कीर्तिमानधारी राज सिंह दहिया का एक और कीर्तिमान
 रेलवे के गार्ड का काम ट्रेन और यात्रियों को सुरक्षित गंतव्य तक पहुंचाने का होता है, लेकिन अंबाला डिविजन में तैनात गार्ड राज सिंह दहिया पर रेकॉर्ड बनाने का जुनून कुछ इस तरह सवार हुआ है कि अपने काम के साथ ही उन्होंने 6 रेकॉर्ड बना दिए। लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड से लेकर कलाम बुक ऑफ रेकॉर्ड में उनका नाम दर्ज हो चुका है। यह जुनून 786 नंबर को लेकर था। इसके लिए उन्होंने सालों मेहनत की। उनका ही नहीं बल्कि पत्नी और बेटे के नाम भी रेकॉर्ड दर्ज हैं। उनके पास 786 अंक वाला रिजर्वेशन टिकट और नोटों का कलेक्शन है, जिसकी बदौलत उन्होंने यह उपलब्धियां हासिल की हैं। 





 

उन्होंने जो लेटेस्ट रेकॉर्ड जो अपने नाम किया है वह एक ऐसा रिजर्वेशन टिकट है, जिसपर 6 बार 786 अंक हैं। सुनने में बेशक यह बहुत आसान लगे, लेकिन इसके लिए उन्होंने 2 से ढाई साल का लंबा इंतजार किया। राज सिंह दहिया ने बताया कि वह 2016 में धामपुर में ट्रेनिंग के लिए गए थे। तभी उन्हें आइडिया आया कि क्यों न ऐसा रिजर्वेशन टिकट बनवाया जाए, जो कि सामान्य होते हुए भी असामान्य लगे। उसी दिन से उन्होंने खोज शुरू कर दी। उन्होंने बताया कि किसी भी रिजर्वेशन टिकट पर 7 अलग- अलग जगहों पर नंबर होते हैं। यह सभी नंबर अलग- अलग चीजों को दर्शाते हैं। जिसके सभी नंबर एक जैसे मिलना बेहद मुश्किल होता है। उन्होंने तय कर लिया था कि कैसे भी करके इन सातों जगहों पर 786 अंक प्रिंट वाला टिकट लिया जाए।

 

उन्होंने बताया कि सबसे पहले 786 नंबर वाली ट्रेन खोजी, इंटरनेट पर सर्च करने के बाद उन्होंने ट्रेन नंबर 12786 मिली जो कि बेंगलुरू से काचिगुडा जाती है। हर टिकट पर रिजर्वेशन का काउंटर नंबर होता है, उन्होंने सर्च किया कि 786 नंबर विंडो कहां है। काफी तलाशने के बाद पता चला कि 786 नंबर काउंटर जोधपुर स्टेशन पर है। हर रेल कर्मचारियों को प्रिविलेज पास मिलता है। उन्होंने पास नंबर 786 ही चाहिए था, जिससे कि टिकट पर रुपये की जगह 786 प्रिंट हो। पास मिलने के बाद वह जोधपुर रेलवे स्टेशन के काउंटर नंबर 786 पर गए और 786 किलोमीटर का टिकट बनवाया। टिकट बनवाने से पहले उन्होंने सुनिश्चित किया कि टिकट नंबर और स्लैश नंबर भी 786 ही आए। तभी वह एक टिकट पर 6 बार 786 नंबर ले पाए। सातवां नंबर पीएनआर होता है, जो ऑटोमैटिक जेनरेट होता है, इसलिए वहां 786 नंबर संभव नहीं था। इस काम में उनके बेटे ने भी उनका साथ दिया। इसकी वजह से रेकॉर्ड में उनके बेटे का नाम भी दर्ज हो गया। 

 

दहिया ने बताया कि साल 1993 में सहारनपुर, 1994 से 2014 तक बठिंडा में कार्य किया। 2014 में ट्रांसफर होकर वे कालका में आए। उन्होंने बताया कि उन्हें रेलवे में पहले वेतन के तौर पर नए नोट मिलते थे। लगभग हर माह वह 10 रुपये के नए नोट का पैकेट 786 नंबर वाले ही लेते थे। उनकी पत्नी जयवंती दहिया 786 वाला नोट अलग से रख लेती थीं।  उन्होंने बताया कि 2012 के बाद से संग्रह करने में पत्नी जयवंती दहिया ने अहम भूमिका निभाई। अब तक उनके पास 000786 से 999786 के कुल 1000 से ज्यादा नोट इकट्ठे कर लिए है। इसके लिए उनका नाम कलाम बुक ऑफ रेकॉर्ड में दर्ज है। 

अब गिनेस बुक में नाम दर्ज कराने को तैयारी 

 

राज सिंह दहिया ने बताया कि अब तक उन्होंने 6 रेकॉर्ड अपने नाम किए हैं। साल 2015 से 2017 तक उन्हें लगातार तीन बार लिम्का बुक ऑफ रेकॉर्ड अपने नाम किया। यह अवॉर्ड उन्हें गत्ते वाले फैंसी टिकट पर 786 नंबर के लिए मिला था। 2018 में उन्होंने तीन अलग- अलग अवॉर्ड हासिल किए। पहला यूनिक वर्ल्ड रेकॉर्ड मिला, जो कि उन्हें चेक, डीडी, टिकट, मेट्रो कार्ड, एलआईसी पॉलिसी तमाम अलग- अलग चीजों में 786 नंबर हासिल किए। 2018 में कोहिनूर बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड, जबकि रिजर्वेशन नंबर पर 6 बार 786 अंक लाने के लिए उन्हें कलाम बुक ऑफ रेकॉर्ड का अवॉर्ड मिला। उनका कहना है कि अब वह गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराना चाहते हैं। इसके लिए उन्होंने आवेदन भी भेज दिया है, जिसका जवाब भी जल्द आने की उम्मीद है।