महिला हिंसा में भारत अव्वल

(बाल मुकुन्द ओझा)


25 नवंबर का दिन दुनियाभर में महिला हिंसा के उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस आयोजन का उद्देश्य महिलाओं को हिंसा के प्रति जागरूक करना और महिला समुदाय के लिए काम करने वाले समूहों के बीच इसके समाधान के लिए चर्चा करना है। साथ ही महिलाओं को हिंसा से मुक्त कराना है। यह दिवस रश्मि होता जा रहा है। इस दिन हम महिला सुरक्षा, समानता, जागरूकता और सशक्तिकरण की जोर-शोर से चर्चा करते हैं और समारोह का आयोजन कर उन्हें सम्मानित करते हैं। मगर आज के दिन हमें इस दिखावे और वास्तविकता को समझना होगा। हिंसा के उन्मूलन दिवस पर आधी आबादी की वास्तविकता और धरातलीय चुनौतियों को समझने की जरूरत है। मुट्ठी भर महिलाओं के आगे बढ़ने से सम्पूर्ण महिला समाज का उत्थान नहीं होगा। महिला समानता और सुरक्षा आज सबसे अहम मुद्दा है, जिसे किसी भी हालत में नकारा नहीं जा सकता। सच तो यह है कि एक छोटे से गांव से देश की राजधानी तक महिला सुरक्षित नहीं है। अंधेरा होते-होते महिला प्रगति और विकास की बातें छू-मंतर हो जाती हैं। रात में विचरण करना बेहद डरावना लगता है। कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित घर पहुँचने की चिंता सताने लगती है। ऐसे में जरूरी है कि हम नारी समानता और सुरक्षा की बात पर गहराई से मंथन करें। 
देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कमी नहीं आरही है। भारत में आए दिन महिलाएं हिंसा और अत्याचारों का शिकार हो रही हैं। घर से लेकर सड़क तक कहीं भी महिला सुरक्षित नहीं है। महिलाओं के साथ अत्याचार, शारीरिक शोषण और घरेलू हिंसा के मामले सामने आते हैं लेकिन शारीरिक शोषण के मामलों का ग्राफ काफी ऊपर है। यौन अपराधों पर सख्त कानूनों के बावजूद भी जमीनी स्तर पर कोई सुधार नहीं हुआ है। देश में यौन हिंसा के लगातार सामने आ रहे मामलों की वजह से महिलाओं के प्रति समाज के नजरिये पर फिर चर्चा शुरू हो गई है। पिछले कुछ अर्से में महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार, छेड़छाड़ और शोषण जैसे अपराधों में तेजी आई है। छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों में दर्ज होने वाले हाईप्रोफाइल मामले इसी का सबूत  हैं। ऐसा लगता है  निर्भया से लेकर चंडीगढ़ तक के सफर में कहीं सुधार के लक्षण परिलक्षित नहीं हो रहे है।
महिलाओं पर चैतरफा हिंसा, यौन अपराध और उनसे जबरन काम करवाने के मामले में कराए गए एक सर्वे में दुनिया में भारत का अव्वल स्थान है। लंदन की एक एजेंसी द्वारा भारत को महिलाओं पर हिंसा के मामले में दुनिया में सबसे आगे बताया गया है। थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन द्वारा महिलाओं के मुद्दे पर 550 एक्सपर्ट्स का सर्वे जारी किया। थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के सर्वे में 193 देशों को शामिल किया गया था, जिनमें से महिलाओं के लिए बदतर शीर्ष 10 देशों का चयन किया गया। सर्वे में यह बात सामने आई है कि भारत महिलाओं पर अत्याचार के मामले में दुनिया का सबसे खतरनाक देश है। इसमें बताया गया है कि घरेलू काम-काज के लिए मानव तस्करी, जबरन शादी और बंधक बनाकर यौन शोषण के लिहाज से भारत खतरनाक है। सात साल पहले इसी सर्वे के मुताबिक महिलाओं के मामले में भारत दुनिया का चैथा सबसे खतरनाक देश था। सर्वे में कहा गया है कि भारत की सांस्कृतिक परंपराएं भी महिलाओं पर खासा असर डालती हैं। इसक कारण उन्हें एसिड अटैक, भ्रूण हत्या, बाल विवाह से लेकर शारीरिक शोषण भी झेलना पड़ता है।
 एक रिपोर्ट  के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के आंकड़े भयावह तस्वीर पेश करते है। लगभग 96 प्रतिशत महिलाएँ भावनात्मक हिंसा की शिकार होती है जबकि 82 प्रतिशत  शारीरिक हिंसा झेलती है। इनमें 70 प्रतिशत  महिलाओं को आर्थिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है। जबकि 15 प्रतिशत महिलायें दहेज प्रताड़ना और 42 प्रतिशत महिलाएँ यौन अत्याचारों का शिकार होती है। देश में महिला सुरक्षा को लेकर किये जा रहे तमाम दावे खोखले साबित हुए है।  महिला सुरक्षा को लेकर देशभर से रोजाना अलग-अलग खबरें सामने आती रहती हैं। देश में महिलाओं की स्थिति पर हमेशा ही सवाल खड़े होते रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के तमाम दावों और वादों के बाद भी उनकी हालत जस की तस है। हमारे देश की महिलाएं। रोज ही  दुष्कर्म, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और अत्याचार से रूबरू होती हैै। 
आजकल रोज प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कही ना कहीं से लड़कियों पर हो रहे अत्याचार की खबर दिखाई जाती रहती है परंतु इसकी रोकथाम के उपाय पर चर्चा कहीं नहीं होती है। इस तरह के अत्याचार कब रुकेंगें। क्या हम सिर्फ मूक दर्शक बन खुद की बारी का इंतजार करेंगे।  लड़कियों पर अत्याचार पहले भी हो रहे थे और आज भी हो रहे हैं अगर इसके रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किये गये । आज भी हमारे समाज में बलात्कारी सीना ताने खुले आम घूमता है और बेकसूर पीड़ित लड़की को बुरी और अपमानित नजरों से देखा जाता है । न तो समाज अपनी जिम्मेदारी का माकूल निर्वहन कर रहा है और न ही सरकार। ऐसे में बालिका कैसे अपने को सुरक्षित महसूस करेगी यह हम सब के लिए बेहद चिंता की बात है।