महाराष्ट्र की महाराजनीति का महामजाक




(देवानंद राय)

और साधो सुनाओ राष्ट्र में क्या चल रहा है ? माधो पूरे राष्ट्र में जय श्री राम चल रहा है पर इन दिनों राष्ट्र  के महाराष्ट्र में महा मजाक भी चल रहा है कैसे साधो ? अरे भैया पवार साहब कह रहे हैं हमें पावर चाहिए शिवसेना सेनापति नहीं बनना चाहती उधो सीधे राजा बनना चाहते हैं कौन नहीं चाहता उनके वंश का कुलदीप "आदित्य" बनकर चमके पर एक चैनल ने तो उन्हें अगला आलू से सोना बनाने वाले बाबा का नया वर्जन बताया था हां वह गलती से कह दिया था माधव पर वह गलती तो अब सही होती दिख रही है क्या कर सकते हैं बीजेपी का कमल इस बार पूरी तरह खिला नहीं मिलजुल कर सरकार बनाने की कोशिश की पर ना तो उधर पूरा कमल खिला ना देवेंद्र फिर से राज्य के देवेंद्र बन पाए अब राज्यपाल कोश्यारी जी को थोड़ा होशियारी दिखा दे तो मजा ही आ जाए कांग्रेस से कुछ उम्मीद नहीं उनके पंजे में अब दम भी नहीं कुल मिलाकर इस राजनीति में सबसे ज्यादा हंसी का पात्र शिवसेना बना सबसे ज्यादा टशन में वही थे पर सत्ता का सामना करना और सामना में रोज ऊटपटांग लिखना दोनों अलग चीजें हैं तीर धनुष वालों ने छप्पन सीटें जीतकर अब तक छप्पन राज करेंगे अप्पन इधर घड़ी वालों ने पहले कहा अपना टाइम नहीं आया हम विपक्ष में बैठेंगे पर दूसरों को ठेंगा दिखाकर अपना टाइम आयेगा कहकर सरकार बनाने की बात कहने लगा सुना है खुदा ने उनकी सुन ली जो वह पहले कहा करते थे अपना टाइम अभी नहीं आया इस बार सही मायनों में माधो मोटा भाई को टक्कर लेने के लिए पवार जैसा पावरफुल आदमी मिला है इसलिए वर्तमान राजनीति के चाणक्य ने अपने पत्ते नहीं खोले माधव राजनीति के लिए क्या जरूरी है साधु राजनीति के लिए साम-दाम-दंड-भेद तब जरूरी है पर एक उचित मात्रा में आज शिवसेना ने इन सब का प्रयोग करके अपनी हालत ऐसी कर ली है कि वह अब किस मुंह से कमल वालों का कमल खिलाएं उसे खुद समझ नहीं आ रहा कमल के फूल वालों को फूल बनाने के चक्कर में खुद गेंदा फूल बनकर रहेगा उनके इस वाक्य एक मशहूर शायर की शायरी याद आती है "दुश्मनी जम कर करो लेकिन गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा ना हो" कुछ लोग सवाल सही कह रहे हैं जम्मू कश्मीर में कमल वालों ने जब कलम दवात वालों के साथ गठबंधन का सरकार बनाया और वितरित विचारधारा के बावजूद पीडीपी वालों को सीएम बनाया तो ऐसा महाराष्ट्र में क्यों नहीं होना चाहिए पर हिंदुत्व का आड़ लेकर किसी एक परिवार की भक्ति करना कैसे सही हो सकता है अब राष्ट्रपति शासन से महाराष्ट्र में थोड़ी शांति होगी फिर तैयारी होगी लड़ाई पर निकलने की अब बच्चे परीक्षा में चर्चित मुहावरा "दुविधा में दोनों गए माया मिली ना राम" के उदाहरण में शिवसेना को लिखेंगे चलो अच्छा हुआ माधव इतने दिनों से महाराष्ट्र में महा राजनीति का महा नाटक जो चालू हुआ है था वह बंद हुआ कांग्रेश के पंजे में 44 होकर भी वह सत्ता के चारों खाने में फिट नहीं हो पा रही थी और कमल वाले 105 होकर भी सत्ता के पास पहुंच नहीं सके सुना है संजय जानबूझकर इस सप्ताह लीला की महाभारत से भागकर लीलावती में भर्ती हुआ क्योंकि उसे पता था आगे क्या होने वाला है आखिर वह दिव्यदृष्टि वाला जो ठहरा उससे अधिक वह किसी ठाकरे का कुपित होकर ठोकर नहीं खाना चाहता था खैर उसके राज भक्ति भी क्या याद की जाएगी लीलावती से भी ट्विटर पर लीला चलता रहा चलते चलते संजय जी को मेरा गुल खिले गुलशन खिले और मिले गुलदस्ते लीलावती में लेटे रावत जी को सलाम नमस्ते वह कह रहे थे उनके साथ 170 विधायक हैं पर हाथ में एक भी नहीं यही हकीकत है इतना कुछ होने के बावजूद भी शिवसेना कल कहेगी उसे इस नौटंकी से बहुत कुछ मिला पर वह बता नहीं पाएगी कि उसे क्या मिला पहले उपमुख्यमंत्री हमारा होगा फिर 50-50 वाला फार्मूला अपनाना होगा फिर सीधे मुख्यमंत्री पद हमारा है न्यूज़ चैनलों के पंच लाइनओं ने पब्लिक से कम उनके एंकरो को ही कंफ्यूज कर रखा है कि वह अब कौन सा नया पंंच चलाएं चलते चलते किसी की चंद लाइने याद आती है
 "ना खुदा मिला न विसाले सनम

" इधर के रहे ना उधर के रहे हम"