विपश्यना सिखाता है जीवन जीने की कला

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मनुष्य इतना उलझा रहता है कि वह असल जिंदगी को जीना ही भूल जाता है। इंटरनेट की इस दुनिया में मनुष्य हर वक्त तनाव में पहले कि अपेक्षा ज्यादा देखा जाने लगा है, इस तनाव के कारण ना जाने कितने झगड़े होते है, रिश्ते टूट जाते है,और मन मुटाव एवं आपसी मतभेद होते है। मनुष्य अपना सम्पूर्ण जीवन जब बेकार की बातों में बीता देता है तब कोई एक दिन उसे पछतावा होता है कि उसने कितनी गलतियां की और अपना बहुमूल्य जीवन का समय यूहीं व्यर्थ ही बीता दिया। समय बीत रहा है और लोग अपनी मानसिक पीड़ा को दूर करने के अलग अलग उपाय ढूंढ रहे है जिसमें कुछ को तो सही राह मिल जाती है और कुछ लोग भटक भी जाते है।
आजकल मेडिटेशन और योग एवं प्राणायाम कि पूरे विश्व भर में खूब चर्चा होने लगी है, सिर्फ भारत ही नहीं अन्य विकसित देश जैसे अमेरिका, इंग्लैंड भी इस विद्या को अपनाना चाहते है, इन्हीं सब विद्या में से एक प्राचीन विद्या है जिसे लोग विपश्यना के नाम से जानते है, विपश्यना एक ऐसी विद्या है जो सिर्फ मानसिक तनाव से मुक्ति ही नहीं बल्कि जीवन को पल पल जीने का तरीका सिखाती है।
ऐसी मान्यता है कि गौतम बुद्ध ने जो निर्वाण प्राप्ति के आठ उत्तम मार्ग को बताया था वहीं विपश्यना के द्वारा बताया जाता है। विपश्यना आत्म-अवलोकन के माध्यम से आत्म-परिवर्तन का एक तरीका है। यह मन और शरीर के बीच गहरे अंतरसंबंध पर ध्यान केंद्रित करता है, जिसे शरीर के जीवन का निर्माण करने वाली भौतिक संवेदनाओं पर सीधे ध्यान देकर अनुभव किया जा सकता है, और यह लगातार मन के जीवन को परस्पर संबंधित और स्थिति में रखता है।  यह मन और शरीर की सामान्य जड़ के लिए अवलोकन-आधारित, आत्म-खोजत्मक यात्रा है, जो मानसिक अशुद्धता को भंग करती है, जिसके परिणामस्वरूप एक संतुलित मन प्यार और करुणा से भरा होता है। हम बहिर्मुखी होकर जीवन जीने कि ऐसी आदत बना लेते है कि अपने आप को कभी देख ही नहीं पाते, विपश्यना आत्मदर्शन करवाता है, जीवन जीने की कला सिखाता है।
सन् 2018 में ट्विटर के सीईओ जैक डॉर्से अपने जन्मदिन पर 10 दिनों के लिए विपश्यना करने के लिए गए और वहां से लौटने के बाद उन्होंने बताया कि उन्हें उस शिविर को पूरा करने के बाद बहुत ही शांति का अनुभव हुआ और वह आगे और भी सीखना चाहते है।
2500 वर्ष पुरानी विद्या जो भारत में लुप्त हो गई थी वह संजीव गोयनका जी की सहायता से म्यांमार से  वापस इस देश में ही नहीं लौटी बल्कि उन्होंने इस विद्या को पूरे विश्व भर में बांटा और कई लोगो के जीवन में बदलाव लाया। 
विपश्यना केंद्र के पूरे विश्व भर में 200 से भी ज्यादा केंद्र है और यहां आने वाले साधकों से किसी भी प्रकार से धन या किसी रूप से मांग नहीं कि जाती और यहा हर वर्ग के लोग आकर साधना करते है और अपने जीवन को सुखी और चिंतामुक्त बनाते है। 
क्योंकि यह वास्तव में मददगार पाया गया है, तकनीक को उसके मूल, प्रामाणिक रूप में संरक्षित करने पर बहुत जोर दिया गया है।  यह व्यावसायिक रूप से नहीं सिखाया जाता है, बल्कि इसके बजाय स्वतंत्र रूप से पेश किया जाता है।  इसके शिक्षण में शामिल किसी भी व्यक्ति को कोई सामग्री पारिश्रमिक नहीं मिलता है।  पाठ्यक्रमों के लिए कोई शुल्क नहीं है - भोजन और आवास की लागत को कवर करने के लिए भी नहीं।  सभी खर्च ऐसे लोगों से दान के द्वारा मिलते हैं, जिन्होंने एक कोर्स पूरा किया है और विपश्यना के लाभों का अनुभव किया है, दूसरों को भी इससे लाभान्वित होने का अवसर देना चाहते हैं।
 बेशक, परिणाम निरंतर अभ्यास के माध्यम से धीरे-धीरे आते हैं। दस दिनों में सभी समस्याओं को हल करने की अपेक्षा करना अवास्तविक है।  हालांकि, उस समय के भीतर, विपश्यना के बारे में आवश्यक सीखा जा सकता है ताकि इसे दैनिक जीवन में लागू किया जा सके।  जितनी अधिक तकनीक का अभ्यास किया जाता है, दुख से मुक्ति उतनी ही अधिक होती है, और पूर्ण मुक्ति के अंतिम लक्ष्य के करीब पहुंचता है।  यहां तक कि दस दिन परिणाम प्रदान कर सकते हैं जो ज्वलंत हैं और जाहिर तौर पर रोजमर्रा की जिंदगी में फायदेमंद हैं।