बगदादी के अंत के बाद भी आईएस की हिंसा जारी रहेगी

(विष्णुगुप्त)


हिंसा बरपाने वाले, निर्दोष जिंदगियों को मौत की नींद सुलाने वाले, मुस्लिम हिंसा से दुनिया को दहलाने वाले, अपने आप को अल्ला के अलावा और किसी से न डरने व झूकने का दावा करने वाले मुस्लिम आतंकवादी, आतंकवादी सरगनाएं खुद अपने अंत से डरते हैं, अपनी मौत से डरते है, कायर की तरह पीठ दिखा कर भागते हैं, कायर-डरपोक की तरह रोते हैं, अपनी औलादों के प्रति चिंता करते हैं और अपनी औलादों को सुरक्षित रखने के प्रति सचेत रहते हैं। यह सब उस समय भी सच साबित हुआ था जब अमेरिका ने अफगानिस्तान पर तालिबान सत्ता को उखाड फेंका था, अमेरिकी सैनिकों की डर से तालिबान बिना लडे अफगानिस्तान से भाग खडा हुआ था और बाद में तालिबान का नेता मुल्ला उमर का गुमनामी के दौर में मौत हो गयी थी, यह सब उस समय भी सच साबित हुआ था जब पाकिस्तान की सैनिक छावनियों के बीच छिप कर रहने वाले अलकाकयदा का सरगना ओसामा बिन लादेन अमेरिका के हाथों मारा गया था, ओसामा बिन लादेन अपने दो वीवीयों और बच्चों के साथ भयभीत जिंदगी बिता रहा था, उसका पत्र जो बाद में जाहिर हुआ था उसमें वह लिखा था कि उसके बच्चे हिंसा से दूर रहें और हिंसा मुक्त अपनी जिंदगी गुजारने के लिए अवसर प्राप्त करें, यानी कि दूसरों के बच्चों की जिंदगियां हिसा और मुस्लिम आतंकवाद से तबाह करने वाला ओसामा बिन लादेन के लिए उसकी वीवीयां और बच्चें अति महत्वपूर्ण थे। ठीक इसी प्रकार अभी-अभी अमेरिका के हाथों मारा गया अल बगदादी कायर निकला, बुजदिल निकला, डरपोक निकला, अपनी जिंदगी के प्रति अति इच्छित निकला, अपनी जिंदगी बचाने के लिए वह तरह-तरह के हथकंडे अपना रहा था, जब अमेरिकी सैनिकों ने उसे एक आपरेशन के दौरान घेरा तो वह अपनी दो वीवीयों और तीन बच्चों के साथ एक सुरंग में जा छिपा, वह जानता था कि अमेरिकी सैनिक उसे जिंदा छोडने वाले नहीं हैं, वह अपनी जिंदगी बचाने के लिए लगातार रो रहा था, अमेरिकी सैनिकों का उसने सामना करने का साहस नहीं दिखाया और उसका वीवी बच्चों सहित अंत हो गया। अपनी इस साहस भरी पराक्रम पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया को हर्ष मनाने के लिए कहते हैं और वे रहस्योधाटन करते हैं कि अल बगदादी बडा ही डरपोक था, कायर था अपनी मौत से डरा हुआ था, अपनी जान बचाने के लिए सुरंग में छिप कर जार-जार रो रहा था। 
  अगर आप मुस्लिम आतंकवाद के समर्थक नही हैं, अगर आप इस्लाम की काफिर मानसिकता का समर्थक नहीं हैं, अगर आप इस्लाम के तलवार यानी हिंसा के बल पर विस्तार की मानिसकता का समर्थक नही ंतो फिर तालिबान के सरगना मुल्ला उमर, अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन, अलकायदा का दूसरा बडा सरगना अल जवाहिरी के बाद आईएस का सरगना अल बगदादी का मारा जाना अमेरिका की महान उपलब्धि है, दुनिया की शांति के प्रति