बुनकरों के यथार्थ को दर्शाकर फिल्माकार सत्यप्रकाश ने पाई जगप्रसिद्धि






            # एक बार फिर सुर्खियों में है 'बुनकर- द लास्ट ऑफ द वाराणसी वेवर्स'




नई दिल्ली। 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में नॉन फीचर फिल्म श्रेणी के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ आर्ट एण्ड कल्चर फिल्म का पुरस्कार जीतने वाली 'बुनकर- द लास्ट ऑफ द वाराणसी वेवर्स' एक बार फिर सुर्खियों में है। निर्देशक सत्यप्रकाश उपाध्याय की यह पहली फिल्म भारतीय बुनकरी की विशेषताओं, इतिहास और बुनकरों की समस्याओं पर केंद्रित है। फिल्म में बुनकरों और कारीगरों के साक्षात्कारों की बड़ी श्रृंखला है जिससे दर्शकों को यह समझने में बेहद आसानी होती है कि कैसे इस भारतीय पारम्परिक उद्योग से जुड़े लोग अपने भविष्य के प्रति अनिश्चित हैं।

 

बता दें कि पूर्व में फिल्म 'बुनकर' 49वें भारतीय अंतर्राष्‍ट्रीय फिल्‍म महोत्‍सव 2018 के लिए भी चयनित हो चुकी है और इसके अलावा फिल्म ने जयपुर अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2019 में सर्वश्रेष्ठ नवोदित निर्देशक का पुरस्कार डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में जीता था। निर्देशक सत्यप्रकाश उपाध्याय फिल्म उद्योग में एक दशक से ज्यादा का अनुभव रखते हैं और कई फीचर फिल्मों में उन्होंने काम किया है। अपने इसी अनुभव को विस्तार देते हुए उन्होंने 'बुनकर' के जरिये निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा। 'बुनकर' के निर्माण के दौरान जमीनी सच्चाई को पर्दे पर प्रभावी तरीके से प्रस्तुत करने में सत्यप्रकाश उपाध्याय ने कहीं कोई समझौता नहीं किया।

 

सत्यप्रकाश उपाध्याय आगे कहते हैं, ''फिल्म निर्माण से जुड़े विभिन्न पहलुओं से भलीभाँति अवगत होने के कारण मैंने वाराणसी के बुनकरों की समस्याओं को उठाने का निर्णय किया और इस फिल्म का निर्माण किया।'' वह कहते हैं, ''हथकरघे से बुनाई भारतीय विरासत है, भारत का पारम्परिक उद्योग है, इसलिए हम सभी का दायित्व है कि इसको समाप्त होने से बचाएं।'' उन्होंने कहा, ''हमने फिल्म में भी यही दिखाया है कि जिस तरह किसी भी कला को समाज के सहयोग की जरूरत होती है, उसी तरह हर समाज बिना किसी कला के अधूरा है।'' 

 

वह आगे कहते हैं, ''मेरा पूरा विश्वास है कि जिसने इस फिल्म को देखा है उसने बुनकरों की समस्याओं को शिद्दत से महसूस किया होगा और उनकी मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाने का विचार मन में आया होगा।'' सत्यप्रकाश उपाध्याय फिर कहते हैं, ''यदि यह फिल्म दर्शकों को हथकरघा उद्योग की समस्याओं को समझ कर इस दिशा में कुछ कदम उठाने के प्रति संवेदनशील बनाती है, तो मैं समझूँगा कि हम अपने उद्देश्यों को हासिल करने में सफल रहे।

 

सत्यप्रकाश उपाध्याय नैरेटिव पिक्चर्स के सह-संस्थापक भी हैं। यह मुंबई आधारित फिल्म निर्माण कंपनी है। नैरेटिव पिक्चर्स के बैनर तले बनने वाली कई फिल्मों से सत्यप्रकाश उपाध्याय निर्माता और निर्देशक के रूप में जुड़े हुए हैं। समाज में फिल्मों के माध्यम से बदलाव लाने के अभियान के तहत सत्यप्रकाश उपाध्याय इन दिनों अपनी आने वाली फिक्शन फीचर फिल्म 'कूपमंडूक' की पटकथा लेखन का कार्य कर रहे हैं।