पाक के समक्ष करो या मरो की चुनौती






पाकिस्तान इन दिनों जिस कंगाली, बदहाली व नाउम्मीदी के दौर से गुजर रहा है उससे उबरने के विकल्प लगातार कम होते जा रहे हैं। अब तो स्थिति यह हो गई है कि वह अपनी ही करतूतों के कारण ऐसे दोराहे पर आकर खड़ा हो गया है जहां से उसे अपने लिये किसी एक रास्ते का चयन करना ही होगा। या तो वह पुराने ढ़र्रे पर चलते हुए तबाह, बर्बाद  हो जाएगा या फिर पुरानी तमाम गलतियों को ना दोहराने का संकल्प लेकर उसे अपनी गलतियां सुधारने की दिशा में ठोस कदम उठाना होगा। पाकिस्तान को इस कठिन फैसले के दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है उसकी अपनी ही आतंक को पालने-पोसने और उसका रक्षा व विदेश नीति के अंग के तौर पर इस्तेमाल करने की उस रणनीति ने जिसके कारण अब वह औपचारिक तौर पर आतंकी मुल्क करार दिये जाने की कगार पर पहुंच गया है। आतंकी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के तकरीबन अस्सी फीसदी अनुपालन मानकों पर खरा नहीं उतरने और टेरर फंडिंग पर लगाम लगा पाने में नाकाम रहने की वजह से टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टाक्स फोर्स यानी एफएटीएफ की क्षेत्रीय इकाई एशिया पैसिफिक ग्रुप यानी एपीजी की 41 सदस्यीय पैनल ने ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा में हुई दो दिवसीय बैठक में सर्वसम्मति से तय करके उसे इन्हैंस्ड एक्सिपडाइडेट फॉलोअप लिस्ट की काली सूची में डाल दिया है। एपीजी की पैनल के सामने किसी भी पैरामीटर पर पाकिस्तान खुद को पूरी तरह खरा साबित नहीं कर पाया। हालांकि एफएटीएफ ने उसे जून 2018 में ही उसे ग्रे सूची यानी निगरानी सूची में डाल दिया था और उसे इससे बाहर आने के लिये आतंक व टेरर फंडिग के खिलाफ ठोस व प्रभावशाली कदम उठाने के लिये पंद्रह महीने की मोहलत दी थी जिसकी मियाद इसी महीने समाप्त हो रही है। इसके बाद अगले महीने एफएटीएफ की बैठक होनी है जिसमें पाकिस्तान के प्रदर्शन को लेकर गहन विचार विमर्श के बाद उसके भविष्य का फैसला लिया जाएगा। लेकिन उससे पहले ही एफएटीएफ की क्षेत्रीय इकाई एपीजी द्वारा उसे काली सूची में डाल दिये जाने के बाद अब यह तय है कि उसे वहां भी कोई रियायत नहीं मिलने जा रही है। ऐसे में अब पाकिस्तान के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है अपनी ध्वस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था को संभालने और अपना वजूद कायम रखने की। क्योंकि एफएटीएफ द्वारा औपचारिक तौर पर निगरानी सूची से निकाल कर काली सूची में डाल दिये जाने के बाद वह घोषित तौर पर आतंकी मुल्क मान लिया जाएगा जिसे दुनिया के किसी भी देश या संस्थान से कोई आर्थिक मदद नहीं मिल पाएगी। पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी भी पहले ही सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकार कर चुके हैं कि अगर पाकिस्तान को एफएटीएफ द्वारा ब्लैक लिस्ट में डाल दिया गया तो उसकी अर्थव्यवस्था को 10 अरब डॉलर का झटका लगेगा जिससे उबर पाना उसके लिये नामुमकिन की हद तक मुश्किल हो जाएगा। यहां गौर करने की बात यह है कि आतंक को संरक्षण व वित्तीय मदद पहुंचाने को लेकर