खोखले साबित हो रहे है महिला सुरक्षा के तमाम दावे

(बाल मुकुन्द ओझा)


भारत को संस्कार, संस्कृति और मर्यादा की त्रिवेणी कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में नारी अस्मिता को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता। अर्थात जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। मगर आज सब कुछ उल्टा पुल्टा हो रहा है। न नारी की पूजा हो रही है और देवताओं की जगह सर्वत्र राक्षस ही राक्षस दिखाई दे रहे है।  समाज के नजरिए में भी महिलाओं के प्रति अब तक कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है। ऐसा लगता है जैसे हमारा देश भारत धीरे-धीरे बलात्कार की महामारी से पीड़ित होता जा रहा है। यौन अपराध चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं। पिछले चार दशकों में अन्य अपराधों की तुलना में रेप की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और  दोषियों को सजा देने के मामले में हम सबसे पीछे हैं। दो साल की बच्ची से लेकर बुजुर्ग महिला तक दुष्कर्म की शिकार हो रही है। ऐसे में कानून के पालनहार कोई सख्त कदम उठाने के बजाय अपनी गलतियों को छिपाने के लिए नित नए बहाने ढूंढ रहे है। 
हैदराबाद में एक महिला पशु चिकित्सक के साथ हुए रेप और मर्डर की घटना पर पूरा देश गुस्से और सदमे में है। हर कोई इस जघन्य कांड के आरोपियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग कर रहा है। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक लोगों की नाराजगी साफ दिखाई दे रही है। देश में विरोधस्वरूप जगह जगह धरना और प्रदर्शन हो रहे है। दिल्ली के निर्भया कांड के सात साल बाद हैदराबाद में लगभग  वैसी ही दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। हैदराबाद-बेंगलुरु हाइवे पर एक महिला सरकारी डॉक्टर की अधजली लाश मिली है। मृतक 27 वर्षीय वेटनरी डॉक्टर का नाम था प्रियंका रेड्डी है जिसके साथ गैंग रेप के बादफ हत्या कर दी गई। हैवानियत की हद यह थी कि आरोपियों ने डॉक्टर की लाश को जलाकर एक फ्लाईओवर के नीचे फेंक दिया। वारदात के पहले महिला डॉक्टर रात में अपने घर लौट रही थीं, तभी उनकी बाइक पंचर हो गई थी। इसी दौरान उन्हें रात में अकेला देखकर ऐसी भयानक वारदात को अंजाम दिया गया।
आजकल रोज प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर महिलाओं के साथ दुष्कर्म और छेड़छाड़ की खबर दिखाई जाती रहती है परंतु इसकी रोकथाम के उपाय पर चर्चा कहीं नहीं होती है। इस तरह के अत्याचार कब रुकेंगें। क्या हम सिर्फ मूक दर्शक बन खुद की बारी का इंतजार करेंगे। लड़कियों पर अत्याचार पहले भी हो रहे थे और आज भी हो रहे हैं अगर इसके रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं किये गये। आज भी हमारे समाज में बलात्कारी सीना ताने खुले आम घूमता है और बेकसूर पीड़ित लड़की को बुरी और अपमानित नजरों से देखा जाता है । न तो समाज अपनी जिम्मेदारी का माकूल निर्वहन कर रहा है और न ही सरकार। ऐसे में बालिका कैसे अपने को सुरक्षित महसूस करेगी यह हम सब के लिए बेहद चिंता की बात है।
भारत में महिलाओं को देवी के सामान पूजने की परंपरा है। इसी देश में आज महिला अस्मिता के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। आए दिन छेड़छाड़, हत्या और बलात्कार जैसी आमानवीय घटनाएं होती रहती है। सिर्फ महिलाएं ही नहीं अब छोटी बच्चियां भी सुरक्षित नही है। हैवानियत का सिलसिला शुरू हो चुका है। भारत में किसी ना किसी के साथ हर 13 मिनट में बलात्कार होता है। इतना हीं नहीं, हर रोज 6 मासूम बच्ची के साथ बलात्कार किया जा रहा है। आंकड़ों की माने तो मासूमों के साथ होने वाले इस अपराध में 82 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के 2015 में 34,651, 2016 में 38,947 और 2017 में 32,559 मामले दर्ज हुए हैं। 2017 का एक और आंकड़ा अहम है। लड़कियों के साथ बलात्कार करने वालों में उनके जानने वाले 30,299, परिवार के सदस्य 3155, परिवार के मित्र या पड़ोसी या नियोक्ता या अन्य परिचित व्यक्ति 16,591, मित्र, ऑनलाइन मित्र या लिव इन पार्टनर या अलग हुए पति 10,553, पहचाने न जा सके अपराधी 2260 थे।
सच तो यह है कि एक छोटे से गांव से देश की राजधानी तक महिला सुरक्षित नहीं है। अंधेरा होते-होते महिला प्रगति और विकास की बातें छू-मंतर हो जाती हैं। रात में विचरण करना बेहद डरावना लगता है। कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित घर पहुँचने की चिंता सताने लगती है। देश में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में कमी नहीं आरही है। भारत में आए दिन महिलाएं हिंसा और अत्याचारों का शिकार हो रही हैं। घर से लेकर सड़क तक कहीं भी महिला सुरक्षित नहीं है। देश में महिला सुरक्षा को लेकर किये जा रहे तमाम दावे खोखले साबित हुए है। महिला सुरक्षा को लेकर देशभर से रोजाना अलग-अलग खबरें सामने आती रहती हैं। देश में महिलाओं की स्थिति पर हमेशा ही सवाल खड़े होते रहे हैं। महिलाओं की सुरक्षा के तमाम दावों और वादों के बाद भी उनकी हालत जस की तस है। महिलाएं रोज ही दुष्कर्म, छेड़छाड़, घरेलू हिंसा और अत्याचार से रूबरू होती हैै।