लोकल,वोकल और ग्लोबल में छिपा है स्वदेशी का संदेश

(डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा)


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार रात देशवासियों के नाम अपने संबोधन में 20 लाख करोड़ का पैकेज देने की घोषणा के साथ ही लोकल, वोकल और ग्लोबल का संदेश दिया है। दरअसल अब अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाना भी सरकार के सामने बड़ी चुनौती हो गई है। कोरोना ने सबकुछ बदल के रख दिया है। देखा जाए तो आर्थिक उदारीकरण के बाद जो ग्लोबलाइजेशन और आईटी क्रांति के बाद कारोबार का जो नया ट्रेंड ऑन लाईन चला था वह तहस-नहस होकर रह गया है। यह साफ हो गया कि महामारी संकट के इस दौर में जो कुछ आपके और आपके आसपास है वही आपका सहारा है। हांलाकि यह भी हमारी अर्थव्यवस्था की खुबसूरती ही मानी जानी चाहिए कि स्थानीय स्तर पर छोटे-छोटे कुटीर उद्योग चल रहे थे या औद्योगिकरण के दौर में स्थानीय स्तर पर जो औद्योगिक क्षेत्र विकसित हुए वे स्थानीय जरुरतों खासतौर से खाद्य सामग्री की आपूर्ति में पूरी तरह से सफल रहे और यही कारण है कि इतना सब कुछ थम जाने के बावजूद देश में कही भी खाद्य सामग्री की सप्लाई चेन नहीं टूटी। दुनिया के देशों के लिए दवा की आपूर्ति करने में सफल रहे। यह अपने आप मंे बड़ी बात है।


प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में स्थानीय उत्पादों को अपनाने का संदेश देने के साथ ही उसकी आवाज बनने का यानी की उसके प्रचार-प्रसार में सहभागी बनने का संदेश दिया है। इसी तरह से अब स्थानीय उत्पाद को वैश्वीक मंच पर पहुंचाने पर जोर देकर यह साफ कर दिया है कि बदलते दौर में स्वदेशी समस्याओं का समाधान का बड़ा माध्यम है। इससे निश्चित रुप से विदेशी का मोह भी कम होगा। महात्मागांधी की 150 वीं जयंती समारोह और उसके बाद जयपुर में आयोजित ग्लोबल खादी कांफ्रेंस में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने खादी को अपनाने का संदेश दिया था। इसी तरह से ग्लोबल खादी कांफ्रेंस में ही उन्होंने दुनिया के कई देशों के प्रतिनिधियों के सामने गांधी दर्शन और गांधी जी के स्वदेशी को अपनाने का संदेश दिया, ग्रामोद्योग को अपनाने के लिए कहने के साथ ही खादी उत्पादों पर 50 प्रतिशत तक की छूट देकर एक मिसाल रखी। प्रधानमंत्री मोदी अपने संबोधन में यह बताना नहीं भूले कि पहले कार्यकाल के दौरान जिस तरह से उन्होंने खादी को ब्रॉण्ड बनाने और अपनाने का आग्रह किया तो परिणाम सकारात्मक आए। खादी ब्राण्ड बनकर उभरी और खादी को लोग अपनाने लगे।
एक बात साफ है और यह हमारे देश की संस्कृति में रचा-बसा है कि जब कोई बड़ा आदमी खासतौर से प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जनता से आग्रह करता है तो बिना किसी अगर-मगर के देशवासी उसे अपनाने में देरी नहीं करते। इसके एक नहीं अनेक उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। आज भी पुरानी पीढ़ी को याद है कि किस तरह से लाल बहादुर शास्त्री के एक आह्वान पर देश के उस पीढ़ी के नागरिकों ने सोमवार का व्रत रखना आरंभ किया। उस समय की पीढ़ी के लोगों को आज भी सोमवार का उपवास रखते हुए देखा जा सकता है। इस तरह के बहुत से उदाहरण देखने को मिल जाएंगे। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पहले कार्यकाल में सरस दूध को अपनाने के लिए एक गिलास दूध का संदेश दिया और सरस चल निकला। इसी तरह से राजस्थान के वर्तमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का खादी को अपनाने के ताजातरीन संदेश का उदाहरण देखा जा सकता है जिसकी बदौलत राजस्थान में खादी की बिक्री में बेतहासा बढ़ोतरी हुई और अक्टूबर 2019 से मार्च, 2020 तक खादी बिक्री के अब तक के इतिहास के सारे रेकार्ड टूट गए। पिछले कुछ समय से चीन के उत्पादों के प्रति लोगों का रुझान घटा है और गई दीपावली पर चीनी उत्पादों के आयात को कई कारोबारियों ने नकारा यह अपने आप में बड़ा उदाहरण है।


इस मिट्टी की यह खासियत रही है कि संकट के दौर या किसी नेता के आह्वान पर सब जुट जाते हैं। उदाहरण सामने है आज खाद्यान्नों के क्षेत्र में हम आत्म निर्भर है। मौजूदा लॉकडाउन दौर को ही देखा जाए तो अधिकांश देशवासी सितारा हॉस्पिटलों  में आईसीयू में किसी से मिलने जाते थे तो मास्क, केप व अस्पताल की चप्पल को जानते थे जो अंदर रोगी से मिल कर आते ही वार्ड के बाहर बने स्थान पर खोल कर रख दिए जाते थे या फिर किसी स्वजन का ऑपरेशन होता था तो ऑपरेशन थिएटर के बाहर रोगी का नाम पुकारते आते रेजिडेंट या अन्य चिकित्साकर्मी को हरे रंग की केप व मास्क लगाए देखते थे। संभवतः एन 95 मास्क के तो इस कोरोना वायरस ने ही हममें से अधिकांश को दर्शन कराए होंगे। ऐसे में इस आपात स्थिति में 2 लाख पीपीई या 2 लाख एन 95 मास्क बनाना अपने आप में बड़ी बात है। निश्चित रुप से देश की इस ताकत को समझना होगा। मजे की बात है कि मास्क की आवश्यकता होते ही देश के हर कोने में मास्क तैयार होने लगे और लोगों को बड़ी मात्रा में निःशुल्क मास्क उपलब्ध कराए गए।
इसके साथ ही बदलते हालातों में देश के सामने नए अवसर आए हैं। आज एक बार फिर स्थानीय उत्पादों को अपनाने और उनकी ग्लोबल पहचान बनाने की आवश्यकता है। नई परिस्थितियों में दुनिया के देशों का चीन से लगभग मोहभंग हो गया है। यह देश और देश की अर्थव्यवस्था के लिए नया अवसर है। ऐसे में स्वदेशी तकनीक के आधार पर औद्योगिकरण को नई दिशा देनी होगी। निश्चित रुप से इससे आर्थिक क्षेत्र में दूसरे देशों पर निर्भरता कम होने के साथ आत्मनिर्भरता आएगी और दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत बनने का सपना पूरा होगा।