खून का रंग एक है
   (   डॉ रंजना सिन्हा )

शाम चार बजे  का समय,विनीता अपने बेटों अविचल और सरल के साथ अपनी सहेली के घर जा रही थी ।घर में ससुर अकेले थे 86 वर्षीय पर स्वस्थ्य अवस्था के अनुसार।

             विनीता रिक्शे का इन्तजार कर रही थी।एक बूढी साधारण धोती मे,चश्मे को बार बार ठीक करती हुई,सिमटती हुई जल्दी जल्दी आगे बढ रही थी। विनीता अपने बच्चों मे हो रही खटपट मे बिजी थी।

             बूढी की आंखे उसे शायद चश्मे से ठीक से नहीं देख पा रही थी इसी बीच खाली रिक्शा आ गया। बूढी विनीता से टकरा कर गिर गई।"अरे अम्मा क्या हुआ? चोट तो  नहीं लगी"। बिना चेहरा देखे बूढी सिमटते हुए बोली,"राम राम अरे छू गई,मंदिर जा रही थी।

             विनीता ने पलट कर उस ओर देखा।बूढी सकपका गई।'ये क्या मांग में सिंदूर,माथे पर बिंदी';  "अरे हिन्दू हो,मैं तो मुसलमान समझी थी,बेटा माफ करना   ।

            "अम्मा आपको ऐसा नहीं सोचना चाहिये। हिन्दू मुसलमान क्या अलग अलग होते है। खून का रंग एक है,हमारा आपका सबका"। 

            बूढी की आंख का चश्मा अचानक गिर गया।