बलिदान से निकली मुस्लिम महिलाओं की स्वतंत्रता

(विष्णुगुप्त)


सहर नामक की 29 वर्षीय मुस्लिम लड़की की दुनिया भर में चर्चा हो रही है, उसके साहस, उसके संघर्ष और उसके बलिदान की सराहना हो रही है और उसके साहस, संघर्ष व बलिदान को मुस्लिम महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित होने की उम्मीद जतायी जा रही है। इतनी छोटी उम्र में ही उसे अपनी आजादी का अहसास था, उसे महिलाओं की स्वतंत्रता व अधिकार का अहसास था, उसे इस्लाम के अदर में महिलाओं के प्रति असहिष्णुता,बर्बरता, हिंसा का अहसास था, उसे इस्लाम के अंदर में भीड की हिंसा का अहसास था, उसे मुस्लिम समाज में पुरूषवादी वर्चस्व का अहसास था , उसे ईरान की घोर उत्पीड़न , घोर हिंसा का अहसास था, वह जानती थी कि वह जो करने जा रही है, वह जिस हिंसक, दमनकारी मजहबी कानून को चुनौती देने जा रही है, वह जिस मुस्लिम पुरूषवादी वर्चस्व को चुनौती देने जा रही है, उसकी सजा सिर्फ और सिर्फ जेल की सजा और मौत हो सकती है। जब कोई व्यक्ति दृढ इच्छा पर सवार हो जाता है, जेल और फांसी पर लटकने तक तैयार हो जाता है तो फिर उसके लिए जेल की दीवारें, मजहबी शासन के कोडे, फांसी की रस्सी तक उसके लिए निरर्थक हो जाते हैं, डर और भय से परे हो जाते हैं, अपना जीवन बलिदान करने के लिए डर भय से मुक्त हो जाते हैं। 
                   सहर ऐसी ही मुस्लिम लडकी थी। वह बलिदान के पूर्व अपने परिवार और अपने दोस्तों को कहती थी कि किसी न किसी महिला को यह चुनौती स्वीकार करनी ही होगी, किसी न किसी को इस भेदभाव, इस हिंसक और इस उत्पीडन वाले मजहबी संहिताओं के खिलाफ पहला पत्थर फेंकना ही होगा, पहला साहस दिखाना ही होगा, पहला बलिदान करना ही होगा? ऐसा विचार आम व्यक्ति के अंदर आ ही नहीं सकते है, ऐसा विचार सिर्फ और सिर्फ क्रातिकारी व्यक्तित्व के अदर ही आता है। सहर का बलिदान यह प्रमाणित करता है कि वह एक क्रांतिकारी थी, वह एक पथ प्रदर्शक थी और इसीलिए उसके बलिादन और क्रांतिकारी व्यक्तित्व की दुनिया भर में प्रशंसा हो रही है, उसे द ब्लू गर्ल की पदवि मिली है।
  अब यहां प्रश्न उठता है कि सहर का बलिदान क्या था, उसकी क्रांतिकारी सक्रियता कैसी थी? उसने इस्लाम की मजहबी संहिताओं को किस प्रकार से चुनौती दी थी? क्या उसे महिलाओं की आजादी सुनिश्चित करने का अधिकार नहीं था? सहर उस ईरान की नागरिक थी जिस ईरान में महिलाओ की आजादी पुरूषों और संहिताओं में कैद रहती है। सहर बचपन से ही यह विचार व्यक्त करती थी कि जो काम पुरूष कर सकते हैं, जिस तरह से पुरूष घूम-फिर सकते हैं, जिस तरह से पुरूष खेल-खेल सकते हैं जिस तरह पुरूष दुनिया के आकाश में उड सकते हैं उसी प्रकार से हम क्यों नहीं कर सकते हैं। इसी विचार से प्रेरित होकर वह ईरान के अदर में जारी मजहबी संहिताओं और मजहबी कट्टरता को चुनौती देने के लिए तैयार हो गयी। एक फूटबाॅल मैंच देखने के लिए निश्चय की। वह जानती थी कि एक महिला को फूटबाॅल मैच देखने की अनुमति नहीं मिलेगी और उसे पकड कर जेल में डाल दिया जायेगा। उसने अपना भेस बदला, अपने उपर लंबा कोट डाल लिया और वह पूर्ण रूप से पुरूषवादी ड्रेस में थी। उसे यह उम्मीद थी कि पुरूषवादी ड्रेस में स्टेडियम में प्रवेश करेगी और फूटबाॅल मैच देखने में सफल हो जायेगी। पर स्टेडियम पहुंचने के पहले ही पुलिस ने उसे पकड लिया। पकडे जाने के बाद वह पुलिस वालों से उलझ पडी और सख्त लहजे में प्र्रश्न की कि जब पुरूष फूटबाॅल मैंच देख सकते हैं तो वह क्यों नहीं देख सकती है, मै ऐसे इस्लामिक सहिताओं को तोडती हूं, चुनौती देती हूं। उसकी आजादी की बात पुलिस ने खारिज कर दी थी। उसे गिरफ्तार कर लिया गया। उस पर इस्लामिक संहिताओं को तोडने और पुलिस से उलझने का मुकदमा चलाया गया। वह जमानत पर जेल से बाहर आयी थी। पर कोर्ट द्वारा सम्मन मिलने के बाद वह कोर्ट के बाहर ही आत्मदाह कर ली। आत्मदाह करने के पूर्व वह ईरानी महिलाओं की आजादी के नारे लगायी थी और ईरान में इस्लामिक संिहताओ को बर्बर बतायी थी। वह दो महीनों तक अस्पताल में रही है और जिंदगी व मौत के बीच संघर्ष करते -करते दम तोड दी थी।
