बे-सबब नहीं है यह धमकी






केन्द्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करने की पहल नहीं करने की भारत की स्थापित नीति को लेकर जो बयान दिया है उसे हल्के में कतई नहीं लिया जा सकता। यह बात अगर किसी बड़बोले नेता ने कही होती या छपास की बीमारी से ग्रस्त नेता ने बताई होती तो इसकी अनदेखी की जा सकती थी। लेकिन राजनाथ सिंह मोदी सरकार में औपचारिक तौर पर दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता हैं और भाजपा के सबसे कद्दावर नेताओं में गिने जाते हैं। वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर अटल सरकार में भी केबिनेट मंत्री रहे हैं। उनकी बातें कभी हवा-हवाई नहीं होतीं और वे मोल-तोल कर बोलने के लिये ही जाने जाते हैं। ऐसे में अगर उन्होंने भारत की परमाणु नीति में बदलाव की बात कही है तो इसका साफ मतलब यही है कि कहीं ना कहीं पानी सिर से ऊपर गुजरने की स्थिति दिख रही होगी और उसी को संभालने के लिये उन्होंने यह बात कही है कि भविष्य में भारत की परमाणु नीति में बदलाव भी संभव है। दरअसल परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को लेकर अभी तक भारत की नीति यही है कि हम इस बम का तभी इस्तेमाल करेंगे जब कोई हमारे ऊपर परमाणु हमला करेगा, लेकिन पोखरण में रक्षा मंत्री ने बेलाग व दोटूक शब्दों में कहा है कि अभी तक हमारी परमाणु नीति यही है कि हम पहला इस्तेमाल नहीं करेंगे, लेकिन भविष्य में क्या होता है यह उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। राजनाथ के बयान की गंभीरता को इसी बात से समझा जा सकता है कि बाद में उन्होंने ट्विटर पर भी लगभग यही बातें साझा करते हुए लिखा ''पोखरण वह क्षेत्र है जिसने भारत को परमाणु शक्ति बनाने के अटलजी के दृढ़ संकल्प को देखा और अभी तक नो फर्स्ट यूज (परमाणू हथियारों के इस्तेमाल) के सिद्धांत के प्रति प्रतिबद्ध है। भारत ने इस सिद्धांत का कड़ाई से पालन किया है। भविष्य में क्या होता है यह परिस्थितियों पर निर्भर करता है। वास्तव में देखा जाये तो राजनाथ के इस बयान को सीधे तौर पर भारत की परमाणु नीति में बदलाव के नजरिये से नहीं देखा जा सकता बल्कि यह ठोस चेतावनी है उनके लिये जो ऐसा करने के लिये भारत को अंतिम हद तक उकसाने के प्रयासों में लगे हुए हैं। राजनाथ का यह बयान इसलिये भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अनुच्छेद 370 और धारा 35ए को हटाए जाने और जम्मू कश्मीर राज्य का विघटन कर दो अलग केन्द्र शासित प्रदेश गठित किये जाने से बौखलाए पाकिस्तान ने हर तरह से युद्ध का माहौल बनाना आरंभ कर दिया है। एक तरफ उसने सरहद पर फौजों, हथियारों और रसद का जमावड़ा शुरू कर दिया है वहीं दूसरी ओर एलओसी पर अकारण गोलाबारी करके भारत के सब्र का इम्तिहान भी ले रहा है। यहां तक कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी आवाम को स्पष्ट शब्दों में यह समझाने की कोशिश की है कि भारत की ओर से बालाकोट से भी बड़ी कार्रवाई की जानेवाली है। पाकिस्तान ने किस कदर युद्ध की तैयारियां आरंभ कर दी हैं इसका खुलासा सेटेलाइट से सामने आई उन तस्वीरों से भी हो रहा है जिसमें साफ तौर पर ऐसा लग रहा है कि पाकिस्तान युद्ध की तैयारी में जुटा हुआ है। ऐसी तीन तस्वीरों को ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस ने सैटेलाइट से भेजी है जिसको देखने से लगता है कि पाकिस्तान के तीन प्रमुख बंदरगाहों में कुछ हरकतें चल रही हैं। वहां एक जैसा ऑपरेशन चलाया जा रहा है। कराची, ओरमारा और ग्वादर बंदरगाह को पूरी तरह से खाली करा दिया गया है। तस्वीर में दिख रहा है कि ओरमारा में जिन्ना नौसैनिक अड्डा अब पूरी तरह से खाली है। वहीं ग्वादर बंदरगाह को भी पूरी तरह से खाली करा दिया गया है। कराची में नौसैनिक डॉक के तीन जहाज खड़े दिखाई दे रहे हैं। तस्वीर में दिख रहा है कि रावलपिंडी में चकलाला के नूर खान एयर फोर्स बेस कैंप को भी पूरी तरह खाली करा दिया गया है। हालांकि भारतीय नौसेना ने अपने सभी बेस और युद्धपोतों को हाई अलर्ट पर रखा है। साथ ही समुद्र मार्गों पर कड़ी नजर रखी जा रही है। इसके अलावा सरहद पर भी पाक फौज की ओर से हो रही गोलाबारी का मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है जिसमें कल चार पाकिस्तानी फौजियों के मारे जाने की बात पाक ने स्वीकार भी कर ली है। लेकिन पाकिस्तान के दिमाग में क्या चल रहा है यह बात किसी से छिपी नहीं है। इस मामले को चीन की मदद से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उठवाने की कोशिशों में जुटे पाक को अगर वहां से मनचाही मदद नहीं मिली तो अंतिम युद्ध के लिये वह साफ तौर पर तैयार दिखाई पड़ रहा है। लेकिन राजनाथ की यह धमकी वास्तव में पाकिस्तान के लिये नहीं बल्कि चीन के लिये ही है। चीन को अगर अपनी ताकत का अधिक गुमान हो जाये और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से भारत के खिलाफ प्रस्ताव पारित कराने के उसके ताजा प्रयासों पर अन्य सदस्य देशों द्वारा वीटो लगा दिये जाने की बौखलाहट में वह गलती से भी भारत की ओर टेढ़ी नजर से देखने की गुस्ताखी करे तो ऐसे में उसे यह नहीं भूलना चाहिये कि परमाणु का पहला प्रयोग नहीं करने की नीति हमने आगे बढ़ कर अपनी ओर से बनाई हुई है। लेकिन बात अगर आत्मरक्षा के लिये अनिवार्यता की आ जाएगी तो अपनी बनाई नीति में बदलाव करने का हक भी तो भारत को है। दरअसल चीन ने अपनी भारत नीति में रोजाना नाटकीय बदलाव करने की जो राह पकड़ी है उसे देखते हुए यह सख्त संदेश देना आवश्यक ही था। यह तो तय ही है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की हिमायत करनेवालों की कोई कमी नहीं है लिहाजा चीन-पाक को वहां से दुत्कार के सिवा कुछ भी नहीं मिलना है। लेकिन इस दुत्कार को सहजता से स्वीकार कर पाना उनके लिये संभव नहीं हो सका और उसके प्रतिरोध में कुछ ऐसी-वैसी हरकत करने की कोशिश भी की तो ताजा बयान में रक्षा मंत्री ने साफ कर दिया है कि हम किसी अन्य मुल्क के भरोसे नहीं हैं बल्कि अपनी शांतिप्रिय नीतियों में बदलाव करने के लिये हमें मजबूर होना पड़ा तो हमारे दुश्मनों को विध्वंस का तांडव झेलने के लिये तैयार रहना होगा।