बाल श्रम और दुर्व्‍यापार को तत्‍काल खत्‍म करने का नोबेल विजेता  कैलाश सत्‍यार्थी ने किया आह्वान






नई दिल्‍ली - अगर भारत वैश्विक समुदाय के साथ मिलकर बाल श्रम जैसी सामाजिक बुराई को दूर करने की तत्‍काल और प्राथमिक रूप में कोशिश नहीं करता है तो बाल मजदूरों की संख्‍या बढ़कर 2025 में 12 करोड़ 10 लाख हो जाएगी।

“वर्तमान में दुनियाभर में बाल श्रमिकों की संख्‍या लगभग 15 करोड़ 20 लाख हैं। यदि बच्‍चों का दुर्व्‍यापार (ट्रैफिकिंग) इसी तरह जारी रहा, तो 2025 के अंत तक भी 12 करोड़ 10 लाख बाल श्रमिक होंगे। गौरतलब है कि दुनियाभर के बाल श्रमिकों की सबसे बड़ी आबादी भारत में होगी। इसलिए, भारत को बच्चों के शोषण के सभी रूपों को समाप्त करने के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने की दिशा में काम करना आवश्‍यक है” ।

उपरोक्‍त बातें 2014 का नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्‍त करने वाले कैलाश सत्यार्थी ने नई दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित हुए 'बच्चों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की पांचवीं वर्षगांठ' के अवसर पर कही।  

 

पिछली 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में 5 से 14 उम्र वाले बच्‍चों की आबादी लगभग 25 करोड़ 96 लाख हैं, जिसमें बाल श्रमिकों की संख्‍या करीब 1 करोड़ 1 लाख हैं।

 

ज्ञात है कि सत्यार्थी ने पांच साल पहले नोबेल शांति पुरस्कार प्राप्त करने पर कहा था, "यह पुरस्कार बाल-दासता को समाप्त करने की मेरी लड़ाई में सिर्फ एक अल्पविराम है और मुझे पूरा यकीन है कि मैं अपने जीवनकाल में बाल दासता का अंत देख पाऊंगा।"

 

नोबेल शांति पुरस्कार, जो ठीक पांच साल पहले घोषित किया गया था, रातों-रात उन लाखों बच्चों को वैश्विक सुर्खियों में ले आया, जो गुलामी, शोषण और हिंसा से पीड़ित हैं और जिसके लिए श्री सत्‍यार्थी 1980 से लड़ रहे हैं। श्री सत्यार्थी के तत्वावधान में सत्यार्थी आंदोलन के मजबूत संकल्प पर खरा उतरते हुए, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई हस्तक्षेप किए गए, जिसके परिणामस्वरूप पिछले पांच वर्षों में विभिन्न उपलब्धियां हासिल हुईं।

वैश्विक स्तर पर एक बड़ी सफलता बच्चों से संबंधित हितों को सतत विकास लक्ष्यों के ढांचे में शामिल किया जाना था, जिसे एजेंडा 2030 के रूप में भी जाना जाता है।  

अन्य कई उपलब्धियों में बाल श्रम (निषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम 2016 शामिल है, जिसके कारण 14 वर्ष तक के बच्चों को किसी भी प्रकार के रोजगार में नियोजित करना और किशोरों (14-18 वर्ष) से खतरनाक व्यवसायों में काम करवाना पूर्ण निषिद्ध हो गया। बालश्रम मुक्त भारत के लिए भारत सरकार की मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) का गठन किया गया, जो बाल श्रम के पूर्ण उन्मूलन की उपलब्धि हेतु सभी एजेंसियों के लिए प्रक्रियात्मक और जवाबदेही मैट्रिक्स निर्धारित करती है।

बाल मित्र गांवों की स्थापना हेतु राज्य में बाल श्रम को समाप्त करने के लिए कैलाश सत्यार्थी चिल्‍ड्रेन्‍स फाउंडेशन (केएससीएफ) और झारखंड सरकार के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किया गया, जो ग्रामीण क्षेत्रों में बाल शोषण को समाप्त करने और उनके अधिकारों की रक्षा करने तथा अधिकारों को बढ़ावा देने के लिए सत्यार्थी आंदोलन की एक अभिनव पहल है, ताकि सभी बच्चे स्वतंत्र, सुरक्षित और शिक्षित हों। इस मॉडल को भारत के अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा।