एक महान कार्य है, मुस्लिम आतंकवाद की जीवानुओं को नष्ट करने के प्रति एक महान अवसर है। सही तो यह है कि दुनिया का एक बडा वर्ग जो अपने आप को तथाकथित प्रगतिशील कहते हैं, तथाकथित बुद्धिजीवी कहते हैं, वैसी श्रेणी के लोग हर समय किसी न किसी कसौटी पर मुस्लिम आतंकवाद का समर्थन करते रहते हैं, इस्लाम की काफिर मानसिकाओ का समर्थन करते रहते हैं, इस्लाम में हिंसा की जीवानुओं को खारिज करते रहते हैं और अमेरिका के इस्लामिक आतंकवाद के खिलाफ लडाई को बकवार, हिंसापूर्ण कहते रहते हैं को जरूर धक्का लगा रहा होगा। दुनिया के नकरात्मक समूह अमेरिका की जितनी भी आलोचना कर लें पर एक बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, खारिज नहीं किया जा सकता है जहां भी लोकतंत्र को खारिज किया जाता है, हिंसा के सिर उठते हैं, वहां पर किसी न किसी तौर पर अमेरिका इसके खिलाफ खडा होता है। मुस्लिम आतंकवाद को ही ले लीजिये। दुनिया में जहां भी मुस्लिम आतंकवाद हिंसापूर्ण ढंग से शांति का दुश्मन बन बैठा है, निर्दोष जिंदगियों को गाजर -मुल्ली की तरह काटने के लिए सक्रिय है वहां पर अमेरिका की दमदार उपस्थिति मुस्लिम आतंकवाद के लिए एक अवरोधक , एक संहारक तौर पर खडी है। यह उदाहरण हमने अफगानिस्तान में देखा है, लीबिया मे देखा है, सीरिया में अभी-अभी अल बगदादी के अंत के तौर पर देखा है। अपनी अर्थव्यवस्था की परवाह नहीं करते हुए मुस्लिम आतंकवाद के खिलाफ अमेरिका लगातार संघर्ष कर रहा है, सक्रिय है, मुस्लिम आतंकवाद का पीछा कर रहा है। अमेरिकी गुप्तचर कामयाबी भी बेजोड है, अमेरिका का गुप्तचर विभाग की वीरता का ही प्रमाण है कि मुस्लिम आतंकवाद के सरगनाएं लगातार मारे जा रही हैं। अमेरिका पहले इराक में आईएस को जमींदोज किया और अब सीरिया में भी आईएस को सफाया करने के लिए पराक्रम का प्रदर्शन कर रहा है।
   प्रत्यारोपित मानसिकताएं मुस्लिम आतंकवाद के प्रेरणास्रोत बन जाती हैं, ढाल बन जाती हैं, हथकंडे बन जाती हैं, ऐसी मानसिकताएं पसरती क्यों है, बल्कि यह कहना गलत नहीं होगा कि ऐसी मानसिकताएं जान-बुझ कर प्रत्यारोपित करायी जाती है। मानसिकताएं पसारी जाती हैं कि यह अमेरिका और यूरोप की उपनिवेशवाद के खिलाफ लडाई है। जबकि सच्चाई यह है कि मुस्लिम आतंकवाद इस्लाम की काफिर मानसिकता से निकली हिंसा है, राजनीति है। तालिबान का सरगना मुल्ला उमर, अलकायदा का सरगना ओसामा बिन लादेन, अल जवाहिरी और आईएस का अभी-अभी मारा गया सरगना अल बगदादी बार-बार कहता था कि उनकी लडाई अल्ला के शासन यानी कि इस्लाम की सत्ता स्थापित करने की है, इस्लाम के विस्तार के लिए उनकी हिंसा है, दुनिया को एक न एक दिन इस्लाम के झंडे के नीचे आना ही होगा, जो इस्लाम के झंडे के नीचे नहीं आयेगा उसके खाते मे सिर्फ और सिर्फ मौत आयेगी। फिर मुस्लिम आतंकवाद के प्रति हमारी नजरिया कितुं-परंतु में भटकती क्यों हैं?