एपीजी में उसके अनुपालन रिकॉर्ड की समीक्षा किए जाने की मांग अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस द्वारा की गई थी और उसके बाद ही उसे काली सूची में डाला गया है। इससे एक बात तो साफ है कि संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद के किसी भी स्थायी सदस्य देश की सहानुभूति पाकिस्तान के साथ नहीं है। सिवाय उस चीन के जो अपने निजी स्वार्थों के कारण उसकी हर मंच पर सहायता करता आ रहा है। लेकिन एपीजी द्वारा काली सूची में डाल दिये जाने और एफएटीएफ द्वारा भी इसी फैसले पर सहमति की मुहर लगा दिये जाने के बाद चीन के लिये भी खुल कर पाकिस्तान के पक्ष में मोर्चा खोलना मुश्किल हो जाएगा। वास्तव में देखा जाये तो पाकिस्तान की तमाम उम्मीदें अमेरिका के रूख पर ही टिकी हैं और उसे उम्मीद है कि अफगानिस्तान से अपनी फौज को वापस बुलाने के लिये अमेरिका को उसकी मदद की जरूरत पड़ेगी। उसी मदद के एवज में पाकिस्तान उससे मदद की खैरात हासिल करते रहने की उम्मीद पाले बैठा है। लेकिन पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिये कि अफगानिस्तान में अगर भारत की भूमिका बढ़ाने के विचार को आगे बढ़ाया गया तो कोई कारण नहीं है कि अमेरिका को पाकिस्तान से मदद लेने की जरूरत पड़े। इसी बात की संभावना टटोलने की कोशिश अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प भी कर रहे हैं। दूसरी ओर भारत के हितों की रक्षा करने के लिये अगर अमेरिका लीक से हटकर बड़ी मदद करने के लिये आगे आता है तो उसके बदले लीक से हटकर उसकी मदद करना भारत की भी नैतिक व व्यावहारिक जिम्मेवारी बन जाएगी। हालांकि यह तो अभी भविष्य के गर्भ में है कि भारत और अमेरिका के बीच क्या सहमति बनती है और उसका अफगानिस्तान के हालातों पर क्या असर पड़ता है लेकिन जिस तरह से एपीजी द्वारा पाकिस्तान को काली सूची में डाले जाने के लिये अमेरिका ने आगे बढ़कर प्रस्ताव दिया है उससे इतना तो स्पष्ट है कि ट्रम्प को पाकिस्तान के हितों की जरा भी चिंता नहीं है। ऐसे में अब पाकिस्तान को खुद ही यह तय करना होगा कि किस दिशा में आगे बढ़ना पसंद करता है। पहले की तरह दुनिया की आंखों में धूल झोंक कर आतंक के खिलाफ लड़ाई का दिखावा करके आर्थिक मदद बटोरते रहने की राह अब उसके लिये पूरी तरह बंद होने जा रही है। लिहाजा बदलाव की दिशा में उसे इमानदारी से आगे बढ़ना ही होगा वर्ना एक देश के तौर पर उसका अस्तित्व बरकरार रह पाना नामुमकिन हो जाएगा। ऐसे में पड़ोसी मुल्क होने के नाते भारत उसकी सद्बुद्धि के लिये दुआ ही कर सकता है। आज भी पाकिस्तान अगर सीधे रास्ते पर चलते हुए अपनी गलतियों को सुधारने की पहल करता है तो भारत के साथ उसके रिश्ते भी सुधर सकते हैं और उसको हर तरह की मदद भी मिल सकती है लेकिन शर्त यही है कि आतंक की राह पर चलने से उसे पूरी तरह तौबा करनी होगी। लेकिन रातोंरात उसकी नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन आने की उम्मीद करना भी बेकार ही है लिहाजा अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अपने वजूद को कायम रखते हुए एक मुल्क के तौर अपनी पहचान बचाये रखने के लिये वह किस दिशा में आगे बढ़ता है।