बागवां
------
ऐ माली ! सुनो
तुम्हारे परिश्रम व् लगन ने
बेतरतीब पौधों को
काट - छांट कर ,
सुन्दर आकार में
ढालकर ,
शोभा द्विगुणित
कर दी चमन की ।
काश ! तुम होते माली
इस वतन के ,
खिलते फूल
अमन के ,
बिखरती नेह सुगंध ,
स्वस्थ होता भावी तन -मन
उन्नति शिखर पर होता वतन ।
काश ! तुम होते माली
इस वतन के ...........
दीपा शुक्ला
लखीमपुर खीरी
उ . प्र .।