  अमेरिका या फिर फिर लोकतांत्रित दुनिया को अल बगदादी के अंत से भी ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। यह भी नहीं मान लेना चाहिए कि अल बगदादी के मारे जाने के बावजूद उसके मुस्लिम आतंकवादी संगठन आईएस का अंत हो जायेगा, यह कहना मुश्किल होगा, इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है। खास कर सीरिया की जो स्थिति है उसके अनुसार आईएस की समाप्ति की उम्मीद नहीं बनती है। इसके पीछे दुनिया की कूटनीतिक स्वार्थ है। कुछ स्वाथी कूटनीति आईएस को संरक्षण देने और आईएस के विस्तार देने में भूमिका निभा रहे हैं। सीरिया आज दुनिया के लिए एक कूटनीतिक स्वार्थ वाला देश बन गया है। सीरिया में आज कोई एक नहीं बल्कि कई देशों की सेनाओं और उसके गुर्गे हिंसक लडाई लड रहे है। एक ओर अमेरिका है तो दूसरी ओर ईरान, तुर्की, सउदी अरब, रूस जैसे देश भी है। सीरिया का शासक शिया मूल का है, ईरान शिया देशों का स्वयं भू नेता होने के कारण सीरिया के शासक के साथ खडा है वहीं रूस अपनी अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक कारण की वजह से सीरिया की तानाशाही शासन के लिए सेना की सक्रियता जारी रखे हुए हैं। तुर्की अपने दुश्मन कुर्दो के सफाये के लिए सैनिक अभियान पर है। जानना यह भी जरूरी है कि कुर्दो की वीरता का ही प्रमाण है अल बगदादी और उसके आतंकवादी संगठन आईएस की चुनौती मिली थी और उसका विस्तार रूका था। कुर्दो की सेना ने पहले इराक से अल बगदादी और आईएस को खदेडा और फिर कुर्दो की सेना ने सीरिया में अल बगदादी के आतंकवादियों का चुन-चुन कर मारी थी और उसके विस्तार पर रोक लगायी थी। पर अब समस्या तुर्की के हस्तक्षेप के कारण खडी हुई है। तुर्की और कुर्द में पुरानी लडाई है, दोनों के बीच में इस्लाम आधारित लडाई है। तुर्की ने सीरिया के अंदर कुर्दो के खिलाफ भयंकर सैनिक अभियान छेड रखा है। तुर्की के सैनिक अभियान के कारण अमेरिका और तुर्की के बीच कूटनीतिक संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गयी है।़ तुर्की सीरिया में एक वफर जोन बनाना चाहता है जहां पर न तो सीरिया के शासक की सेना की उपस्थिति हो और न ही कुर्दो की सेना की उपस्थिति हो। 
  अब यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या अल बगदादी के मारे जाने के बावजूद भी सीरिया में लडाई समाप्त हो जायेगी, आईएस जमींदोज हो जायेगा? आईएस कमजोर होगा ऐसी उम्मीद हो सकती है। यह उम्मीद होती है कि आईएस के आतंकवादी दूसरे इस्लामिक आतंकवादी संगठनों मे प्रवेश कर सकते हैं। चाहे मुस्लिम आतंकवादी तालिबान से जुडे हुए हो, चाहे अलकायदा या फिर आईएस से, सभी का उद्देश्य एक ही होता है। कोई मुस्लिम आतंकवादी संगठन कमजोर होता है तो फिर कोई दूसरा मुस्लिम आतंकवादी संगठन खडा हो जाता है, कोई दूसरी सरगनाएं खडी हो जाती हैं। जहां भी मुस्लिम आबादी है वहां पर आतंकादी मानसिकताएं हैं, आतंकवादी मानसिकताओ को सरेआम संरक्षण मिलता है। दुनिया को अब यह अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए कि आतंकवाद से इस्लाम जुडा हुआ नहीं है। फिर हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों निकलता है? जहां से इस्लामिक आतंकवाद के जीवानु निकलते हैं उस पर ही वार किये बिना दुनिया को सभ्य नहीं बनाया जा सकता है।  इस्लामिक आतंकवाद का संरक्षण देने वाली मानसिकताओं का अंत भी जरूरी है, इस पर सिर्फ अमेरकिा ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया को एकजुट होकर सोचना होना होगा, अभियानरत होना होगा।