दीपावली रोशनी का पर्व है शोर और धुएं का नहीं

(बाल मुकुन्द ओझा)


दीपावली हंसी खुशी, समता समानता, भाईचारे और रोशनी का त्योहार है। कानफोडू शोर और खतरनाक धुएं का नहीं। इस भावना को पटाखों के शोर में गुम न होने दें। त्योहार अवश्य मनाएं मगर अपनी सेहत, सुरक्षा और दूसरों को अनदेखा करके नहीं। त्योहार और खुशी के मौकों पर पटाखे छोड़ने की हमारी प्राचीन परम्परा रही है। एक समय था जब देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े बड़े मैदान होते थे। हमारी गलियां और चैक भी बड़े होते थे। लोग मिलजुलकर पर्व और खुशियां मनाते थे। आबादी विस्फोट और शहरीकरण ने हमारी इस विरासत को चैपट कर दिया। पटाखे भी खतरनाक गैसों से भरे जाने लगे। सुविधाएँ सिकुड़ जाने और हमारी आधुनिक लाइफ स्टाइल के कारण पटाखों के शोर और ध्वनि प्रदूषण से स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या उत्पन्न होगयी। फलस्वरूप देश की सर्वोच्च अदालत को हस्तक्षेप करना पड़ा। पटाखों के धंधे में लगे लाखों लोगों के रोजगार और लोगों को पटाखों से होने वाली हानि से बचाने के लिए गाइड लाइन तय करनी पड़ी। प्रदूषण से बचाने वाले ग्रीन पटाखों का व्यवसाय भी कतिपय कारणों से हाल फिलहाल गति नहीं पकड़ सका। 
दिवाली के दौरान छोड़े जाने वाले तेज आवाज के पटाखे पर्यावरण पर कहर बरपाने के अलावा जन स्वास्थ्य के लिये खतरे पैदा कर सकते हैं। दीपमालिका के पर्व पर पटाखों से होने वाले नुकसान को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत की चिंता न केवल जायज है अपितु देशवासियों के भी व्यापक हित में है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम् फैसले में वायु एवं ध्वनि प्रदुषण से होने वाले खतरे के मधे नजर देश के सबसे बड़े त्योहर दीपावली पर रात के आठ बजे से दस बजे तक पटाखे चलाने की अनुमति दी है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ कहा है कि केवल उन्हीं पटाखों को बेचने की अनुमति होगी जिससे पर्यावरण को कम से कम नुकसान हो।  कोई भी पटाखा 125 डैसीबल से ऊंची आवाज वाला नहीं होना चाहिए, क्योंकि अधिक ऊंची आवाज वाले पटाखों के प्रदूषण से बीमार व्यक्तियों, गर्भवती महिलाओं, छोटे बच्चों और पशु-पक्षियों को काफी नुक्सान पहुंचता है। 
दिवाली के मौके पर पटाखे जलाने के दरम्यान बहुत से लोगों के जल जाने की शिकायत आती है। प्रदुषण  और तेज धमाकों की वजह से आंखों में जलन, दम घुटने, हार्ट अटैक और कान बंद होने जैसी दिक्कतें भी आम हैं। पटाखों एवं आतिशबाजी के अनियंत्रित प्रयोग से ध्वनि एवं वायु प्रदुषण होता है। पटाखों से ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलता है। पर्यावरण में कार्बन डाई ऑक्साइड और कार्बन मोनो ऑक्साइड का स्तर बढ़ जाता है। ये गैसें हवा में मिलकर श्वांस रोगियों, बुजुर्गो और बच्चों को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। पटाखों के तेज आवाज से ध्वनि प्रदूषण फैलता है। इससे जहां कान का पर्दा फटने की आशंका रहती है। ध्वनि प्रदूषण से होने वाली बहुत ही सामान्य समस्या बीमारी से संबंधी चिन्ता, बेचैनी, बातचीत करने में समस्या, बोलने में व्यवधान, सुनने में समस्या, उत्पादकता में कमी, सोने के समय व्यवधान, थकान, सिरदर्द, चिड़चिड़ापन, घबराहट, कमजोरी, ध्वनि की संवेदन शीलता में कमी जिसे हमारे शरीर की लय बनाये रखने के लिये हमारे कान महसूस करते हैं, आदि। यह लंबी समयावधि में धीरे-धीरे सुनने की क्षमता को कम करता है। 
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के अनुसार पटाखे जलाने से कार्बन डाई ऑक्साइड सहित कई हानिकारक गैसें और पदार्थ निकलते हैं, जो पर्यावण के साथ शरीर को भी सीधे प्रभावित करते हैं। दीपावली के समय मौसम में बदलाव होता है, हवा ठंडी तथा धीरे-धीरे बहती है। इससे प्रदूषित हवा शरीर को नुकसान पहुंचाती है। पहले से ही प्रदूषण का स्तर मानक से अधिक है, पटाखों से यह और बढ़ जाता है। इसे ध्यान में रखते हुए देशवासी पर्यावरण तथा अपने स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए प्रदूषण मुक्त दीपावली मनाएं तो यह सब के हित में होगा। पर्यावरण की शुद्धता हमारे लिए उतना ही जरूरी है, जितना कि भोजन। हमें यह ध्यान रखना होगा कि पर्यावरण को कोई हानि न हो।