पर्यावरण हमारे जीवन के फेफड़े हैं                                                       

( बाल मुकुन्द ओझा)


विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस प्रति वर्ष 26 नवम्बर को पर्यावरण संतुलन बनाए रखने एवं जन सामान्य को जागरूक करने के साथ सकारात्मक कदम उठाने के लिए मनाया  जाता है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। अगर पर्यावरण न हो तो पृथ्वी में जीवन संभव नहीं होगा। बिना पर्यावरण के कोई भी जीव जंतु जीवित नहीं कर सकता। पर्यावरण का हमारे जीवन से गहरा सम्बन्ध है। वातावरण एक प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर जीवन को विकसित होने में मदद करता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है। एक देश जो अपनी मिटटी को नष्ट करता है वह खुद को नष्ट कर लेता है। जंगल हमारी भूमि के फेफड़े हैं। वे हमारी हवा को शुद्ध करते हैं और लोगों को नयी ताकत देते हैं।
पर्यावरण को लेकर आज समूचा विश्व चिन्तित है। आखिर यह पर्यावरण है क्या और इससे चिन्तित होने के कारण क्या हैं? पर्यावरण वायु, जल, मृदा, मानव और वृक्षों को लेकर बना है। इनमें से किसी भी एक तत्व का क्षरण होता है तो उसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। प्रदूषण भी पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बना हुआ है। पेड़, पौधे, जलवायु मानव जीवन को प्रभावि विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस प्रति वर्ष 26 नवम्बर को पर्यावरण संतुलन बनाए रखने एवं जन सामान्य को जागरूक करने के साथ सकारात्मक कदम उठाने के लिए मनाया  जाता है। प्रकृति ने मनुष्य को कई प्रकार की सौगात दी है जिसमें सबसे बड़ी सौगात पर्यावरण की है। अगर पर्यावरण न हो तो पृथ्वी में जीवन संभव नहीं होगा। बिना पर्यावरण के कोई भी जीव जंतु जीवित नहीं कर सकता। पर्यावरण का हमारे जीवन से गहरा सम्बन्ध है। वातावरण एक प्राकृतिक परिवेश है जो पृथ्वी पर जीवन को विकसित होने में मदद करता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है। एक देश जो अपनी मिटटी को नष्ट करता है वह खुद को नष्ट कर लेता है। जंगल हमारी भूमि के फेफड़े हैं। वे हमारी हवा को शुद्ध करते हैं और लोगों को नयी ताकत देते हैं।
पर्यावरण को लेकर आज समूचा विश्व चिन्तित है। आखिर यह पर्यावरण है क्या और इससे चिन्तित होने के कारण क्या हैं? पर्यावरण वायु, जल, मृदा, मानव और वृक्षों को लेकर बना है। इनमें से किसी भी एक तत्व का क्षरण होता है तो उसका सीधा असर पर्यावरण पर पड़ता है। प्रदूषण भी पर्यावरण के लिए खतरे की घंटी बना हुआ है। पेड़, पौधे, जलवायु मानव जीवन को प्रभावित करते हैं। किसी भी एक तल के असंतुलित होने पर पर्यावरण प्रक्रिया असहज हो जाती है जिसका सीधा असर मानव जीवन पर पड़ता है। विश्व ने जैसे-जैसे विकास और प्रगति हासिल की है वैसे-वैसे पर्यावरण असंतुलित होता गया है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां, कल-कारखाने, उससे निकलते धुंए, वाहनों से निकलने वाले धुएं, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, नदी और तालाबों का प्रदूषित होना आदि घटनाएं पर्यावरण के साथ खिलवाड़ है। हमने प्रगति की दौड़ में मिसाल कायम की है मगर पर्यावरण का कभी ध्यान नहीं रखा जिसके फलस्वरूप पेड़ पौधों से लेकर नदी तालाब और वायुमण्डल प्रदूषित हुआ है और मनुष्य का सांस लेना भी दुर्लभ हो गया है।
प्रदूषण का अर्थ है हमारे आस पास का परिवेश गन्दा होना और प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। प्रदूषण कई प्रकार का होता है जिनमें वायु, जल और ध्वनि-प्रदूषण मुख्य है। पर्यावरण के नष्ट होने और औद्योगीकरण के कारण  प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके फलस्वरूप मानव जीवन दूभर हो गया है। महानगरों में वायु प्रदूषण अधिक फैला है। वहां चैबीसों घंटे कल-कारखानों और वाहनों का विषैला धुआं इस तरह फैल गया है कि स्वस्थ वायु में सांस लेना दूभर हो गया है। यह समस्या वहां अधिक होती हैं जहां सघन आबादी होती है और वृक्षों का अभाव होता है। वायु प्रदूषण का खतरा अब घर घर मंडराने लगा है। एक ताजा सर्वे रिपोर्ट के आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले चार सालों में चार करोड़ से भी अधिक लोग तेज साँस के संक्रमण के शिकार हो रहे है। इस अवधि में 12 हजार 200 लोग वायु प्रदूषण से जूझते हुए मृत्यु को प्राप्त हुए मगर सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। देश के सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार सरकारों को चेताया मगर सरकार की कुम्भकर्णी निंद्रा भंग नहीं हुई।
एक अनुमान के अनुसार भारत में प्रदूषण के कारण हर दिन करीब 150 लोग मर जाते हैं और हजारों लोग फेफड़े और हृदय की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। इसके अलावा वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने भी पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई है। विश्व में हर साल एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक वन काटा जाता है। भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन प्रतिवर्ष काटा जा रहा है। वनों के कटने से वन्यजीव भी लुप्त होते जा रहे हैं। वनों के क्षेत्रफल के नष्ट हो जाने से रेगिस्तान के विस्तार में मदद मिल रही है। विभिन्न ग्लोबल एजेंसियों द्वारा वायु प्रदूषण के खतरे से बार बार आगाह करने के बावजूद न सरकार चेती है और न ही नागरिक। लगता है लोगों ने इस जान लेवा खतरे को गैर जरूरी मान लिया है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई ने भी पर्यावरण को बहुत अधिक क्षति पहुंचाई है। विश्व में हर साल एक करोड़ हैक्टेयर से अधिक वन काटा जाता है। भारत में 10 लाख हैक्टेयर वन प्रतिवर्ष काटा जा रहा है। वनों के कटने से वन्यजीव भी लुप्त होते जा रहे हैं। वनों के क्षेत्रफल के नष्ट हो जाने से रेगिस्तान के विस्तार में मदद मिल रही है।
मानव जीवन के लिये पर्यावरण का अनुकूल और संतुलित होना बहुत जरूरी है। यदि हमने अभी से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाला मानव जीवन अंधकारमय हो जायेगा। यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आस-पड़ौस के पर्यावरण को साफ सुथरा रखकर पर्यावरण को संरक्षित करे तभी हमारे सुखमय जीवन को भी संरक्षित रखा जा सकता है।