केजरीवाल जी, बाहरी नहीं हैं बिहारी

(आर.के.सिन्हा)


500 रूपये का टिकट लेकर आ जाते हैं और फिर लाखों रुपये का मुफ्त इलाज करवाकर वापस चले जाते हैं। क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री  को इतना संवेदनहीन और सडकछाप होना  शोभा देता है? क्या दिल्ली के अस्पतालों में इलाज के लिए बिहारियों का आना निषेध है ?  क्या दिल्ली में अन्य राज्यों का कोई हक ही नहीं है ? क्या दिल्ली बिहार वालों की राजधानी नहीं है? क्या  एम्स जैसे श्रेष्ठ अस्पताल में कोई बिहार  वासी इलाज न करवाये ? केजरीवाल जी आपको इन सवालों के उत्तर तो देने ही होंगे। वे जरा यह बता दें कि वे कब से दिल्ली वाले हो गए। वे पहली बार जब दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे तब वे दिल्ली के पास गाजियाबाद  में रहते थे। उनका तो दिल्ली में अपना वोट भी नहीं था। तब उनसे किसी ने नहीं कहा था कि वे मूल रूप से हरियाणा से हैं और रहते हैं उत्तर प्रदेश में और चुनाव दिल्ली विधानसभा का लड़ रहे हैं।  चूंकि वे भारत के नागरिक हैं इसलिए उन्हें देश के किसी भी भाग में जाकर चुनाव लड़ने या इलाज करवाने का हक है। वे भी अस्वस्थ होने पर कर्नाटक की राजधानी  बैंगलुरू में बार.बार जाते रहे हैं। तब तो उनसे किसी कन्नड़ भाई ने  नहीं पूछा कि वे दिल्ली के मुख्यमंत्री होकर  कर्नाटक में क्या कर रहे हैं।


मुझे कहने दीजिए पर केजरीवाल सरीखे नेताओं के कारण ही देश कमजोर होता है और विभिन्न प्रदेशों के  नागरिकों में परस्पर अविश्वास की भावना पैदा होती है। हाल ही में देश ने जम्मू.कश्मीर से धाऱा 370 और 35 ए को समाप्त करने के बाद यह संदेश दिया कि यह देश एक है और सबके लिए है। इसके सभी संसाधनों पर सबका समान अधिकार है। यहां पर जातिएधर्म एवं  लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं होगा। पर  दुखद है कि एक प्रदेश का निर्वाचित  मुख्यमंत्री जिसने संविधान की शपथ ले रखी है  एक अन्य प्रदेश के नागरिकों पर ओछी टिप्पणी कर रहा है।


सच में कभी.कभी लगता है कि जब सारा संसार आगे बढ़ रहा है तब हम अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप  के पिता जर्मनी से अमेरिका में आकर बसे थे। अमेरिकी समाज ने उन्हें अपने देश में आगे बढ़ने के इतने अवसर दिए कि उनका पुत्र उस देश का राष्ट्रपति ही बन गया। इसी तरह से बराक ओबामा के पिता केन्या से थे। ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बन गए।  हमारे अपने  बहुत से भारतवंशी संसार के विभिन्न देशों के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन रहे हैं। साठ के दशक के शुरू में कैरिबियाई देश गुयाना के राष्ट्रपति छेदी जगन बने थे। मारीशस के प्रधानमंत्री; बाद में राष्ट्रपति भी चाचा शिवसागर रामगुलाम बने थे।इन सबके पुऱखे बिहार से ही  हजारों मील दूर गुयाना और मारीशस में गन्ने के खेतों में काम करने के लिए गए थे।  अब भी मारीशस,फीजी,सिंगापुरए कनाडा  समेत लगभग दो दर्जन  देशों की संसद में भारतीय हैं। उनसे वहां पर किसी ने यह नहीं कहा कि वे भारत से हैं। इसलिए उन्हें संसद  के लिए नहीं चुना जा सकता है। पर भारतीयों को अपने ही मुल्क में अपमानित किया जा रहा है। केजरीवाल यही तो कर रहे हैं।


