रक्षा और विश्वास का पर्व है रक्षाबंधन

(बाल मुकुन्द ओझा)


त्यौहार हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। इन्हीं के माध्यम से रिश्तों की गहराई महसूस की जाती है। रक्षाबंधन केवल एक त्यौहार नहीं बल्कि हमारी परंपराओं का प्रतीक है जो आज भी हमें अपने परिवार व संस्कारों से जोड़े रखने का हर संभव प्रयास करता है। इस साल यह पर्व 15 अगस्त को मनाया जाएगा। रक्षाबंधन पर राखी बांधने की हमारी सदियों पुरानी परंपरा रही है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाती है और कलाई पर रक्षासूत्र बाधती है। उसकी आरती करती है लंबी आयु की प्रार्थना करती है। भाई भी अपनी बहनों को इस पवित्र बंधन के बदले उपहार देने के साथ ही उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं। रक्षाबंधन को पर्यावरण की रक्षा के साथ भी जोड़कर देखा जाता है। बहुत से लोग वृक्षों को राखी बांधकर पर्यावरण के प्रति जागरूकता का सन्देश देते है। 
रक्षाबंधन का त्यौहार हम ऐसे माहौल में मनाने रहे है जब हमारे रिश्ते नाते तार तार होते जा रहे है। बहन बेटियों की रक्षा और विश्वास का यह पर्व है। पूरे साल बहन बेटियों के साथ ज्यादती और अत्याचार की खबरें अखबारों की सुर्खियां बनती है और एक दिन इस पर्व की औपचारिकता पूरी कर हम देश को संस्कार और प्रेम मोहब्बत का सन्देश देना चाहते है। बेटी बचाओ देश बचाओ का नारा देकर मौका पाते ही हम उनकी इज्जत से खिलवाड़ करते देर नहीं करते। यह कैसा देश है जहाँ साल के एक दिन हम बहन की रक्षा का संकल्प लेते है और शेष दिन मान मर्यादा से खिलवाड़ करते है। इससे अच्छा तो यह है कि हम लोक दिखावे का यह ढोंग करना ही बंद करदे या मन, कर्म और वचन से यह संकल्प करें की बहुत हो गया अब किसी भी हालत में किसी द्रोपदी का चीर हरण नहीं होगा।
यह त्यौहार अपने धार्मिक और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए प्रसिद्ध है। हमारा इतिहास साक्षी है कि चित्तौड़ की रानी कर्णावती ने अपनी रक्षा के लिए मुगल शासक हुमायूं को राखी भेजकर मदद की गुहार की थी। मुगल काल में राजपूताना की महारानी द्वारा मुस्लिम बादशाह को राखी बांधने का प्रसंग आता है। महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय भगवान श्रीकृष्ण की तर्जनी अंगुली में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दिया। यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर अपने भ्राता धर्म का निर्वहन किया।
 पौराणिक मान्यता के अनुसार यह पर्व देवासुर संग्राम से जुडा है। जब देवों और दानवों के बीच युद्ध चल रहा था और दानव विजय की ओर अग्रसर थे , यह देख कर राजा इंद्र बेहद परेशान हो उठे ।.उन्हें परेशान देखकर उनकी पत्नी इंद्राणी  ने भगवान की अराधना की. उनकी पूजा से प्रसन्न हो ईश्वर ने उन्हें एक मंत्रसिद्ध धागा दिया। इस धागे को इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर बांध दिया. इस प्रकार इंद्राणी ने पति को विजयी कराने में मदद की । इस धागे को रक्षासूत्र का नाम दिया गया और बाद में यही रक्षा सूत्र रक्षाबंधन हो गया ।
सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से राखी का त्यौहार बहुत उपयोगी है। यह त्यौहार महिलाओं के कल्याण के प्रयासों को तेज करने की जरुरत तथा समाज में उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के पुरुषों के कर्तव्य को रेखांकित करता है। इस दिन प्रत्येक नागरिक  महिलाओं की सुरक्षा, अस्मिता व महिला सशक्तिकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करें। राखी का त्यौहार हमें ना सिर्फ अपनी बहन को सम्मान की दृष्टि से देखने की सीख देता है बल्कि यह त्यौहार संपूर्ण स्त्री जाति का सम्मान करने की भी सीख देता है। इस पर्व की यही सार्थकता है।