स्वास्थ्य में मनोवैज्ञानिक परामर्श की भूमिका






(डॉ मनोज कुमार तिवारी)

"सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया" को साकार करने में परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका है। आधुनिक समय में दिनों दिन बढ़ती आरामदायक जीवन शैली एवं पर्यावरण में बढ़ता प्रदूषण का स्तर नई नई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रही है। व्यक्ति में शारीरिक एवं मानसिक दोनों तरह की स्वास्थ्य समस्याएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं किसी भी स्वास्थ्य समस्या के पीछे व्यक्ति का मनोबल अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है किसी भी रोग के उपचार में रोगी द्वारा समय पर एवं सही खुराक में ली गई दवाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है यदि व्यक्ति दवाओं को सही समय पर एवं सही मात्रा में नहीं लेता है तो इससे दवाओं का प्रभाव धीरे-धीरे कम होने लगता है और एक समय ऐसा आता है जब दवा बिल्कुल भी काम करना बंद कर देती है दवा की खुराक छोड़ देना या छूट जाना एक आम बात माना जाता है, किंतु इसका व्यक्ति के स्वास्थ्य पर अत्यंत गंभीर प्रभाव पड़ता है ऐसा देखा गया है कि जिनको पांच-छह दिन की भी दवा लेनी होती है वह भी दवा का पूरी खुराक नहीं ले पाते हैं और जिनको जीवन पर्यंत दवा लेना होता है उनके लिए स्थिति कितना कठिन होगा इसका अंदाज सहज रूप से लगाया जा सकता है ।

आज जनसंख्या विस्फोट के कारण हर जगह भीड़ ही भीड़ है यही स्थिति चिकित्सालय एवं मेडिकल स्टोर्स पर भी देखने को मिलती है ना चिकित्सक रोगी से दवा खाने के बारे में बात करते हैं और ना ही दवा की दुकान पर केमिस्ट के पास समय होता है कि वह रोगी को दवाओं को सही ढंग से खाने के बारे में समझा सके। ऐसी स्थिति में प्रशिक्षित परामर्शदाताओं का महत्व अत्यंत बढ़ जाता है वे रोगी को उनकी मानसिक स्थिति के अनुसार दवा को सही समय पर एवं सही खुराक मे लेने के लिए तैयार करते हैं तथा उन्हें यह समझाते हैं कि यदि सही खुराक नहीं लेंगे तो उन्हें किन किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा ।

अनेक असाध्य बीमारियां हैं जिनकी दवाएं रोगी को जीवन पर्यंत लेनी पड़ती है जैसे एचआईवी, रक्तचाप, शुगर, मानसिक बीमारियां इत्यादि । जब व्यक्ति इन बीमारियों के चपेट में आता है तो उसे उच्च स्तर का तनाव महसूस होता है जो अन्य अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं खड़ी करते हैं साथ ही साथ उपचार के प्रति व्यक्ति के मनोबल को भी नीचा करते हैं जिससे व्यक्ति उपचार का सही ढंग से अनुसरण नहीं कर पाता है। उच्च तनाव में भूल जाना एक आम समस्या है ऐसी स्थिति में रोगी चिकित्सक द्वारा दिए गए चिकित्सा निर्देशों का अनुसरण करने में अक्षम होता है।

 मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता परामर्श सेवाओं, रिलैक्सेशन एक्सरसाइज तथा अन्य माध्यमों से तनाव को कम करता है तथा व्यक्ति को चिकित्सा निर्देशों का सही ढंग से अनुपालन करने में सक्षम बनाता है प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता रोगी को न केवल भावनात्मक सहयोग एवं समर्थन देता है बल्कि पारिवारिक सदस्यों एवं मित्रों को भी रोगी का मनोबल बढ़ाने के लिए एवं चिकित्सा योजना का अनुसरण करने में सहयोग प्रदान करने के लिए प्रेरित करता है। शोधों में पाया गया है कि  ६0% लोग ही अपनी चिकित्सा योजना का अनुपालन कर पाते हैं । उचित चिकित्सा अनुसरण 95% से अधिक होने पर व्यक्ति की चिकित्सा के प्रभाव को अच्छा करता है। चिकित्सा के क्षेत्र में आजकल एक नया नारा जोर पकड़ता जा रहा है "मन के हारे हार है मन के जीते जीत " जिन रोगियों का मनोबल ऊंचा होता है वह उन मरीजों की अपेक्षा जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं जिनका मनोबल निम्न स्तर का होता है । मैंने भी अपने एक शोध में स्वयं पाया है कि व्यक्ति का सेल्फ कॉन्सेप्ट उसके चिकित्सा अनुसरण को प्रभावित एवं नियंत्रित करता है। जो लोग यह मानते हैं कि सब कुछ भाग्य द्वारा नियंत्रित होता है वे चिकित्सा योजना का ठीक से अनुसरण नहीं करते जबकि जो लोग यह सोचते हैं कि किसी भी व्यवहार के परिणाम के लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं वे चिकित्सा योजना का अनुशरण अच्छे से करते हैं इसी कारण वे शीघ्र ही स्वस्थ हो जाते हैं । मनोवैज्ञानिक परामर्श के निश्चित एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा सेल्फ कॉन्सेप्ट में परिवर्तन करके मरीज को स्वस्थ होने में सहयोग प्रदान किया जा सकता है ।

