**दर्द प्रेम पत्र का **
कोई जगह नहीं थी जिस पर
तुमने छाप न छोड़ी हो ,
नील बदन में आखिर हम भी
कितनी बार छुपाए जाते ।
तार -तार हम हुए कि तुमने
अपने निशा मिटाए हैं ,
जलती लौ में आखिर हम भी
कितनी बार जलाए जाते ।
चुल्लू भर पानी में तुमने
कितनी बार डुबोया है
ठहरे जल में आखिर हम भी
कितनी बार बहाए जाते ।
नाम हमारा **प्रेम पत्र था**
तुमने परिभाषित कर डाला
सच के संवादों में हम भी
कितना झूठ छुपाए जाते ।
*ललिता नारायणी*
प्रयागराज ( उत्तर प्रदेश )