कोई बताए कि बिहारियों का कसूर क्या हैघ? उन्हें महाराष्ट्र में राज ठाकरे के लफंगे मारते.पीटते हैं।  केजरीवाल से पहले उनकी पूर्ववर्ती स्वर्गीया शीला दीक्षित ने भी कहा था कि दिल्ली में पूर्वांचल  के लोगों के आने  के कारण स्थिति  बदत्तर हो रही है।  


मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री  कमलनाथ भी उन  मुख्यमंत्रियों  में शामिल हो गए हैंएजिन्हें बिहार और उत्तर प्रदेश  वालों से चिढ़ है। मध्य प्रदेश में  मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होते ही कमलनाथ ने अपनी संकुचित मानसिकता प्रदर्शित कर दी थी । उन्होंने तब कहा  था कि  प्रदेश में स्थानीय लोगों को नौकरी नहीं मिलने का कारण  बिहार और उत्तर प्रदेश के लोग हैं। हालांकि कमलनाथ खुद भी मध्य प्रदेश से नहीं हैं। उनका जन्म भी कानपुर में हुआए वे हमेशा दिल्ली में ही रहे। वे सिर्फ लोकसभा का चुनाव मध्य प्रदेश से लड़ते  रहे हैं।


दरअसल समस्या के मूल में आबादी कारण है जिस पर काबू पाने के लिए ठोस पहल करने की जरूरत है। बिहारियों को बाहरी कहना या मारना देश के संघीय ढांचे पर चोट पहुंचाएगा।  यह स्थिति हर हालत में थमनी  चाहिए। अब शीला दीक्षित को ही लें। वे मूलतरू पंजाब से थी । उनका विवाह उत्तर प्रदेश के एक परिवार में हुआ। पर दिल्ली का मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहारी बाहरी लगने लगे।   उन्होंने  2007 में  राजधानी की तमाम समस्याओं के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार से आकर बसनेवाले लोगों को ज़िम्मेदार ठहरा दिया था।  तब शीला दीक्षित ने कहा था कि दिल्ली एक संपन्न राज्य है और यहाँ जीवनयापन के लिए बाहर से और विशेषकर उत्तर प्रदेश तथा बिहार से बड़ी संख्या में लोग आते है और यहीं बस जाते हैं। इस कारण से यहां पर समस्याएं बढ़ रही हैं।राज ठाकरे ए शीला दीक्षित ए केजरीवाल जैसे लोग यह क्यों भूल जाते हैं कि दिल्ली और मुंबई को इतना आलीशान बनाने में ख़ून. पसीना भी तो बिहारियों और पूर्वॉंचलियों का ही बहा है। उनका अब कोई हक़ ही नहीं बनता क्याघ्


 केजरीवाल और  कमलनाथ जैसे नेताओं को क्यों समझ नहीं आता है कि सिर्फ समावेशी समाज ही आगे बढ़ते हैं। असम में भी संदिग्ध उल्फा आतंकवादियों के हाथों एक हिंदी.भाषी व्यापारी और उसकी बेटी की हत्या कर दी गई थी। असम में जब चरमपंथी संगठन उल्फा को अपनी ताकत दिखानी होती है तब वह निर्दोष हिंदी भाषियों ;उत्तर प्रदेश.बिहार वालों को ही मारने लगता है। असम तथा मणिपुर में  हिन्दी भाषियों पर लगातार हमले होते रहे हैं। उधर  हिन्दी भाषी का अर्थ बिहारी और यूपी वाले से होता है। अपना भारत सबका है। यहां पर जनता का कोई निर्वाचित व्यक्ति संकुचित बयानबाजी करे तो वास्तव में बड़ा कष्ट होता है। इस तरह के तत्वों को चुनाव में ख़ारिज किया जाना चाहिए।


 


(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)