कोरोना से खुदरा व्यापार चौपट 

(बाल मुकुन्द ओझा)


कोरोना ने समाज के सभी अंगों को अपनी गिरफ्त में लेकर बर्बाद करने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। इनमें एक वर्ग देश के लघु और छोटे उद्योगों का है जिन्हें हम खुदरा व्यापार के रूप में भी जानते है। लोक डाउन का लम्बा अरसा निकलने के बाद देश का खुदरा व्यापार लगभग चैपट हो गया है और अर्थव्यवस्था रसातल में चली गयी है। 
24 मार्च को देश में लॉकडाउन लागू करने से लेकर 30 अप्रैल 2020 तक भारतीय खुदरा व्यापार को लगभग 5.50 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। व्यापार न होने से कम से कम 20 फीसदी व्यापारियों और उन पर निर्भर लगभग 10 फीसदी अन्य व्यापारियों के अपना व्यापार बंद करने की संभावना है। यह बात कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने कही है । लॉकडाउन ने भारतीय खुदरा विक्रेताओं के अगले कुछ महीनों के कारोबार को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया है। भारतीय रिटेलर्स लगभग 15,000 करोड़ का दैनिक कारोबार करते हैं और देश में 45 दिनों से अधिक समय से तालाबंदी चल रही है।  इसका मतलब है कि देश के 7 करोड़ व्यापारियो के कारोबार को 5.50 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भारी नुकसान हुआ है।  इन 7 करोड़ व्यापारियों में से लगभग 1.5 करोड़ व्यापारियों को कुछ महीनों में ही अपने व्यापार को स्थायी रूप से बंद करना होगा। लगभग 75 लाख ऐसे व्यापारी जो इन 1.5 करोड़ व्यापारियों पर निर्भर हैं, उन्हें भी अपना व्यापार बंद करने पर मजबूर होना पड़ेगा। भारत में कम से कम 2.5 करोड़ व्यापारी बेहद सूक्ष्म और छोटे हैं, जिनके पास इस गंभीर आर्थिक तबाही से बचने का कोई रास्ता नहीं है। उनके पास ऐसे परिदृश्य में अपने व्यापार के संचालन हेतु पर्याप्त पूंजी नहीं है। एक तरफ उन्हें वेतन, किराया, अन्य मासिक खर्चों का भुगतान करना पड़ रहा है और दूसरी ओर उन्हें उपभोक्ताओं की डिस्पोजेबल आय में तेज गिरावट का सामना करने के साथ-साथ सख्त सामाजिक दूरता मानदंडों के साथ व्यवहार करना होगा।  ये व्यापार को सामान्य स्थिति में नहीं आने देंगे और ऐसा कम से कम आगामी 6-9 महीने तक चलेगा।  भारतीय अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी के दौर से गुजर रही थी और पूरे क्षेत्र में मांग में भारी गिरावट आई थी, लेकिन इस घातक बीमारी ने भारत के रिटेल व्यापार को पूरी तरह तबाह कर दिया है। 
  खुदरा व्यापार का आरम्भ मनुष्य सभ्यता के साथ ही प्रारम्भ हुआ और तब से यह असंगठित छेत्र में ही रहा है। आज भारत में लगभग 6.5 करोड़ व्यापारी हैं जो 85 प्रतिशत  बाजार भागीदारी के साथ देश की अर्थव्यवस्था में 45 प्रतिशत योगदान करते हैं। इतना ही नहीं लगभग 40 करोड़ अकुशल श्रमिक को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार उपलब्ध कराते हैं। चाइना के बाद भारत दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। 
24 मार्च 2020 से ही खुदरा व्यापार लगभग बंद है। 24 मार्च को जनता कर्फ्यू कहीं साप्ताहिक बंदी के कारण 24 मार्च से खुदरा व्यापार बंद सा ही है। देश में 8 से 10 प्रतिशत आवश्यक वस्तुओं से जुड़े कारोबार को छोड़ दें तो 90 प्रतिशत कारोबारी पूरी तरह हाथ पर हाथ रखे घरों में बैठा है और भविष्य की चिंता इस वर्ग को दीमक की मानिंद चाट रही है। छोटे दुकानदार ,घरेलू उद्योग, थोक व्यापार, अति लघु उद्योग, लघु उद्योगों के मालिकों की स्थिति वास्तव में चिंताजनक हालत में पहुंच चुकी है। 45 दिन के लोकडाउन ने उन्हें अंदर से जर्जर कर दिया है स्वयं ही अपनी दुकान पर कर्मचारी की भूमिका निभाने निभाने वाले छोटे व्यापारियों से लेकर पांच 10 कर्मचारी का स्टाफ रखकर कार्य करने वाले बड़े थोक व्यापारी और शोरूम के मालिक तथा इस प्रकार 100 कर्मचारी तक रखकर कार्य कराने वाली अति लघु और लघु औद्योगिक इकाइयों की बड़ी चिंता यही है कि वह किस तरीके से अपने कर्मचारियों को वेतन दे पाएंगे और कब तक अपने परिवार का खर्च अपनी जमा पूंजी से उठाएंगे क्योंकि लोक डाउन हटने बाद भी व्यवसाय को पटरी पर लाने में कई माह का समय लगेगा। और इस प्रकार के व्यापारियों की संख्या गांव कस्बों से लेकर देश के बड़े शहरों में भी सर्वाधिक है। विभागीय भ्रष्टाचार की सबसे ज्यादा मार यही वर्ग झेलता आया है टैक्स देने के बाद और बारह घण्टे की ड्यूटी देने के बाद भी वृद्धावस्था में से कहीं से कोई पेंशन जैसी सहायता कभी इस वर्ग को नहीं मिलती।