वक्त है “हम दो-हमारा एक” का


       (आर. के. सिन्हा)


लालकिले से देश को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त की सुबह सही ही कहा है कि देश की सबसे बड़ी समस्या बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या ही है। आज़ादी के समय देश की आबादी मात्र तीस करोड़ थी, जबकि आज देश की जनसंख्या 130 करोड़ से अधिक हो गई है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण ही विकास के वांछित परिणाम लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है। 


इसमें 130 करोड़ की आबादी में बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, श्रीलंकाई और रोंहिंग्या घुसपैठिए शामिल ही नहीं हैं जो निरंतर देश पर बोझ बनने के साथ ही देश को तोड़ने का भी काम कर रहे हैं। इसके अलावा भूटान और नेपाल के नागरिकों को प्राप्त कुछ विशेषाधिकारों के चलते करोड़ों की संख्या में नेपाली, भूटानी और तिब्बती नागरिक भी भारतभूमि पर ही रह रहे हैं।


प्रधानमंत्री मोदी जी के आह्वान के साथ ही अब समय आ गया है हमें परिवार नियोजन के नियमों को और सख़्त करने की। तभी तो देश के प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध प्रयोग या दुरूपयोग होने की बजाय उसका विवेकपूर्ण प्रयोग करने के साथ ही उसे आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित रूप से हस्तांतरित किया जा सकेगा । अगर ऐसा नहीं किया गया तो आने वाली नस्ल हमें कभी भी माफ नहीं करेगी।


मैं स्वयं आठ भाई बहनों के परिवार में पैदा हुआ था। मेरे पिताजी भी चार भाई और तीन बहन के परिवार के बड़े भाई थे I लेकिन, अब हम आठ भाई- बहनों के बीच मात्र सत्रह बच्चे हैं। लेकिन आज तो समय बदल चुका हैI  देशहित में हम सभी को“हम दो-हमारा एक” का नारा बुलंद करने के साथ-साथ अमल में भी लाना ही होगा।  “हम दो- हमारे दो” का नारा अब पुराना हो गया है I इसे हम सबको मिलकर बदलना ही होगा।


आज 21वीं सदी में अब बेटे और बेटी में तो कोई फ़र्क़ ही नहीं रहा। मेरे परिवार में और निकट संबंधियों मे कई परिवारों में दो या तीन संतानें बेटियाँ ही हैं। बेटियाँ अपना घर भी संभाल रही हैं और मॉं -बाप की देखभाल भी बेटों से कहीं अधिक ही कर रहीं हैं। आखिर किसी परिवार को और क्या चाहिए ?


अभी के वर्तमान दर से तो वर्ष 2024 में भारत की जनसंख्या चीन की जनसंख्या से भी अधिक हो जाएगी। पिछले 70 साल में भारत की जनसंख्या में करीब चार गुना की बढ़ोतरी हुई है जबकि इसी अवधि में चीन की जनसंख्या में मात्र दोगुनी बढ़ोतरी हुई है। यानि हम भारतीय चीन की  उपेक्षा दुगुनी गति से अपनी आबादी बढ़ाने में लगे हुए हैं I इसे गर्व कहेंगे या शर्म ?


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन बनाने का लक्ष्य रखा है । अगर हमने जनसंख्या पर नियंत्रण नहीं किया तो यह लक्ष्य पहुंच से दूर होने के साथ बेमानी भी हो जाएगा।


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक आतंरिक रिपोर्ट “फ्यूचर कंजम्शन इन फास्ट ग्रोथ कंज्यूमर मार्केट : इंडिया” के अनुसार 2.5करोड़ (25 मिलियन) गरीबी रेखा से बाहर आएंगे। यह देश की आर्थिक मजबूती को दिखाती है।


वर्ष 2030 में भारत विश्व के किसी भी देश की तुलना में यंग नेशन होगा। जिसकी औसत आयु 31 वर्ष है जबकि चीन की औसत आयु 42 वर्ष और अमेरिका की 40 वर्ष होगी। अगले दशक में देश को 10 से 12 मिलियन (1 से 1.2 करोड़) काम करने वाली युवा शक्ति हर साल जुड़ती जाएगी।


लेकिन देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या हमें डराती भी है। अगले पांच साल (सन् 2024 ) में हम विश्व के सबसे बड़ी आबादी वाले देश चीन को जनसंख्या में पीछे छोड़ने वाले हैं।


वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार वर्ष 2017 में भारत की अर्थव्यवस्था 2.6 ट्रिलियन डॉलर जीडीपी वाली थी। जिसके लिए सभी देशवासियों को अपना अहम योगदान देना होगा। भारत सरकार ने वर्ष 2019 में अर्थव्यवस्था के विकास दर 7.5% वृद्धि का अनुमान है जो वैश्विक बाजार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। यह लक्ष्य 1 अरब 35 करोड़ (लगभग) जनसंख्या के साथ जो देश के महानगरों, छोटे शहरों, कस्बों, गांवों और आदिवासी व पिछड़े क्षेत्रों के लोगों के साथ प्राप्त करना है।


बढ़ती जनसंख्या के कारण देश की वर्ष 2030 में देश की 40 फीसदी जनसंख्या शहरी हो जाएगी। जिसमें 5000 छोटे शहर (50,000 से 1,00,000  आबादी वाले) और 50,000 ग्रामीण कस्बे (5,000 से 10,000 आबादी वाले) इसमें जुड़ने वाले हैं। यानि देश में ग्रामीण क्षेत्र कम होने के साथ प्राकृतिक संसाधनों पर भी मार पड़ने वाली है।


बढ़ती आबादी की यह देश के लिए चिंताजनक होने के साथ ही सतत विकास में बाधक भी है। स्वास्थ्य, शिक्षा सेवाओं के लिए विशाल इंफ्रास्ट्रकचर की आवश्यकता होगी। प्राकृतिक संसाधन हमारे देश में सीमित हैं, इसका उपयोग बेहिसाब तरीके से नहीं किया जा सकता।


हिंदू बिजनेस लाइन के अनुसार आज भी देश में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले सिर्फ 6 फीसदी लोगों को नल से पानी की आपूर्ति हो पा रही है। जबकि गरीबी रेखा से ऊपर के लोगों को नल से जल की आपूर्ति 33 फीसदी है। स्वच्छ भारत अभियान की महान सफलता के बाद भी देश में स्वच्छता के लिए अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले आज भी सिर्फ 21 फीसदी टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं। जबकि गरीबी रेखा से बाहर के लोग 62 फीसदी टायलेट का इस्तेमाल कर रहे हैं।


विश्व में होने वाली कुल मृत्यु में NCD (non communicable diseases) से होने में भारत का योगदान 62 फीसदी है। जो बढ़ती जनसंख्या के साथ और भी भयावह हो जाएगी। विश्व के कुल 10 सबसे प्रदूषित शहरों में नौ भारत के शहर है। जिसमें देश की राजधानी दिल्ली भी शामिल है।


संयुक्त राष्ट्रसंघ के अनुमान के अनुसार वर्तमान में भारत की प्रति महिला की प्रजनन दर 2.3 प्रति शिशु है। अगर इसे आधार मानें तो वर्ष 2050 में भारत की जनसंख्या 1अरब 80 करोड़ और वर्ष 2100 में भारत की जनसंख्या 2 अरब 50करोड़ होगी।


अगर प्रति महिला की प्रजनन क्षमता को घटाकर 2.1 शिशु किया जाए तो भी इस शताब्दी के अंत तक देश की जनसंख्या1अरब 90 करोड़ हो जाएगी।


यूएन की रिपोर्ट के अनुसार ही भारत की प्रजनन दर वर्ष 2035 में घटकर 1.8 प्रति महिला रह जाएगी। अगर इसे सही मान लिया जाए तो भारत की जनसंख्या वर्ष 2060 में सर्वाधिक 1 अरब 70 करोड़ होगी। इसी के आधार पर वर्ष 2100 में जनसंख्या बढ़ने की बजाय घटकर 1 अरब 50 करोड़ होगी। इस अवधि के दौरान जनसंख्या बढ़ने की बजाय घटेगी। यह आंकड़े सुखद जरूर लगते हैं अगर हम सभी ने प्रजनन दर रोकने के लिए मिलकर काम किए तो परिणाम निश्चित रूप से सुखद होगा।


सुनहरे भारत का सपना साकार करने के लिए हमें नियंत्रित जनसंख्या के साथ देश का विकास करना होगा। यही देश की तरक्की और खुशहाली का एकमात्र रास्ता है।


आइए “हम दो-हमारी जन एक” का नारा बुलंद करें तभी देश नियंत्रित  आबादी के साथ खुशहाल बन सकेगा I


 



(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)