आर्थिक और सियासी मोर्चे पर मोदी सिखाएंगे चीन को सबक  

(बाल मुकुन्द ओझा)


मोदी सरकार चीन से निपटने के स्थाई तौर तरीकों पर गहन मंथन में जुटी है। मंथन की यह प्रक्रिया सरकार, पार्टी और संघ के स्तर पर गंभीरता से की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने देशी और विदेशी मित्रों और सलाहकारों से भी रणनीतिक चर्चा में जुटे है। डोकलाम विवाद के बाद मोदी सरकार चीन से अपने सम्बन्ध सुधारने के लिए एक कदम आगे बढ़ी थी मगर चीन गाहे बगाहे हर बार आतंकी शक्तियों का खुले आम समर्थन कर भारत के हितों पर चोट पहुँचाने की हर संभव कोशिश में लगा रहता है। इस बार फिर चीन ने जम्मू और कश्मीर से धारा 370 हटाने के भारत के आंतरिक मामले में अनुचित हस्तक्षेप कर आतंकी पाकिस्तान का साथ देकर अपने भावी मंसूबे स्पष्ट कर दिए। मोदी इस बार आरपार की रणनीति बनाने में जुटे है ताकि रोज रोज की चीन की हिमाकत से निपटा जा सके।
धारा 370 हटाने के भारत के आंतरिक मामले में चीन ने भारत की एकता और अखडता को खंडित करने वाली ताकतों का साथ देकर अपने दूषित चाल, चरित्र और चेहरे को दुनियां के सामने जाहिर कर दिया है। हिंदी चीनी भाई भाई की दुहाई देने वाला चीन बार बार भारत के साथ विश्वासघात करने से बाज नहीं आरहा है। विश्व मंच पर भारत की तरक्की और प्रगति चीन को फूटी आंखे नहीं सुहाती है यह उसके आचरण से स्पष्ट है। भारत की आजादी के बाद से ही चीन लगातार भारत के साथ वैमनष्यता का बर्ताव रखता है यह किसी से छिपा नहीं है। पहले उसने भारत पर हमला किया और हमारी लाखों वर्ग किमी भूमि को दबाया। फिर लगातार सीमा पर अपनी घुसपैठ और मनमानी करता रहा। डोकलाम विवाद में मुंह की खाने के बाद चीन भारत को नीचा दिखाने का हर संभव प्रयास करता रहा है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक और शांतिप्रिय देश की जगह उसे पाकिस्तान जैसा आतंकवादी देश ज्यादा पसंद है जहाँ वह अपनी मनमानी करने को स्वतंत्र है। जब तक चीन की सिट्टी पिट्टी गुम नहीं होगी तब तक वह अपनी गैरवाजिब हरकतों से बाज नहीं आएगा। इसके लिए जरुरी है वैश्विक शक्तियों की एकजुटता। ड्रैगन का मुकाबला करने के लिए सभी लोकतान्त्रिक शक्तियों को एक होकर उसका डरावना चेहरा सब को दिखाना होगा। 
यह बिलकुल साफ है की चीन कभी भारत का हितैषी नहीं रहा है। वह गाहे बगाहे भारत की अस्मिता से छेड़छाड़ करता रहता है। भारत को वैश्विक और घरेलू स्तर पर चीन से निपटने के लिए अपनी नई नीति बनानी होगी। इस नीति में सबसे पहले चीनी सामान का बहिष्कार कर उसे आर्थिक झटका देना होगा। चीनी माल के बहिष्कार की मांग करने वाले लोगों का मानना होता है कि इससे चीन पर दबाव बनाया जा सकता है। अखिल भारतीय व्यापारी महासंघ ने चीनी सामान के बहिष्कार की अपील करते हुए कहा है की चीनी सामान का भारत एक बड़ा बाजार है जिसे बेदखल कर चीन की अर्थव्यवस्था को तकड़ा झटका दिया जा सकता है। खुदरा कारोबारियों के संगठन कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने चीन के सामानों का बहिष्कार करने का आह्वान किया। संगठन ने चीन के सामानों पर 500 प्रतिशत तक सीमा शुल्क लगाने की सरकार से मांग भी की। चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का समर्थन करने पर कारोबारियों के संगठन ने देश भर में व्यापारियों द्वारा चीन के उत्पादों के बहिष्कार का आह्वान करने को लेकर यह अपील की है। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने एक सितम्बर से चीन के सामानों का बहिष्कार करने के लिये राष्ट्रीय मुहिम शुरू करने की भी घोषणा की है। ने कहा कि चीन को हर मामले पर पाकिस्तान का समर्थन करने की आदत हो गई है जो भारत के खिलाफ है और इसलिए अब समय आ गया है जब हमें चीनी वस्तुओं पर अपनी निर्भरता कम करें । 
भारत चीन से सबसे ज्यादा आयात करता है। मोदी सरकार लगातार प्रयास कर रही है की आर्थिक मोर्चे पर चीन से कैसे निपटा जाये। कुछ प्रयास रंग भी लाये है। पिछले वित्त वर्ष 2018-19 में भारत ने चीन के साथ व्यापार घाटे को कम करने में कामयाबी पाई है।  मीडिया रिपोर्टों  के मुताबिक चीन से आयात कम होने की वजह से भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 70 हजार करोड़ रुपये घटकर अब 3.7 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया है।  भारत को यह सफलता अमेरिका और चीन के बीच जारी ट्रेड वार के कारण भी मिली है। रिपोर्टों के मुताबिक 32 मार्च 2019 को खत्म हुए वित्त वर्ष के जारी प्राविजिनल आंकड़ों के मुताबिक भारत से चीन का निर्यात 31 फीसदी बढ़कर 1.2 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया जबकि आयात 8 फीसदी घटकर 4.8 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया।  भारत से चीन को ऑर्गेनिक केमिकल्स, प्लास्टिक रॉ मैटेरियल, कॉटन यार्न के निर्यात से भारत को व्यापार घाटे को कम करने में कामयाबी हासिल हुई है।
 अगर चीन के सामान का बहिष्कार करना है तो खुद के सामान को सस्ता बेचना होगा। उसे लोगों की पहुंच तक ले जाना होगा। लोग खुद-ब-खुद अपने घर का सामान खरीदना शुरू कर  देंगे।