा और ताजगी खेल शरीर को देते हैं। विद्यार्थी जीवन में मानसिक बोझ और शारीरिक थकान को हलका करने का एक साधन है तो वह है खेल और यह खेल हमारे शारीरिक क्रिया कलापों से जुड़े हो यह बेहद जरूरी है। क्यों कि आज यदि मनोरंजन की बात आती है तो केवल मोबाइल और कम्प्यूटर को मुख्य साधन माना जाता है जिनसे एक अकेला व्यक्ति भी अपना मनोरंजन कर सकता है। लेकिन यह मनोरंजन केवल हमारे दिमागी थकान को कुछ समय के लिए तो दूर कर देते हैं लेकिन इनसे हमें शरीर और मन में जो ऊर्जा मिलनी चाहिए थी वह नहीं मिल पाती है।
आज हम देखते हैं कि प्रत्येक विद्यार्थी अपनी पढ़ाई को लेकर मानसिक तनाव से गुजर रहा है इतना ही नहीं वह इस तनाव की वजह से स्वयं को ज्यादा समय तक पढ़ाई से जोड़ भी नहीं पाता है और एक किताबी कीड़ा बना रहता है तो इसका साफ कारण हमारी मानसिक थकान ही है। उस थकान और तनाव को दूर करने के लिए खेलों से जुड़े रहना बहुत जरूरी है।