भारतीय परिवेश में प्रेम विवाह






(  डॉ कामिनी वर्मा)

  सृष्टि के नैरंतर्य एवं मानव जीवन की चित्तवृत्तियों के शमनार्थ भारतीय समाज में गृहस्थाश्रम का विधान किया गया है।महाभारत में उल्लिखित है, *यह आश्रम बड़ा दुष्कर और श्रेष्ठतम है क्योंकि गृहस्थ से बड़ा त्यागी कोई नही है।* इसी आश्रम पर ब्रम्हचर्य और वानप्रस्थ आश्रम आश्रित होता है।तथा पितृ ऋण से उऋण होने के लिये भी गृहस्थ जीवन की अनिवार्यता समाज स्वीकृत है। प्राचीन काल में सभ्य समाज के अस्तित्व में आने के साथ ही विवाह संस्कार आरम्भ हुआ। मनु ने

 देव,ब्रह्म ,प्रजापत्य,आर्ष,गान्धर्व आसुर,राक्षस, पैशाच नामक आठ शास्त्र सम्मत विवाहों का उल्लेख किया है।

     वर्तमान में प्रचलित प्रेम विवाह का ही पूर्वरूप गान्धर्व विवाह था। इस विवाह में स्त्री- पुरुष परस्पर अनुरक्त होकर विवाह कर लेते थे।

 

*इच्छाया न्योन्यसंयोग: कन्याश्चच वरस्य च।*

*गान्धर्व:स तु विज्ञेयो मैथुन्य: कामसंभव:।।*

          (मनुस्मृति)

 

   इस कोटि का प्रणय संयोग प्रायः यक्ष- यक्षणियों ,किन्नर -किन्नरियों व गन्धर्वों में प्रचलित था, अतः पृथ्वी पर भी इस विवाह की संज्ञा दैवीय विवाह के नाम पर गान्धर्व की गयी। बौधायन, आपस्तंब तथा गौतम आदि  सूत्रकारों ने इसे काम प्रेरित स्त्री पुरुष के प्रेम का परिणाम माना है।

   *सकामेन सकामायां मिथ संयोगो गान्धर्व*

 इस विवाह का प्रचलन वैदिक काल से ही रहा है। ऋग्वेद एवं अथर्ववेद में इस विवाह के लिये उद्यत कन्याओं को माता पिता द्वारा अनुमति देने तथा स्वयं अलंकृत करने का उल्लेख मिलता है।

   *महाभारत में वर्णित दुष्यंत -शकुंतला का विवाह इसी कोटि का है।इसी ग्रन्थ में इसे क्षत्रियों का विहित धर्म बताया गया है। प्रतिमानाटक में  *उदयन और वासवदत्ता गन्धर्व विवाह विवृत है।पुराणों में पुरुरवा एवं उर्वशी के प्रणय का आख्यान मिलता है।जातक ग्रंथों में काशी के राजा *ब्रह्मदत्त तथा लकड़ी चुनने वाली लड़की के बीच प्रेम तथा नलचम्पू काव्य में *नल दमयंती* की प्रणय कथा का उल्लेख मिलता है।

   महाकवि भवभूति, नारद तथा बौधायन इसकी वर वधू के प्रेम के कारण प्रशंसा करते हैं।

  *प्रशसन्ति सर्वेषां स्नेहानुगतत्वात*

 वात्स्यायन ने *कामसूत्र* में इसे सुखद,अनुरागमय एवं सर्वश्रेष्ठ बताया है।  

                           सुखस्वादबहुक्लेशादपि चावर्णादिति।

                           अनुरागात्मकत्वाच्च गान्धर्व : प्रवरोमत:।

 

   परंतु कालान्तर में समाज के स्वैछाचारी हो जाने तथा पितृसत्ता पर प्रहार होने से इस विवाह की निंदा की जाने लगी। 

   आज के भारतीय परिवेश में न्यूक्लियर परिवार के हो जाने से बालकों को उचित संस्कार  न मिल पाने एवं माता पिता दोनों के  कामकाजी होने से उनकी समस्याओं की ओर पर्याप्त भावनात्मक संबल न मिल पाने से किशोर व युवा वर्ग घर के बाहर प्रेम की तलाश करने लगता है।सहशिक्षा,आधुनिक खुला वातावरण ,पाश्श्चात्य व बॉलीबुड संस्कृति,इस प्रेम नामक चिंगारी को हवा देने का काम करती है। आज युवा पीढ़ी अपने लक्ष्य से विमुख होकर प्रेम की गंभीरता को    समझे बिना, जीवन के उच्च आदर्श एवं नैतिक मूल्यों,की अवहेलना कर प्रेम विवाह की ओर अग्रसर हो रही है। परंतु विवाह विच्छेद के आंकड़ों पर दृष्टि डालने पर ज्ञात होता है प्रेम विवाह में तलाक,अवसाद,आत्महत्या के मामले  अधिक हैं। बदलते सामाजिक सांस्कृतिक वातावरण में आज विवाह विच्छेद या असफल विवाह के कारणों की तह में जाने की आवश्यकता है। क्या इस असफलता की वजह प्रेम विवाह है?या कोई अन्य कारण?

    विवाह किसी भी रूप में किया गया हो उसकी सफलता त्याग ,समर्पण,सहयोग,वचनबद्धता में निहित है।जो आज कम देखने को मिलती है।नैतिक मर्यादाओं से लोग दूर हो रहे हैं,कर्तव्यपालन की भावना न्यून होती जा रही है।समाज में बढ़ती वैयक्तिकता,सहनशीलता को कम कर रही है। जिसका सीधा प्रभाव वैवाहिक संबंधों पर पड़ रहा है।वैवाहिक मूल्यों से निष्ठा घटती जा रही है। *तू नही कोई और सही* और सोशल मीडिया वाली सोंच, फ़िल्मी नायक नायिकाओं की जीवन शैली से प्रभावित आमजन वैवाहिक मर्यादा का त्याग करने में जरा भी नहीं हिचकता।

   प्रेम विवाह अपनी इ्च्छा से होता है, जिसे समाज व परिवार आज भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता ,न ही विवाहित दंपत्ति को कोई सहयोग प्रदान करता है।समाज व परिवार से अलग पड़ जाने के कारण भी दंपत्ति एक दूसरे को इसका जिम्मेदार मानकर दोषारोपण करने लगते हैं औऱ वैवाहिक बंधन शिथिल होने लगते हैं।

    बुराई प्रेम विवाह में नहीं है , यदि यह संस्कार मर्यादाओं में रहकर कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए सामाजिक स्वीकृति के साथ किया जाय। माता पिता समाज व परिवार के सदस्यों का भी दायित्व है वह अपने बच्चों की भावनाओं का सम्मान करते हुए उनके जीवन को सुखमय व सफल बनाने में सहयोग करें।