सामाजिक कार्यकर्ताओं, राजदूतों और अन्‍य गणमान्‍यों को संबोधित करते हुए श्री सत्यार्थी ने दुनिया को अपने दृष्टिकोण को उदार बनाने के लिए आगाह किया। उदार दृष्टिकोण के बगैर अंततः संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य 8.7 के लिए अपनी "प्रतिबद्धताओं" को पूरा नहीं किया जा सकेगा, जो 2025 के अंत तक बाल श्रम, दासता और मानव दुर्व्यापार के उन्मूलन के तत्काल उपायों की बात करता है। किसी भी तरह की उदासीनता बच्चों से संबंधित सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी ढांचे) को अधूरा छोड़ देगी।

कैलाश सत्‍यार्थी ने सभी हितधारकों की जवाबदेही तय करने का आह्वान किया, ताकि आपराधिक न्याय प्रणाली, सामाजिक उदासीनता, जलवायु परिवर्तन और चाइल्‍ड पोर्नोग्राफी के बढ़ते खतरे की गिरफत में बच्‍चे न फंसे। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि किसी भी वैश्विक नेता ने हाशिए और शोषित बच्चों के अधिकारों की बात नहीं की। गौरतलब है कि बच्‍चों की चिंता किए बगैर हम सतत विकास लक्ष्यों को कभी भी नहीं प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि सतत विकास लक्ष्‍य 2030 को पूरा करने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहयोगियों के बीच मजबूत साझेदारी की भी जरूरत है। दरअसल इसका स्‍पष्‍ट रूप से उल्‍लेख 'गोल-17' में किया गया है। लेकिन विडंबना यह है कि वर्तमान में यह साझेदारी नहीं दिख रही है।

उन्होंने चार दशकों से सबसे कमजोर और वंचित बच्चों के अधिकारों की वकालत कर रहे हैं। उन्‍होंने बाल दासता को खत्‍म करने के लिए वैश्विक समुदाय से पूरी ईमानदारी, निर्भीकता, जिम्‍मेदारी और करुणा से काम करने का आह्वान किया, ताकि बच्चों के विकास के एजेंडे को पूरा किया जा सके।आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि 2030 तक 22.50 करोड़ बच्चे और युवा स्कूल नहीं जा पाएंगे (स्रोत: यूनेस्‍को)। वहीं दूसरी ओर दुनिया की 6 प्रतिशत आबादी (जिनमें से आधे बच्चे हैं) अत्यधिक गरीबी में जीने को अभिशप्‍त होगी (स्रोत: वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट)।

दुर्भाग्‍य की बात तो यह है कि भारत बाल श्रमिकों का सबसे बड़ा हब बन गया है। इसलिए इस विकराल समस्‍या को दूर करने के लिए तत्‍काल लगन और प्राथमिकता से काम करने की जरूरत है, ताकि सतत विकास लक्ष्‍य एजेंडा 2030 को पूरा किया जा सके। सत्यार्थी आंदोलन आगामी दिनों में बच्चों से संबंधित एसडीजी (सतत विकास लक्ष्यों) को प्राप्त करने के लिए वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त बजट आवंटन की मांग करेगा। इसके अलावा सत्‍यार्थी आंदोलन बच्‍चों के हित में काम कर रहे संयुक्‍त राष्‍ट्र के सभी संगठनों यूनिसेफ, यूनेस्को, आईएलओ, यूएनएचसीआर आदि को मिलाकर ग्लोबल टास्क फोर्स के गठन की भी मांग करेगा, ताकि समय रहते हुए लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। राष्ट्रीय स्तर पर सत्यार्थी आंदोलन बच्चों से संबंधित लक्ष्यों को समय पर पूरा करने और जवाबदेही तय करने के लिए अंतर-मंत्रालयीय टास्‍क फोर्स के गठन की भी मांग करेगा। यह आंदोलन दुनियाभर में कानून प्रवर्तन एजेंसियों की क्षमता बढ़ाने और सभी हितधारकों के बीच तात्कालिकता की भावना पैदा करने की भी वकालत करेगा, ताकि आने वाले दिनों में बच्चों को विकास के एजेंडे से दूर न रखा जा सके।

बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण के खिलाफ लड़ाई सत्‍यार्थी आंदोलन की प्राथमिकता में शामिल होगी। इस अपराध को रोकने के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतरराष्ट्रीय कानून की मांग उठाई जा रही है। गौरतलब है कि इस मांग के समर्थन में कई वैश्विक नेता, धर्मगुरु, राजनयिक, राज्य प्रमुख आदि आगे आ रहे हैं। इसमें पोप फ्रांसिस भी शामिल हैं।