मनोवैज्ञानिक परामर्श का रोगों से बचाव, निदान एवं उपचार तीनों में महत्वपूर्ण भूमिका होती है । अनेक रोग है जिससे व्यक्ति यदि पहले से सतर्कता एवं सावधानी रखें तो उससे बचा जा सकता है इसमें परामर्श की महत्वपूर्ण भूमिका है यदि व्यक्ति पहले से जान जाए तो वह बचा रह सकता है । बहुत से ऐसे संक्रमण/ बीमारियां के छोटे-छोटे लक्षण होते हैं किंतु व्यक्ति उस पर ध्यान नहीं देता जिससे वे गंभीर रूप धारण कर लेती हैं व्यक्ति अनेक समस्याओं का सामना करता है और इलाज में अधिक खर्च करना पड़ता है यदि समय रहते परामर्श मिल जाए तो व्यक्ति समय से बीमारियों की पहचान कर उसे प्राथमिक स्तर पर ही ठीक कर सकता है । रोग हो जाने पर भी परामर्श की भूमिका होती है परामर्श की भूमिका जीवन भर चलने वाली दवाओं वाले रोग एवं संक्रमण में और भी अधिक होता है ।

परामर्श में मनोवैज्ञानिक निम्न बिंदुओं पर कार्य करता है :

1- दवाओं के हल्के दुष्प्रभाव क्या होंगे उनके लिए रोगी को क्या करना चाहिए, यह दुष्प्रभाव कितने दिन तक रह सकते हैं ।

2- दवाओं के गंभीर दुष्प्रभाव कौन-कौन से हैं तथा उनके लक्षण क्या है तथा उनके होने पर तुरंत रोगी को क्या कदम उठाने चाहिए ।

3 - किसी विशेष दवा के साथ कौन-कौन से भोज्य एवं पेय पदार्थ लेना चाहिए और कौन-कौन से नहीं लेना चाहिए और कितनी देर पहले या कितनी देर बाद लेनी चाहिए इसके लिए रोगी को तैयार करते हैं ।

4 - किसी बीमारी में व्यक्ति को अपने रहन-सहन एवं जीवन शैली में क्या परिवर्तन करना चाहिए जिससे उनका जीवन गुणवत्तापूर्ण हो सके इसके लिए उन्हें तैयार करते हैं ।

 5 - व्यक्ति अपनी चिकित्सा एवं बीमारी के बारे में किन व्यक्तियों से सूचनाएं साझा करें ताकि आवश्यकता पड़ने पर उनसे मदद मिल सके ।

6 - बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलने वाली है तो उसे क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए ताकि किसी अन्य व्यक्ति जैसे उसके पारिवारिक सदस्य एवं मित्रों में न फैले ।

7 - यदि परिवार में कोई आनुवंशिक बीमारी है तो व्यक्ति को पहले से क्या क्या सावधानियां रखनी चाहिए ताकि उसके लक्षण एवं प्रभाव को कम किया जाए तथा उसे विलंबित किया जा सके।

 8 - गंभीर एवं असाध्य बीमारी होने पर व्यक्ति अपने जीवन के उत्तरदायित्व को पूरा करने के लिए क्या और कैसे करें की योजना बनाने में सहयोग प्रदान करता है ।

9 - चिकित्सक द्वारा लिखी जांच के बारे में समुचित जानकारी प्रदान करना कि उस जांच से क्या पता चलेगा तथा उनके चिकित्सा में कैसे उपयोगी व लाभकारी है।

10 - रोगी को शाम वेगी सहयोग प्रदान करना ।

11 - रोगी को सहयोग के लिए सामाजिक ढांचा तैयार करने में सहयोग देना ।

चिकित्सा के क्षेत्र में मनोवैज्ञानिक परामर्श की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह बचाव, निदान एवं उपचार तीनों स्तरों पर अत्यंत उपयोगी साबित हुई है सभी चिकित्सालयों में प्रशिक्षित परामर्शदाता होना नितांत आवश्यक है इससे चिकित्सा क्षेत्र में अभूतपूर्व एवं सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा। रोगी को संवेगात्मक एवं भावनात्मक सहयोग मिलेगा जो उसे स्वस्थ होने में सहयोग देगा और रोगी कम समय में कम खर्च में एवं कम कठिनाइयों का सामना करते हुए चिकित्सा योजना का अनुपालन करने में समर्थ होगा तथा आर्थिक ऐसे भी बचा रहेगा शीघ्र स्वस्थ होकर व परिवार समाज एवं राष्ट्र के उत्थान में अपना योगदान देने में सक्षम होगा इस तरह से यह स्पष्ट है कि आने वाले समय में मनोवैज्ञानिक परामर्शदाताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होने वाली है