कोरोना से जुझती सरकारों के बीच महामारी अध्यादेश एक सकारात्मक पहल


(डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा)

कोरोना महामारी ने जहां एक और समूची दुनिया को हिला कर रख दिया है वहीं इस तरह की महामारियों से निपटने के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अध्यादेश लाकर सकारात्मक पहल की है। कोरोना महामारी ने सारी दुनिया में लाखों लोगों को अपने आगोश में ले चुकी है। अमीर-गरीब ही नहीं अपने आपको दुनिया में श्रेष्ट मानने वाले देश अधिक प्रभावित हुए है। चीन से चला यह वायरस बिना किसी भेदभाव के सारी दुनिया को चपेटे में ले चुका है। दरअसल कोरोना निर्जीव होने के बावजूद सजीवों को जिस तरह से प्रभावित कर रहा है और बचाव ही एकमात्र उपाय होने के कारण दुनिया के अधिकांश देश लॉक डाउन के दौर से गुजर रहे हैं। देश में लांॅकडाउन का तीसरा चरण चार मई से आरंभ हो रहा है। देश के सभी जिलों को तीन जोन ग्रीन, ओरेंज और रेड में बांटकर तीसरे चरण के लॉकडाउन को लागू किया जा रहा है। हमारे यहां ही नहीं दुनिया के सभी देशों के सामने दोहरी समस्या है। एक तरफ कोरोना के प्रवाह को सीमित करने यानी की लोगों को कोरोना संक्रमित होने से रोका जाए, जो संक्रमित है उनके जीवन की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास किए जाए और तीसरी और एक अन्य दृष्टि से महत्वपूर्ण हो जाता है अर्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए। लॉकडाउन के कारण सभी नागरिक घरों की चारदीवारी में कैद है। उद्योग धंधे ही नही सब कुछ थम के रह गया है। ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि जन जीवन को सामान्य लाया जाए और इससे भी ज्यादा जरुरी हो जाता है कि कोरोना से लोग प्रभावित ना हो। लोगों का जीवन बचाना सबसे महत्वपूर्ण हो गया है।
आज देश-दुनिया के सामने चुनौती आने वाले समय की है। जब सबकुछ सामान्य होने लगेगा तब यानी की लॉक डाउन हटते ही व्यवस्था अव्यवस्था का रुप ना ले ले और कहीं इतने दिनों की तपस्या का फल निष्फल ना हो जाए। इसी को ध्यान में रखते हुए राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान महामारी अध्यादेश लाकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दूरगामी सोच का परिचय दिया है।
दरअसल कोरोना से बचाव के लिए जो सावधानियां आज बरती जा रही है वह लंबें समय तक बरती जानी जरुरी है। सोशल डिस्टेंस, मास्क का उपयोग, बाजार में खरीदारी के समय आवश्यक सावधानियां बरतने और सामाजिक-धार्मिक-राजनीतिक या इसी तरह के आयोजनों को एक प्रोटोकाल के तहत ही आयोजन की आवश्यकता होगी। कोरोना के जो अब नए मामलें आ रहे हैं व किराणा की दुकान से खरीदारी, ठेलों से सब्जियां खरीदने या अन्य किसी तरह से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के आ रहे हैं। इन सब के लिए सख्ती और सख्त कानूनी प्रावधान इसलिए जरुरी हो जाते हैं कि अभी देश दुनिया को पटरी पर लाने मं लंबा समय लगना है। यही कारण है कि राजस्थान सरकार ने नए अध्यादेश के माध्यम से सजा के प्रावधानों को भी बढ़ाया है। अब कानून तोड़ने वालोें का 10 हजार तक का जुर्माना व दो साल तक की सजा का प्रावधान किया गया है। पहले छह माह की सजा और एक हजार का जुर्माना ही था। वैसे भी कोरोना ने परिस्थियां बदल कर रख दी है। नए अध्यादेश में खासतौर से सुरक्षा प्रोटोकाल की पालना पर ही जोर है। इसमें मॉस्क नहीं पहनने, व्यापारियों द्वारा बिना मास्क के ग्राहकों से व्यवहार करने, खुले में पान, गुटखा, तंबाकू आदि थूखने, सार्वजनिक स्थान पर शराब पीने आदि के साथ यहां तक कि सार्वजनिक स्थान पर छह फीट की दूरी नहीं रखने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है। बिना अनुमति के विवाह आदि सामाजिक समारोह या अन्य भीड़ वाले कार्यक्रम आयोजित करने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है। सवाल सजा के कम अधिक होने का नहीं है अपितु कोरोना के संक्रमण से लोगों को बचाने का है।
असलियत में कोरोना महाशय की खास बात यह है कि वे अति मिलनसार है। जरा से संपर्क से सामने वाले को अपने आगोश में ले सकते हैं। ऐसे मेें सोशल डिस्टेंस सबसे ज्यादा जरुरी हो जाता है। वाहनों की रेलमपेल, सार्वजनिक स्थानों पर मनमानी और दिखावे के आयोजन ना जाने कितनों केा अपने लपेटे में ले सकते हैं। इस मायने से राजस्थान सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर लोगों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी गंभीरता प्रकट कर दी है। पुराने कानूनोें में पुलिस को नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के साथ ही दूसरे एक्टों का सहारा भी लेना पड़ता था। अब इस अध्यादेश से अनुशासन कायम करना अधिक आसान हो जाएगा। पुराने कानून राजस्थान संक्रामक रोग अधिनियम 1957 में कोविड जैसी महामारी से निवटने के उपाय ही नहीं थे। इसके अलावा इस तरह की बीमारी दुनिया में पहली बार आई है। कोरोना महामारी से स्टे होम स्टे सेफ का कंस्पेट काम कर रहा है। ऐसे में नए कानून की आवश्यकता हो जाती है। नया कानून बनाने का यह अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि सरकार दण्डात्मकता में विश्वास रखती है अपितु इससे संदेश यही ह्रै कि हमें प्रोटोकाल की पालना करनी चाहिए। एक जरा सी चूक दावानल का रुप ले सकती है। यह आज सारी दुनिया प्रत्यक्ष देख रही है। इसलिए देश के अन्य प्रदेशों को भी इस तरह के अध्यादेश लाने की पहल करनी चाहिए क्योंकि यह समस्या केवल राजस्थान की नहीं सभी प्रदेशों और समूचे विश्व की है।
दरअसल कोरोना ने सार्वजनिकता को तहस नहस कर निजता का संदेश दिया है। हाथ मिलाना तो दूर एक दूरी बनाए रखना आवश्यक हो गया है। सेनेटाइजर और हैण्डवास आज घर की पहली जरुरत हो गई है तो कुछ दशकों पहले की तरह अब लोग घरेलू उपयोग का सामान कम से कम दो तीन माह का संग्रहित करने में विश्वास करेंगे। पार्टी-सार्टी तो दूर की बात हो गई है। कोरोना का अनुभव और भयावहता को देखते हुए इस तरह के कानून जरुरी हो जाता है। राजस्थान सरकार की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए और अन्य प्रदेशांें को भी नियामक कानून बनाने की अविलंब पहल करनी चाहिए।