कमियों-कमजोरियों में उलझी कांग्रेस
 














तकरीबन सत्तर साल तक पंचायत से लेकर पार्लियामेंट स्तर तक देश पर लगातार एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस जिन बुरे दिनों से गुजर रही है इसकी कल्पना तो इसके दुश्मनों ने भी शायद ही कभी की हो। लेकिन कहते हैं कि हर परिणाम के पीछे पक्की और मजबूत वजह भी होती है। लिहाजा अगर इसके वजहों की तलाश करें तो अधिक दूर जाने की जरूरत नहीं है। केवल दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद के घटनाक्रमों पर गौर करें तो यह साफ हो जाता है कि आखिर कांग्रेस को लगातार दुर्दशा क्यों झेलनी पड़ रही है। सतही तौर पर देखने से तो इसमें कुछ विशेष दिखाई नहीं देता है लेकिन गहराई से परखें तो एक ओर अग्रिम जमानत खारिज होने के बाद चिदंबरम की फरारी, उनके समर्थन में पार्टी के शीर्ष संचालकों द्वारा किया गया सोशल मीडिया पर स्यापा, उनकी गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस मीडिया विभाग के मुखिया रणदीप सुरजेवाला का प्रलाप और पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी के आलाप को समग्रता में देखें तो कई ऐसी बातें स्पष्ट होती हैं जिन्हें कांग्रेस की मौजूदा दुर्दशा से जोड़कर देखना कतई गलत नहीं होगा। इसमें भी कांग्रेस की जो मुख्य कमियां और कमजोरियां उभर कर सामने आई हैं उनमें गलत और सही के बीच भेद करके सही के साथ खड़े होने और गलत का परित्याग करने की राह पर मजबूती से चलना पार्टी को अभी तक गवारा नहीं हो रहा है। पार्टी को इतनी दुर्दशा के बाद भी अभी तक संगठन को मजबूत व सुदृढ़ करके सड़क पर उतर कर ताकत व जनसमर्थन एकत्र करने के बारे में विचार करना भी गवारा नहीं किया जा रहा है। इसके अलावा आम जनता के सुख-दुख व देशहित से जुड़े जिन मुद्दों को आगे करने के लिये जनता ने पार्टी को सबसे बड़े विपक्षी दल की भूमिका सौंपी है उसका निर्वाह करना भी तब तक जरूरी नहीं समझा जा रहा है जब तक उस पर बोलने से अपना दलगत या निजी हित ना सधता हो। उसके बाद बाकी बची कसर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की उस हेकड़ी ने पूरी कर दी है जिसके तहत वह अभी तक यह समझने के लिये तैयार नहीं है कि उसके स्वर्णिम दिन लद चुके हैं और उन दिनों को याद करके अपने कामकाज की तुलना मौजूदा सरकार से करने का फायदा कम और नुकसान ही अधिक होगा। ये कुछ ऐसे मसले हैं जिनका मुजाहिरा कांग्रेस ने बीते अड़तालिस घंटों में किया है और इन पर गहराई से विचार करने की जरूरत है। अगर कांग्रेस को एक बार फिर अपने स्वर्णित दिनों की वापसी सुनिश्चित करनी है तो सबसे पहले उसे सही और गलत के फर्क को समझकर सही के साथ खड़े होने का माद्दा दिखाना होगा। यह नहीं हो सकता कि एक ओर तो वह भ्रष्टाचारी के समर्थन में खड़ी दिखाई दे और दूसरी ओर देश की आम जनभावना का समर्थन उसे मिलता रहे। अगर चिदंबरम ने भ्रष्टाचार में सहभागिता की है तो कांग्रेस को उनसे किनारा करने में देर नहीं करना चाहिये था। यह नहीं हो सकता तो कम से कम उनकी फरारी को गलत बताकर यह अपील तो की ही जा सकती थी कि वे तत्काल पूछताछ में सहयोग करने के लिये जांच एजेंसियों के समक्ष उपस्थित हो जाएं। यह भी ना हो सके तो न्यूनतम इतना तो कहा ही जा सकता था कि चिदंबरम कहीं फरार नहीं हुए हैं बल्कि वे खुद जांच एजेंसी के समक्ष उपस्थ्ति होकर उसके हर सवाल का जवाब देने की तैयारी कर रहे हैं। लेकिन इनमें से किसी भी विकल्प पर अमल ना करके कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने चिदंबरम की फरारी के दौरान यही सुर आलापना बेहतर समझा कि उन्हें कुछ पता नहीं है कि वे कहां हैं। वह भी तब जबकि फरारी के दौरान चिदंबरम को मीडिया के समक्ष पेश करने की योजना को तयशुदा तरीके से अंजाम दिया गया और तय वक्त ही उन्हें वहां उपस्थित दिखाया गया। खैर, उस मामले को अगर कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा भी मान लें तो उनकी गिरफ्तारी के बाद अगले दिन सुरजेवाला द्वारा मीडिया में दिये गये पार्टी के औपचारिक बयानों से भी यही झलका कि आम लोगों व देश के हित को प्रभावित करने वाले मसलों पर सरकार के खिलाफ खड़े होने के बजाय उन मसलों के बदले अपने हितों को सुरक्षित करने की सौदेबाजी करना कांग्रेस को अधिक श्रेयस्कर प्रतीत हो रहा है। वर्ना आज एक ही सांस में जितने मुद्दे सुुरजेवाला ने गिनाये और सरकार की जितनी विफलताओं को बेहद गंभीर बताया वे सभी मुद्दे बड़े आंदोलन का आधार बन सकते हैं। मसलन एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा के तौर पर रूपये का उभरना ऐसा मसला है जिसको लेकर आज तक कांग्रेस ने धरना-प्रदर्शन करने की भी जहमत नहीं उठाई है। ना ही अर्थव्यवस्था के बेपटरी होने के मसले को तूल देकर सरकार का घेरा करने की पहल की गई। यहां तक कि लाखों-करोड़ों लोगों की नौकरी छिन जाने के बावजूद अभी तक कांग्रेस ने उफ करना भी जरूरी नहीं समझा था। और तो और बल्कि अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव या राज ठाकरे के खिलाफ जांच एजेंसियों के इस्तेमाल की जिस दलील को आज आगे किया गया और दागी नेताओं को भाजपा में शामिल कराके उनके मुकदमे खत्म कराये जाने की जिस बात का खुलासा किया गया उस पर भी कांग्रेस ने कभी सड़क पर कोई आंदोलन खड़ा करने या आम लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिये कोई पहल करने की आज तक जहमत नहीं उठाई। लेकिन अब जबकि चिदंबरम की गिरफ्तारी हुई है और और उनसे गोपनीय राज उगलवाने का खतरा सामने दिख रहा है तो वे सभी मुद्दे गिनाये जा रहे हैं ताकि सरकार पर दबाव बढ़ाया जाये। लेकिन इतना कुछ होने के बाद भी वातानुकूलित कमरे से बाहर निकल कर सड़क पर पसीना बहाने और देशहित व जनहित के लिये सत्ता व व्यवस्था से जूझने के लिये कांग्रेस कतई तैयार नहीं है। ऐसे में अगर आम जनता से कांग्रेस कटी हुई दिख रही है तो निश्चित ही इसके लिये उसकी अपनी कमियां व कमजोरियां ही जवाबदेह हैं और जब तक उससे बाहर निकलने की दिशा में पार्टी आगे नहीं बढ़ेगी तब तक उसके किस्मत का सितारा चमकने की कतई उम्मीद नहीं की जा सकती है। क्योंकि किस्मत का सितारा भी मेहनत की मेहनत के शिखर पर ही चमकता है।