गोधन को समर्पित है गोवर्धन पूजा




(देवानंद राय)

वैसे तो अपना देश भारत त्योहारों का देश कहा जाता है जहां हर महीने नहीं हर हफ्ते यहां तक कि हर दिन कोई न कोई व्रत जयंती और त्योहार होते ही रहते हैं पर उन्हें त्योहारों में से कुछ त्यौहार ऐसे होते हैं जिनकी भव्यता विशिष्टता और विशेषता अन्य त्योहारों से अलग होती हैं जो उन्हें अलग बनाती है हाल ही में बीती दीपावली भी ऐसा ही त्यौहार था जिसमें आम से लेकर खास तक राजा से लेकर रंग तक अमीर से लेकर गरीब तक देश के हर हिस्से का तब का एक सूत्र में बंधकर दीप जलाता है मां लक्ष्मी की आराधना करता है मां लक्ष्मी उसके जीवन को सुख समृद्धि और धन दौलत से भर दे यह कामना करता है ऐसी ही एक और पूजा है जो गोवर्धन पूजा के नाम से जानी जाती है दीपावली के दूसरे दिन शाम को गोवर्धन पूजा होता है यह अन्नकूट के नाम से भी जानी जाती है इस दिन गौ माता और मथुरा वृंदावन की भूमि की आन बान शान और मान गोवर्धन पर्वत की विशेष पूजा अर्चना पूरे विधि विधान से की जाती है गोवर्धन पूजा का त्यौहार हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है जो इस साल 28 अक्टूबर को पड़ रही है अर्थात दीपावली के 1 दिन बाद गोवर्धन पूजा भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है पुराणों के अनुसार द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी भगवान श्रीकृष्ण अपने शाखाओं और गुप्ता वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि वहां गोपियां 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच गाकर उत्सव मना रही हैं श्री कृष्ण जी के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज के दिन वृता सुर को मारने वाले तथा में गो और देवताओं के राजा इंद्र का पूजन होता है इसे रोज यज्ञ कहते हैं इससे प्रसन्न होकर देवराज इंद्र ब्रज में वर्षा करते हैं जिससे प्रचुर अन्य पैदा होता है भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि इंद्र में क्या सकती है उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है जिसके कारण वर्षा होती है अतः हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए इस पर विवाद होने के बाद तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे यह बात जाकर नारद जी ने देवराज इंद्र को बताई यह यह बात सुनकर देवराज गुस्से में लाल पीले हो गए उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर भयंकर और प्रलयंकारी वर्षा उत्पन्न करें ब्रज में मूसलाधार वर्षा होने लगी इंद्र को अपने पद का बड़ा घमंड था वह समझते थे कि मैं ही त्रिलोकी का ईश्वर हूं इस कारण उन्होंने क्रोध से तिलमिला रिप्लाई करने वाले मेघों के संवर तक ना मनगढ़ को ब्रिज पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी और कहा इन जंगली वालों को इतना घमंड सचमुच एक्शन का ही नशा है भला देखो तो सही एक साधारण मनुष्य के बल पर देवराज इंद्र का अपमान करना शुरू कर दिया है इंद्र के इस प्रकार के प्रलय की आज्ञा से मेघ बड़ी वेग से ब्रज की ओर चढ़ाए और मूसलाधार वर्षा करके सारे ब्रिज को पीड़ित करने लगे चारों ओर बिजलियां चमकने लगी बादल आपस में टकराने लगे और इसी प्रचंड आंधी की प्रेरणा से उन्हीं बरसने लगे बारिश से भयभीत होकर सभी ग्रुप वाले श्री कृष्ण जी की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगी गोपियों की पुकार सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले तुम सब गोवर्धन पर्वत की शरण में चलो वह सब की रक्षा करेंगे सब ग्रुप वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए श्री कृष्ण ने अपने कनिष्ठ का अर्थ सबसे छोटी उंगली पर गोवर्धन उठाकर एक छाता तान दिया था इसके बाद इंद्रदेव और अधिक क्रोधित हो गए तथा वर्षा की गति और तेज कर दी इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए तब भगवान श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें और शेषनाग से कहा कि आप अमीर बनकर पर्वत की ओर आने वाले वर्षा जल को रोके इंद्रदेव लगातार दिन-रात मूसलाधार वर्षा करते रहे श्री कृष्ण ने सात दिनों तक लगातार अपने हाथ पर पर्वत को उठाए