सिर्फ फैसले पर नहीं भाईचारा पर भी पुनर्विचार हो

( देवानंद राय)


यह क्या हो रहा है ? इतना बड़ा ऐतिहासिक फैसले के बाद कुछ लोगों को चैन नहीं है हर बार अमन-चैन की दुहाई देने वाले लोग फिर से सुप्रीम कोर्ट जाने वाले हैं कारण में कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है सच्चाई तो यह है कि शरीयत के नाम पर चलने वाले रोशनी पर पदों को अब कोई पूछता भी नहीं इस कारण बेवजह खबरों में रहने के लिए पुनर्विचार याचिका डालने जा रहे हैं यह वही लोग हैं जो कल भाईचारा फैलाने की बात करते थे और अब रायता फैलाने के चक्कर में है इस कारण अवश्य किए भी है आखिर भाईचारा फैलाने का जिम्मा पूरा देश में सिर्फ हिंदुओं ने ले रखा है क्या करीब 500 साल बाद सनातनियों के सर्वेश्वर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का फैसला आया जो भी फैसला आया हमने स्वीकार किया यहां तक कि फैसले का खुलकर जश्न नहीं मना सके पर अमन चैन बना रहे, मुल्क में शांति रहे, भाईचारा बना रहे, जैसे वन लाइनर बोलने वालों ने फैसले के कुछ समय बाद ही टीवी चैनल पर पलटकर वन लाइनर  में आग उगलना शुरू कर दिया कि पांच एकड़ नहीं चाहिए,खैरात नहीं चाहिए, वगैरह-वगैरह तब ऐसा लगा कि सोशल मीडिया पर ऑनलाइन कर्फ्यू लगाने से कहीं अधिक टेलीविजन कर्फ्यू लगाने की जरूरत है जो फैसले सब की सर्वसम्मति से हुआ है जिसे कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 5-0 से स्वीकृत किया होगा उस पर पुनर्विचार याचिका की आवश्यकता ही क्या है ? फिर भी अगर कुछ लोग अभी उस घृणित मानसिकता में जी रहे हैं कि अभी हिंदू-मुस्लिम के नाम पर अपनी दुकान चमकना और चलाना चाहते हैं तो यह जान लेना चाहिए कि अब देश से काफी आगे निकल चुका है और उनके मंसूबे कभी भी सफल नहीं होने वाले  वास्तविकता तो यह है कि फैसले के बाद इस प्रकार के लोगों का कोई अस्तित्व ही नहीं रहा है जिस हिंदू-मुस्लिम के सहारे वह कहां से कहां पहुंचे, क्या से क्या बने और अपनी राजनीतिक दुकान से लेकर धार्मिक दुकान को चमकाया आज 1045 पन्ने के फैसले ने यकायक उनका सब कुछ बदल कर रख दियायहां तक कि फैसले के मुख्य पक्षकार इकबाल भी सहमत हैं और रिव्यू की मांग नहीं कर रहे शिया वक्फ बोर्ड के रिजवी भी इसी फैसले से सहमत है पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड का पुनर्विचार याचिका दायर करना समझ से परे है माना कि लोकतांत्रिक देश में हर किसी को अपनी बात रखने का पूरा अधिकार पर उस अधिकार के द्वारा हर निर्णय निकालना कहां तक उचित है ? अब इस पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और जब वह स्थल पूरी तरह से हिंदुओं का ही है तो फिर उस पर पर्सनल बोर्ड अपना दावा कैसे कर सकता है पर्सनल ला बोर्ड मुख्य पक्षकार भी नहीं है और मुख्य मामले मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड में कोई अपील भी नहीं कि फिर भी फैसले से मुसलमान असंतुष्ट है का बहाना लेकर खुद को चर्चा में लाने का वर्तमान में यह सबसे अच्छा तरीका है बोर्ड के वर्तमान रवैया पर किसी मशहूर शायर की कुछ लाइनें याद आती है कि -


"कितनी आसानी से मशहूर किया है खुद को


मैंने अपने से बड़े शख्स को गाली देकर "








