प्रकृति का निर्माण अटल सत्य और अनिवार्य

(मंगल व्यास भारती)


प्रकृति का निर्माण-कार्य अटल और अनिवार्य है द्य मानव जीवन मे  कर्म का महत्व पूर्ण  स्थान है। यह जीवन का अपरिहार्य अंग है। प्रकृति ने अपने अटल सत्य का बोध करवाते हुए  स्वयं अपने नाम सृष्टि यानी सृजन से बतलाया हैं की वो सब कुछ मैं हूं जो अपनी शक्ति को व्यक्त करते हुए समझाया था। मैं हूं तो आकाश जल वायु अग्नि धरा हैं। इन सब पंच तत्वों से सुसोभित स्वरुप की जो साक्षात विष्णु पुराण नामक ग्रंथ का सत्य लगता हैं. वहीं माँ भगवती भुनेश्वरी दुर्गा सप्तशती में लिखा सब सटीक लगता हैं. कि साक्षात देवी की ही मन स्थिति से इस सृष्टि का निर्माण हुआ हैं।
मन की कल्पना और विचारों से ही त्रिवेदी सृजन हुआ जो इस जगत को चलाने का भार वहन करने की शक्ति नाम इन्हें दिये जो ब्रह्मा विष्णु महेश पहले जब प्रकट किया उस समय इन्हें ये भी मालूम नहीं था कि हमारा नाम विशेष कार्य क्या है. फिर नाम विशेष महत्व आदि के कार्य दिये और पुरुष प्रधान बना तीनों को अपनी शक्ति स्व् रुपा ब्रह्मणी लक्ष्मी पार्वती रुप धारण कर बतलाया।
फिरब्रह्मा ने सृष्टि का सृजन अपने हिसाब से बनाया. जहां धरती को सबसे श्रेष्ठ बनाया जहां मनुष्य भांति भांति के जीव बना कर आरभ किया इस सृष्टि की रचना और चलता रहा चलता रहा फिर जब जब धरा पर अत्याचार हुआ तो भगवान विष्णु ने ही धरा को मुक्त कराया।दानव रावण हुआ तो श्री राम ने इस धरा को मुक्त कराया।वहीं दुबारा जब कंश हुआ तो कृष्ण ने जन्म लिया उसी प्रकार जब जब धर्म की हानि हुई धरती पर तब तब त्रिदेवों के द्बारा अन्याय को मिटाया गया।इसी तरह इतिहास गवाह हैं कि इंसान जब जब अति करता रहा है.तब तब इस सृष्टि ने किसी न किसी रुप इंसान को सबक सिखाने आ ही जाता हैं।और आज इंसान को ये बताला दिया कि शक्ति उसीकि चलती हैं जो सामने हैं इन चमालीस दिनों में किस तरह देश विदेश शहर गांव गली मोहल्ले रोजगार रोटी रोजी सब कुछ धरा साही हो गए।नाम ये की कोरोना ने किया है. चीन के गांव वुहान से आया है सब कुछ सही लगता है. कि ये करा धराया चीन का पर फिर भी सोचने को मजबूर हैं। ये सब देखो गंगा नदी साफ जमुना जी साफ हो गए. यही नहीं आकाश में भी साफ सुथरा चारों तरफ जो कुछ अधुरा पन लगने लगा. वही सुंदर वातावरण लगता हैं। रही बात भगवान की तो रुप धारण कर डाक्टर नर्स पुलिस सफाई क्रमी जगह जगह खाना खाने के लिए सुविधाएं उपलब्ध कराने की मुहिम शुरू हैं ये सब उस भगवान का ही रुप हैं ऐसे कोई कहता भगवान करेगा तो करता तो वही पर अपना नाम कभी नहीं करता क्योंकि वह सभी जगह विधमान हैं।