  सहर के आत्मदाह और मौत के बाद दुनिया में हडकम्प मच गया। ईरान की सरकार ने पहले तो यह खबर दबाने की पूरी कोशिश की थी पर यह खबर दब नहीं सकी। सोशल मीडिया ने ईरान सरकार की कुदृष्टि तोड डाला था। सोशल मीडिया से यह खबर अमेरिका और यूरोप तक पहुंची। अमेरिकी और यूरोपीय मानवाधिकार संगठनों की नींद टूटी। अमेरिकी और यूरोपीय मानवाधिकार संगठनों ने सहर के बलिदान को पूरे अमिरीकी और यूरोपीय समुदाय में चर्चा का विषय बना दिया। यूरोप और अमेरिका की सरकारें भी जग गयी। आज अमेरिका और यूरोप में सहर को एक क्रांतिकारी और मुस्लिम महिलाओं के लिए आईना के तौर पर देखा जा रहा है। अमेरिका और यूरोप का जबरदस्त दबाव ईरान पर पडा है। अभी ईरान अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहा है। अमेरिकी प्रतिबंधों से ईरान अर्थव्यवस्था जर्जर हो गयी है, तेल के व्यापार पर संकटकारी असर पडा है।ईरान की सरकार यह समझ गयी कि सहर के बलिदान पर वह कदम नहीं उठायी और मुस्लिम महिलाओं को बर्बर व हिंसक इस्लामिक कानूनों से छूट देने की शुरूआत नहीं हुई तो फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उसे परेशानी का सामना करना पडेगा, अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ समर्थन देने वाले यूरोपीय देश उससे नाराज हो जायेंगे। ईरान की सरकार ने सहर के बलिदान को अपने लिए एक संकट मान लिया और इस संकट से निकलने के लिए महिलाओं को आजादी ही एक मात्र उपाय था। ईरान की सरकार ने मुस्लिम महिलाओं को पूर्ण आजादी देने के लिए राजी नहीं हुई पर मुस्लिम महिलाओं को आंशिक तौर पर फूटबाॅल मैच देखने की आजादी मिल गयी है। ईरान की सरकार ने वायदा किया है कि वह कबोडिया के साथ होने वाले फूटबाॅल मैच 3500 महिलाओं को मैच देखने की अनुमति देगा। 
  ऐसा पहली बार हुआ है जब ईरान को एक छोटी सी लडकी ने झुका दिया, यह पहली बार हुआ है कि जब ईरान अंतर्राष्ट्रीय दबावों के सामने झुकने के लिए बाध्य हुआ है। इससे पहले वह महिलाओं के प्रश्न पर कभी नहीं झुका। अंतर्राष्ट्रीय दबावों के सामने भी वह इस प्रकार से नहीं झुका था। जबकि महिलाओं की आजादी को लेकर ईरान में बडे-बडे आंदोलन हुए हैं, सैकडो क्यों बल्कि हजारों महिलाओं ने अपना बलिदान किया है, बर्बर और अमानवीय इस्लामिक संहिताओं को चुनौती देकर अपना जीवन संकट में डाली और जेल गयी, जीवन खोयी थी। ईरान कभी एक उदार समाज में गतिमान था, ईरान पर मजहबी संहितांए दूर-दूर तक नहीं थी, पुरूषों के समान महिलाएं भी सहचर थी। एकाएक 1979 में ईरानी महिलाओं पर बज्रपात हुआ। ईरान में इस्लामिक भ्रांति का कब्जा हो गया। ईरान की राजशाही समाप्त हो गयी। ईरान पर रूढिवादी शिया शासन कायम हो गया। ईरान की शिया शासन मुस्लिम महिलाओं की कसौटी पर बर्बर, अमानवीय और हिंसक रही है। महिलओं की आजादी को लूट लिया गया। महिलाओ की आजादी को बर्बर शिया सरकार की हिंसा के नीचे दबा दिया गया। महिलाओं को बुर्के में कैद कर दिया गया। महिलाएं सार्वजनिक स्थल पर गतिशील नहीं हो सकती है, महिलाए न तो कोई खेल देख सकती है और न ही वह कोई खेल खेल सकती है। पुरूषो के साथ ही महिलाएं घर से बाहर निकल सकती हैं। तलाक देने का अधिकार भी महिलाओ से लूट लिया गया। मुस्लिम महिलाओ को संगीत सुनने और फिल्म देखने तक का प्रतिबंध लगा दिया गया। आज भी मुस्लिम महिलाएं बर्बर हिंसक और अमानवीय इस्लामिक संहिताओं की कैद में रहने के लिए बाध्य हैं।
        ईरान ही क्यों बल्कि पूरी मुस्लिम दुनिया की सोच महिलाओं की कसौटी पर अभी भी बदली नहीं है। मुस्लिम महिलाओं को अर्थव्यवस्था से भी अलग कर दिया गया है। यही कारण है कि मुस्लिम जगत की अर्थव्यवस्था यूरोप और अमेरिका के आगे कहीं नहीं ठहरती है, विकास की कसौटी पर मुस्लिम दुनिया आज भी पाषाण युग में ही विचरण कर रही है। आधी आबादी को अलग कर कोई भी देश अपनी बेहतर किस्मत नहीं बना सकता है। सहर का बलिदान निश्चित तौर दुनिया की मुस्लिम महिलाओ के बीच प्रेरणा का विषय बनेगा और बर्बर, हिंसक व अमानवीय महिला संहिताओं के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं की आवाज और भी तेज होगी।