बागवां






बागवां

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ऐ माली  ! सुनो  

तुम्हारे परिश्रम व् लगन ने

बेतरतीब पौधों को

काट  - छांट     कर    ,

सुन्दर  आकार  में 

ढालकर  ,

शोभा   द्विगुणित

कर दी चमन की ।

 

काश  ! तुम होते माली

इस वतन के ,

खिलते फूल 

अमन के ,

बिखरती  नेह सुगंध ,

स्वस्थ होता भावी तन -मन

उन्नति शिखर पर होता वतन ।

काश !  तुम होते माली

इस वतन के ...........


दीपा शुक्ला 

लखीमपुर खीरी

   उ . प्र .।