बहुमूल्य धरोहर है औषधीय पौधे

(बाल मुकुन्द ओझा)


यह आधुनिक युग है। समय के साथ हमारी जीवन पद्धति में आमूलचूल बदलाव आया है। पठन पाठन से लेकर रहन सहन, खान पान, दवा - दारू सब कुछ परिवर्तन की भेंट चढ़ा है। कहीं यह परिवर्तन सुखदायी है तो कहीं दुखदायी। पैदल से हवाई भ्रमण और पृथ्वी से चाँद तक पहुँचने के इस दौर में पहुँचते पहुँचते हम ने बहुत कुछ सीखा और बहुत कुछ गंवाया भी है। शारीरिक श्रम के प्रति हम घोर लापरवाही का शिकार भी इस युग में हुए है। प्रगति की अंधी दौड़ में स्वस्थ जीवन की बात भी अब कागजों में रह गयी है। जड़ी बूंटियों से इलाज को भी हम भुला बैठे है। हमारे अनेक बड़े बुजुर्ग आज भी हमें औषधीय पौधों की बात बताते है। बहुत से बड़े बुजुर्ग आज भी अंग्रेजी दवाओं का सेवन नहीं करते और अपने स्वास्थ्य के राज की बातें बताते नहीं थकते मगर हम है की अपनी भागदौड़ भरी लाइफ स्टाइल में स्वस्थ जीवन के मंत्र की बातें  सुनना पसंद नहीं करते। फलस्वरूप विभिन्न शारीरिक रोगों को भोगते हुए जैसे तैसे अपने जीवन की गाड़ी को हांकते है। इस आलेख में हम पेड़ पौधों की बात कर रहे है जो हमें प्राण वायु तो देते ही है साथ ही स्वस्थ जीवन की राह भी दिखाते है। विशेषकर हमारे औषधीय पौधे जो हम से लेते बहुत कम है और देते बहुत ज्यादा है। 
पेड़-पौधे हमारे शरीर में होने वाली विभिन्न बीमारियों से छुटकारा दिलाने के लिए हमें बहुत कुछ दे सकते हैं। प्राचीन काल में मानव ने तरह-तरह के पेड़-पौधों की खोज कर खुद को निरोगी रखा। मानव सभ्यता के विकास के साथ विज्ञान ने हमें नयी नयी ऊंचाइयों तक पहुँचाया, इसमें कोई दो राय नहीं है मगर औषधीय पौधों की महत्ता कभी कम नहीं हुई। भारत में औषधीय गुण वाले असंख्य पेड़-पौधे हैं। भारतीय पुराणों, उपनिषदों, रामायण एवं महाभारत जैसे प्रमाणिक ग्रंथों में इसके उपयोग के अनेक साक्ष्य मिलते हैं। रामायण में संजीवनी बूटी की चर्चा आज भी घर घर में सुनी जा सकती है। बहुत सारी अंग्रेजी दवाइयों में आज भी औषधीय पौधों का मिश्रण किया जाता है। सर्दी, जुकाम, बुखार, बीपी, शुगर, उलटी दस्त जैसी सामान्य बीमारियों से लेकर कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों का इलाज भी हमारे औषधीय पौधों में है। यदि इन पेड़ पौधों का हम उचित रखरखाव कर विभिन्न रोगों के इलाज में सही ढंग से उपयोग करें तो ये हमारे स्वस्थ जीवन के लिए बेहद लाभदायक हो सकते है।  
बहुत सी अंग्रेजी दवाइयों के साथ आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा जैसी पद्धतियों में औषधीय पौधों का बहुतायत से प्रयोग हो रहा है।  भारत सरकार के ऑल इण्डिया को-ऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन एथ्नो-बायोलॉजी द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण में यह बताया गया है की लगभग 8 हजार पेड़-पौधे ऐसे हैं  जिनका उपयोग औषधीय गुणों के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में लगभग दो हजार, सिद्धा में लगभग एक हजार और  यूनानी में लगभग 750 पौधें ऐसे है जिनका उपयोग विभिन्न दवाओं के निर्माण में किया जाता है।
 हमारे विभिन्न ग्रंथों और प्राचीन पुस्तकों में हजारों ऐसे नुक्खे बताये गए है जो औषधीय पौधों से निकले है। हमारे देश में आज भी लाखों लोग इन नुक्खों का उपयोग करते है। नीम, तुलसी, बेंग साग, ब्राम्ही, हल्दी , चन्दन, चिरायता, अडूसारू , सदाबहार , गुलाब , सहिजन, हडजोरा, करीपत्ता, लहसून, एलोवीरा लेवेंडर, जीरा, पुदीना, गिलोय, सूरजमुखी,पीपल, आक, बरगद, आंवला, गूगल ,अदरख नीम्बू, पत्थरचूर, शतावर, अजवायन, चुकंदर ,चिरचिटी, कुल्थी,  घृतकुमारी,करेला, पिपली, मेथी ,पुनर्नवा, मदन मस्त, पिपली, चंपा, रजनीगंधा, श्वेत अपराजिता, सर्पगन्धा, अशोक और वलाक आदि औषधीय पौधों में से बहुत से ऐसे भी है जो घरों में लगाए जा सकते है। इनमें बहुत सी प्रजातियां अब लुप्तप्राय है। आवश्यकता इस बात की है इन बहु गुणकारी औषधीय पौधों के विकास की योजनाएं बनाकर आम आदमी को इनके प्रयोग और उपयोग की जानकारी दी जाएं।