रखा इतना ही समय बीत जाने के बाद ब्रज वासियों को यह एहसास हुआ कि कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं है तब इंद्र ब्रह्मा जी के पास गए और उन्हें ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण कोई और नहीं स्वयं हरि विष्णु के अवतार हैं इतना सुनते ही व श्री कृष्ण जी के पास जाकर उनसे क्षमा मांगने लगा इसके बाद देवराज इंद्र ने श्री कृष्ण की पूजा की  और उन्हें भोग लगाया  तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा कायम है मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान श्री कृष्ण प्रसन्न होते हैं इस दिन गाय के गोबर के टीले बनाने की भी परंपरा है जिन्हें फूलों से सजाया जाता है और इसके आसपास दीपक जलाए जाते हैं इन तीनों की परिक्रमा भी की जाती है जिसे गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा के जैसा माना जाता है गोवर्धन पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है भारतीय लोक जीवन में इस पर्व का विशेष महत्व है इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा और स्पष्ट संबंध दिखाई देता है इस पर्व की मान्यता और लोककथा भी यही बस लाती है गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है शास्त्रों के अनुसार गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंदा गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है इसलिए गांव के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोवर्धन की पूजा की जाती है भारत के विभिन्न राज्यों जैसे पंजाब हरियाणा उत्तर प्रदेश बिहार के सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठानों में से एक विशेष रूप से यह मथुरा तथा वृंदावन में मनाई जाती है गोवर्धन पूजा के दिन प्रातः गाय के गोबर से गोवर्धन बनाया जाता है अनेक स्थानों पर इसके मनुष्य आकार बनाकर उसको लताओं आदि से सजाया जाता है शाम को गोवर्धन की पूजा की जाती है पूजा में धूप दीप नैवेद्य जल फल फूल खिल बताते आदि का प्रयोग किया जाता है गोवर्धन में लूंगा अपामार्ग अनिवार्य रूप से रखा जाता है पूजा के बाद गोवर्धन जी की परिक्रमा उनकी जय बोलते हुए लगाई जाती है परिक्रमा के समय एक व्यक्ति हाथ में जल का लोटा व अन्य खील अर्थात जो लेकर चलते हैं जल के लोटे से पानी की धारा गिरती हुई तथा अन्य होते हुए परिक्रमा करते हैं गोवर्धन जी गोबर से लेटे हुए पुरुष के रूप मेंबनाए जाते हैं उनकी नाभि के स्थान कटोरी या मिट्टी का दीपक रख दिया जाता है जिसमें दूध दही गंगा जल का बताशे आदि पूजा करते समय डालने जाते हैं अन्नकूट में चंद्र दर्शन अशुभ माना जाता है यदि प्रतिपदा में दुखिया हो तो अन्य समस्या को मनाई जाती है इस दिन पूजा का समय कहीं प्रातकाल तो कहीं दोपहर और कहीं संध्या के समय गोवर्धन की पूजा होती है पूजन करते समय गोवर्धन धरा धाम गोकुल प्राण कारक विष्णु बाहु कृतु छाया गवाह कोटी प्रदो हवा श्लोक कहा जाता है इस पूजा का उल्लेख महाभारत में भी है सुखदेव जी परीक्षित को बताते हैं कि जब श्री कृष्ण ने देवराज इंद्र का घमंड चूर चूर किया उस समय आकाश में स्थित देवता साथ देते गंधर्व और चारण आदि प्रसन्न होकर भगवान की स्तुति करने लगे उन पर फूलों की वर्षा करने लगे स्वर्ग में देवता लोग शंग बजाने लगे गोवर्धन पर्वत आज भी मथुरा में है यहां पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने लीला में गौ चारण लीला ही है पुराणों के अनुसार द्वापर युग इन गोवर्धन पर्वत आज भी अपने विशालकाय रूप में खड़ा है सात कोस परिक्रमा वाले इस गोवर्धन की पूजा पूरे विश्व में होती है आज गोवर्धन को ब्रज का हृदय माना जाता है जब सोलह कला अवतारी श्री कृष्ण अवतारी लीलाओं का अनुसरण करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन पूजा और गोवर्धन पर्वत धारण कर ब्रज वासियों की रक्षा का संकल्प किया और स्वयं गोवर्धन पर्वत ईश्वरी प्रदान किया आईएएस गोवर्धन पूजा के अवसर पर हम सभी गायों का सम्मान करें गोधन की रक्षा करें जिससे हम अपने जीवन को सुख और समृद्धि से भर पाए आप सभी को गोवर्धन पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं ।