वी द पिपुल से अबकी बार ट्र्ंप सरकार





(डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा)

दुनिया के देशों के सामने रविवार 22 सितंबर को अमेरिका के ह्यूस्टन शहर का भारतीय समयानुसार रात करीब 9 बजे का  नजारा कुछ अलग ही था। दुनिया की दो बड़ी ताकतों के मुखिया एक मंच पर एक साथ हाउडी मोदी को कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। यह हमारे देश के लिए इसलिए गौरव की बात हो जाता है कि अमेरिका जो एक समय सीधे मुंह बात करने में अपनी तौहिन समझता था उससे आज हमारे प्रधानमंत्री आंख से आंख मिलाकर बात करने लगे हैं। मजे की बात यह कि अमेरिका जैसा देश और वहां की व्यवस्था भारत को राजनीतिक हथियार के रुप में उपयोग करने को मजबूर होने लगी है। दुनिया के राजनयिकों के लिए यह अमेरिका के अगले साल होने वाले चुनावों के अभियान की शुरुआत भी मानी जा रही है। और मानी भी क्यों नहीं जाएं क्योंकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने संबोधन में हमारे लोकसभा चुनावों की तर्ज पर वहां भी आखिरकार नारा दे ही दिया कि अबकी बार ट्र्ंप सरकार। इस उद्बोधन के साथ ही 50 हजार लोगों से खचाखच भरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गुंजायमान हो गया तो दुनिया के 200करोड़ लोगों द्वारा मोदी-ट्र्ंप की इस जुगलबंदी को लाइव प्रसारण को देखे जाने के दावे किए जा रहे हैं। भले ही यह दावें अतिशयोक्तिपूर्ण लगे पर इसमें कोई दो राय नहीं कि दुनिया के देशों की आंखें इस हाउडी मोदी पर टिकी रही।  यह भी अपने आप में बड़ी बात है।

इसे भारतीय विदेश नीति की बड़ी जीत कहा जाए या कुछ और पर अब यह साफ हो गया है कि आज का भारत बहुत कुछ बदल गया है। एक समय था जब दुनिया के देशों के दो पावर सेक्टर अमेरिका और सोवियत रुस होते थे। समय बदला चीन नई ताकत उभर कर आया। पर पिछले पांच छह सालों में भारत की विदेश नीति ने जिस तरह से करवट ली है उससे दुनिया के देशों के सामने भारत बराबर की शक्ति के रुप में उभरा है। आंतकवाद के खिलाफ दुनिया के देश भारत के साथ आए हैं। दुनिया के किसी देश की हिम्मत खुलकर पाकिस्तान का पक्ष लेने की नहीं हो रही है। यहां तक कि जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर दुनिया को कोई देश पाकिस्तान के पक्ष में नहीं आया है और किसी देश ने जम्मू कश्मीर में धारा 370 और 35 ए पर हमारे देश के निर्णय का दबे शब्दों में भी विरोध नहीं किया है। बल्कि आज भारत दुनिया के देशों के देशों के सामने जम्मू कश्मीर का आंतरिक मामला सिद्ध करने के साथ ही खुलकर पीओके की बात पुरजोर शब्दों में करने लगा है। कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर दुनिया का कोई देश प्रश्न चिन्ह उठाने आगे नहीं आया है। यह हमारी विदेश नीति की बड़ी जीत है।
अमेरिका के ह्ूस्टन शहर में हाउडी मोदी सम्मेलन में ट्र्ंप का मोदी के साथ आना ही अपने आप में बड़ी बात है वहीं इस सम्मेलन में 50हजार लोगों की उपस्थिति भी बड़ी बात है। रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम और मोदी टं््रप का उद्बोधन अपने आप में एक संदेश है। दोनों ही नेताओं ने खुलकर इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का संदेश दिया तो दूसरी और आर्थिक मोर्चे पर भी साझा प्रयास करने पर सहमति बनी। स्वयं ट्रं्प ने कहा कि दोनों ही देशों के संविधान के शुरुआती तीन शब्द वी द पिपुल है। इसके माध्यम से हम का संदेश दिया गया है। सीमाओं की सुरक्षा की बात भी खुलकर आई तो आपसी सहयोग के समझौते भी हुए। भले ही आलोचकों द्वारा इस मंच का उपयोग ट्र्ंप द्वारा अगले साल होने वाले चुनावों के लिए किया जाना माना जा रहा हो या फिर एक मजमें से अधिक नहीं माना जाकर नकारने का प्रयास किया जा रहा हो पर इस हाउडी मोदी के निहितार्थ को आलोचकों को भी समझना होगा। यह कोई मामूली जलसा नहीं था। यह कोई चुनावी सभा भी नहीं थी। बल्कि यह पहला मौका है जब दुनिया के दो बड़े देशों के प्रमुख इस तरह के कार्यक्रम में एक साथ आए हैं। जिस गरमजोशी से इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया और जिस गरमजोशी से मोदी-ट्र्ंप की जुगलबंदी सामने आई उससे दुनिया के देश हतप्रभ रह गए हैं। हांलाकि मोदी ने अपनी चिरपरिचित शैली में अपने परिवार से मिलाने की बात कही तो अबकी बार ट्रं्प सरकार का नारा भी दे दिया। अब इसके राजनीतिक मायने भले ही कुछ भी लगाए जाए।
आज दुनिया के देशों के सामने दो ही बड़े मुद्दे हैं और वे या तो आतंकवाद को लेकर है या फिर आर्थिक मंदी को लेकर। हाउडी मोदी कार्यक्रम ने इस्लामी आतंकवाद की खिलाफ भारत और अमेरिका के साथ लड़ने का संकल्प कर सारी दुनिया को इसके लिए आगे आने का संदेश भी दे दिया है वहीं आर्थिक क्षेत्र में भी परस्पर सहयोग के समझौते कर एक दूसरे में विश्वास व्यक्त किया है। सालाना 50 लाख टन एलएनजी का आयात के दूरगामी प्रभाव पडेंगे। इसे यों भी देखा जा सकता है कि कहीं ना कहीं चीन पर भी दबाव बनेगा और वह भारत के खिलाफ पाकिस्तान का पक्ष लेने या कुछ करने से पहले दस बार विचार करेगा। मजे की बात यह है कि धूर विरोधियों के साथ आज भारत तालमेल बनाने में सफल हो रहा है। एक और अमेरिका तो दूसरी और रुस से हमारे बेहतर ही नहीं बल्कि बहुत अच्छे संबंध है। इसी तरह से कोई इस्लामिक देश भारत की खिलाफत नहीं कर रहा है। ऐसें में हाउडी मोदी जैसे कार्यक्रमों को हल्के में नहीं लेना चाहिए बल्कि यह साफ हो जाना चाहिए कि दुनिया के देशों में भारत की भूमिका में बदलाव आया है और आज भारत पिछलग्गू देशों में ना होकर अपनी अहमियत सिद्ध करने में सफल हो गया है। इसलिए हाउडी मोदी को केवल मजमा या ट्र्ंप का चुनाव अभियान के रुप में नहीं देखकर भावी संकेतों को समझना होगा।