इन दिनों लोग सस्ती लोकप्रियता, फैन फॉलोइंग का पहाड़ खड़ा करने और चंद सेकंड में मशहूर होने के लिए ऐसा ही कर रहे हैं खासकर फिल्म इंडस्ट्री में तो इसका एक खास विज्ञान भी है पर्सनल लॉ बोर्ड जमीन भी नहीं लेना चाहता और उसका कहना है कि शरीयत में मस्जिद के बदले जमीन लेने का नियम नहीं तो यह भी जानना चाहिए कि कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कहीं नमाज पढ़ने से वह जगह मस्जिद नहीं हो जाती जब इतिहास, पुरातत्व, गवाह हर एक चीज ही बिंदु पर पहुंच रहा है कि यह जमीन हिंदुओं की आराध्य भगवान श्रीरामकी जन्मस्थली है तो अपनी बंद होती दुकान को बचाने के लिए इस प्रकार के उल जलूल चीजों का सहारा लिया जा रहा है आखिर किस प्रकार की मानसिकता है कि एक कौम खुद को एक आक्रमणकारी से जुड़ने और उस से पहचाने जाने के लिए बेताब है। जमीन न लेने के तर्क में कुछ लोग कह रहे हैं कि अयोध्या में पहले से ही पच्चीस मस्जिदें हैं तो उन लोगों का खबर क्या है ? जो लोग और उनके ज्ञान की बातें अब कहां है ? जो पहले कहा करते थे कि अयोध्या में मंदिर नहीं हॉस्पिटल बनाओ यूनिवर्सिटी बनाओ तो फिर 5 एकड़ पर कॉलेज बना हॉस्पिटल को किसने रोका है पर आप तो यह बातें ऐसे भूले जैसे गधे के सिर से सींग का गायब हो ऐसा लगता है कि इन लोगों ने अपने पूर्वजों की आदतें अब भी अपना रखी है कि खैरात की जमीन पर हम मस्जिद कहां बनाते हैं जब बनाते हैं लूटी हुई जमीन पर ही बनाते हैं जाने कैसे किसी लूटी हुई थी पर बनी मस्जिद को इतना महत्व देते हैं जैसे वह उनके लिए मक्का हो यह सिर्फ अपना प्रभुत्व दिखाने की सनक है और कुछ भी नहीं।फिर ऐसे लोगों पर विश्वास कैसे करें ?फैसला आने के बाद यूपी में कुछ लोगों ने सिर्फ दहशत फैलाने के लिए मस्जिद में बारूद इकट्ठा कर रखा था यह किस तरह का मानसिक दिवालियापन है वे कहेंगे हम आतंकवादी नहीं पर हर जगह उनके ही कौन के लोग इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल मिलेंगे अयोध्या किस प्रकार से बहुसंख्यक समाज में अपनी सूझबूझ परिचय देते हुए सब कुछ सामान्य बनाए रखा पर इनको चैन कहां ?ज्यादा जांच होने लगे तो कहते हैं कि हमारे देशभक्ति पर सवाल खड़े करते हैं गोया यह है कि अल्पसंख्यक कौम में भी बहुत शानदार लोग हुए हैं और अभी भी हैं और आगे भी होंगे पर वे मुट्ठी भर हैं और सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि उनका प्रभाव जितना बहुसंख्यकों पर है उतना उनके खुद के कौम पर नहीं हर वक्त खुद को खुदा माना और कट्टरता ही उनकी वर्तमान में पहचान बन चुकी है इससे बाहर निकलने की आवश्यकता है इस प्रकार के कृत्य से यही लगता है कि यह जो भाईचारा का ढोल पीटा जाता है इसमें ढोल पीटने वाला अल्पसंख्यक या लिबरल ही होता है पर वह खुद भाईचारा का पालन नहीं करना चाहता परंतु बहुसंख्यकों से पालन करवाना जरूर चाहता है खैर पुनर्विचार याचिका से ज्यादा कुछ तो नहीं होगा सिर्फ पुनः बेज्जती जरूर होगी इन लोगों की और अगर वह बेइज्जत होने का शौक रखते हैं तो हमें भी हम भी उनसे सहमत रहते हैं जिलानी जिससे जमीन मांग रहे हैं उस हक से तो उनके पास ना उनके पूर्वजों के पास जमीन नहीं बचेगी जो लोग कहा करते थे कि बीजेपी सिर्फ राम मंदिर पर राजनीति करती है उन्हें जवाब पहले ही मिल गया होगा पर जो लोग फैसले के बाद यह कहते नजर आए अब बीजेपी की धर्म वाली राजनीति बंद हो जाएगी वे अपनी आंखें खोल कर देख ले पर्सनल ला बोर्ड तो इसी के सहारे फिर से अपनी राजनीतिक दुकान की गिर रही शटर उठाने की फिराक में है इस कारण अब समय यह है कि अगर वह बार-बार पुनर्विचार पर बात करेंगे तो हम भी मथुरा काशी पर अड़े रहेंगे।अब समय आ गया है कि मुसलमान भाई नेकी और ईमान की राह पर चलते हुए मुल्क की तरक्की में साथ दें और अयोध्या मामले पर जिस प्रकार से समझदारी दिखाई वैसे ही देश के अन्य हिस्सों में जहां मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई है उन ग्यारह जगहों पर अपना दावा छोड़ दें जिनमें प्रमुख रूप से मथुरा,काशी,कुतुबमीनार परिसर में स्थित मस्जिद भी शामिल है सभी को पता है किस प्रकार की पुनर्विचार याचिका से कुछ होने वाला नहीं है पर इसकी आदत नहीं बननी चाहिए और यह समझने की भी जरूरत है कि भाईचारा का ठेका सिर्फ हिंदुओं ने नहीं ले रखा अगर  फैसले पर पुनर्विचार होता है तो समाज में एकतरफा भाईचारे पर भी पुनर्विचार होना चाहिए।