अनमोल है माँ का प्यार

(डॉ मोनिका ओझा खत्री)


कहते है दुनियां में सब के प्यार की कीमत चुकाई जा सकती है मगर माँ का प्यार अनमोल है। मां के प्यार का कर्ज चुकाया नहीं जा सकता। यही वजह है कि हर साल मई के दूसरे रविवार को दुनिया भर में मदर्स डे मनाया जाता है। इस बार मदर्स डे 10 मई को मनाया जायेगा। साल का एक दिन सिर्फ मां के नाम होता है, जिसे मदर्स डे के नाम से हम जानते है। मां को सम्मान देने वाले इस दिन को कई देशों में अलग-अलग तारीख पर सेलिब्रेट किया जाता है। लेकिन भारत समेत ज्यादातर देशों में मई के दूसरे रविवार को ही मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है। 
भारत की संस्कृति में माता को पूजनीय माना जाता है। मां को खुशिया और मान सम्मान देने के लिए पूरी जिंदगी भी कम होती है। फिर भी विश्व में मां के सम्मान में मातृ दिवस मनाया जाता है। स्नेह, त्याग, उदारता और सहनशीलता के कितने प्रतिमान गढ़ती है माँ, इसे कौन देखता है। उसका वात्सल्य अपने बच्चों के लिए कितनी बार आंसू बहता है। यह वह दिन है जब हम अपनी मां के आभारी होते है जिसने हमें इतना कुछ दिया है और अभी भी हमारे लिये बहुत कुछ कर रही है। मां अपने बच्चों के लिये एक सुरक्षा के आवरण की तरह होती है। कोई भी चोट पहले माँ को लगती है फिर बच्चे को।  सच में माँ का प्यार अँधा होता है जिसे केवल अनुभव किया जा सकता है। देखा जाता है कई लोग तो अपने वृद्ध माँ- बाप को अनाथ आश्रम में जाकर छोड़ देते है। वो ये भूल जाते है यदि माँ-बाप ने उनको इसी तरह अपेक्षित छोड़ दिया होता तो क्या होता। समय बलिहारी है। बच्चा भी देखता है उसके पिता ने अपनी माँ के साथ जो सलूक किया है वही सलूक उसके साथ भी किया जा सकता है।
आधुनिक दौर में मां को प्यार व सम्मान देने वाले इन दिन की शुरुआत अमेरिका से हुई थी। अमेरिकी एक्टिविस्ट एना जार्विस की मदर्स डे मनाए जाने का ट्रेंड शुरू करने में सबसे बड़ी भूमिका रही। एना जार्विस अपनी मां से बहुत प्यार करती थीं। उन्होंने न कभी शादी की और न कोई बच्चा था। वो हमेशा अपनी मां के साथ रहीं। वहीं, मां की मौत होने के बाद प्यार जताने के लिए उन्होंने इस दिन की शुरुआत की। 
हम मदर्स डे की औपचारिकता अवश्य निभाते है मगर वास्तविकता इससे बहुत दूर है। जब तक माँ के हाथ पैरों में जान है और गांठ में पैसे है हम माँ को प्यार करते है मगर जैसे ही ये दोनों चीजे माँ से दूर चली जाती है हमारे प्यार का पैमाना भी बदल जाता है विशेषकर माँ के वृद्धावस्था के दिनों में। उस समय हम अपने बीबी  बच्चों में घुलमिल जाते है और माँ को बेसहारा छोड़ देते है। बढ़ापा बहुत बुरा होता है। यह वही समय है जब माँ को सबसे ज्यादा प्यार की जरुरत होती है और हम माँ को दुत्कार देते है। यह समय  किसी भी माँ के लिए  बहुत दुखभरा है। वह अपने बच्चों को अपना सब कुछ लुटा कर बड़ा करती है और यही बच्चा बड़ा होकर सबसे पहले अपनी माँ को ही अलग थलग कर देता है। भारत के अधिकांश घरों की यही कहानी है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। आश्चर्य की बात है की आज की  पढ़ी लिखी युवा पीढ़ी अपने वृद्ध माता-पिता का सम्मान नही करती है। वृद्ध हो जाने पर संताने अपनी संतानों को तो बहुत प्यार दुलार करती है, पर वृद्ध माता-पिता अपेक्षित  महसूस करते है।
रिसर्च एंड एडवोकेसी सेंटर ऑफ एजवेल फाउंडेशन के एक सर्वेक्षण में खुलासा हुआ कि हमारी युवा पीढ़ी न केवल वरिष्ठजनों के प्रति लापरवाह है, बल्कि उनकी समस्याओं के प्रति जागरूक भी नहीं है। वह पड़ोस के बुजुर्गों के सम्मान में तो तत्पर दिखती है लेकिन अपने घर के बुजुर्गों की उपेक्षा करती है, उन्हें नजरअंदाज करती है। सर्वेक्षण के अनुसार 59.3 फीसद लोगों का मानना है कि समाज व घर में बुजुर्गों के साथ व्यवहार में विरोधाभास है। केवल 14 फीसद का मानना है कि घर-बाहर, दोनों जगह बुजुर्गों की हालत में कोई अंतर नहीं है जबकि 25 फीसद मानते हैं कि घर में बुजुर्गों का सम्मान खत्म हो गया है। इन्हीं बुजुर्गों में हमारी माँ भी शामिल है जिसे बुजुर्ग होते ही हम घर का भार समझने लगते है मगर यह भूल जाते है इस वृद्ध माँ ने कैसे हमें पाल पोस कर बड़ा किया है और आज समाज में सामान के साथ खड़ा किया है। अब हमारी बारी है की हम अपनी माँ को सम्मान और प्यार दे जिससे वह अपनी बची जिंदगी हंसी खुशी से व्यतीत कर सके।