तीखापन





 *तीखापन*

 

क्यों देते हो जख़्म

बोलकर

इतना तीखा 

और फिर 

मलते हो उन पर नमक 

कुरेद कुरेद कर 

कि

कराह उठे दर्द से,

उसे

सुनने वाला भी।

सुनो ! आता है मुझे भी 

बोलना तीखा,

मैं भी जला सकती हूँ

तुम्हारा अंतर्मन

पल -प्रतिपल,

खोल सकती हूँ 

परत - दर- परत 

तुम्हारा यथार्थ नग्न

"बंदगोभी" के पत्तों  की भांति सबके समक्ष....।

 


डॉ दीपा शुक्ला

आवास विकास

लखीमपुर खीरी

उ. प्र.