रक्तबीज का आधुनिक अवतार है कोरोना

(डॉ राजेन्द्र प्रसाद शर्मा)


असल में हम पौराणिक तथ्यों को गल्प समझ कर उसे नजरअंदाज करने की भूल करते आए हैं। दर असल देखा जाए तो मार्कण्डेय पुराण के सावर्णिका मन्वंतर के श्री दुर्गासप्तषती के आठवें चरित्र का गंभीर व वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करेंगे तो आज के कोरोना और उस समय के रक्तबीज में बहुत कुछ साम्यता पाएंगे। माना जाता है कि देवासुर संग्राम के समय शुंभ निशुंभ के सेनापति रक्तबीज को यह वरदान प्राप्त था कि उसके शरीर की बूंद के धरती पर गिरते ही नया राक्षस उत्पन्न हो जाएगा। यही कारण रहा कि रक्तबीज का विनाष करना देवी भगवती के लिए मुष्किल भरा काम हो गया। हालात यह कि रक्तबीज को मारों तो परेषानी और नहीं मारों तो वह दे दना दन मार रहा था ऐसे में वैसे परेषानी। आख्यान के अनुसार मॉ जगदम्बा ने अपनी जीव्हा को विकराल और विषाल रुप दिया व उसके सारे रक्त को अपने मुंह में ले लिया तब जाकर रक्तबीज दैत्य का विनाष हुआ। कुछ विज्ञानी रक्त बीज की परिकल्पना को सिरे से नहीं नकार रहे हैं और यह माना जा रहा है कि उस जमाने में भी क्लोन विज्ञान इतना अधिक विकसित था कि यह रक्तबीज का क्लोन ही था जो जमीन पर गिरते ही नया आकार ले रहा था। 2015 में मेरठ के दो युवा षोधार्थियों ने इस तरह का शोध पत्र भी प्रस्तुत किया था जिसमें क्लोन से यह संभव माना जा रहा था। उस समय चर्चा यह भी थी कि इस शोध को अमेरिका के इनोवेटिव जर्नल ऑफ मेडिकल सांइस में प्रकाषनार्थ स्वीकारा गया था। खैर यह अलग बात हुई। आधुनिक विज्ञानी जिस तरह से क्लोन विकसित करने की बात कर रहे हैं और जिस तरह से क्लोन तैयार किए गए हैं उससे यहां तक तो पहुंचा जा रहा है कि रक्तबीज की परिकल्पना को सिरे से नकारा नहीं जा सकता।
मुददे की बात यह है कि आज कोरोना के जो जो सिमटंस मिल रहे हैं वह लगभग वही है जो रक्तबीज के चरित्र में वर्णित किए गए हैं। कोरोना का संक्रमण जिस तरह से संपर्क के माध्यम से हो रहा है और जिस तरह से सारी दुनिया में तेजी से विस्तारित होकर लोगों को संक्रमित कर मौत के आगोष में ले रहा है वह समूची दुनिया के लिए चिंतनीय हो गया है। आज कोरोना से सारी दुनिया बुरी तरह प्रभावित हो रही है। सोषल डिस्टेंस और अलग.थलग होना ही जिसके संक्रमण से बचने का एकमात्र उपाय माना जा रहा है। मॉस्क और सेनेटाइजर का प्रयोग अनिवार्य माना जा रहा है। और लॉकडाउन वह भी पूरी सख्ती से एकमात्र विकल्प के रुप में स्वीकारा जा रहा है। दुनिया घरों मंे सिमट के रह गई है इस रक्जबीज रुपी कोरोना के कारण। मजे की बात यह है कि जिस तरह से रक्तबीज के रक्त की बूंद ही भूमि के संपर्क मात्र से दैत्य के रुप में नया आकार ले रही थी ठीक वैसे ही निर्जीव कोरोना सजीवों को संपर्क मात्र से संक्रमित कर रहा है। 7 मई तक के आंकड़ों को देखा जाए तो दुनिया में 38 लाख 62 हजार लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके है और 2 लाख 67 हजार लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। अमेरिका जैसा दिग्गज देष में 12 लाख 69 हजार लोग संक्रमित हो चुके है और 75 हजार से अधिक लोग संक्रमण से मर चुके हैं। हमारे देष मंे ही 56हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1808 लोग मर चुके हैं। कोरोना के कारण कितनी त्रासद स्थिति हो गई है कि अपनों के दाह संस्कार तो दूर अंतिम दर्षन तक मुष्किल होता जा रहा है।
रक्तबीज के कारण जिस तरह से सारी दुनिया में हाहाकार मच गया था और युद्ध भूमि के अतिरिक्त अन्य लोग यहां वहां छुपने लगे थे वैसे ही आज कोरोना वारियर्स ही मैदान मंे उटे हुए हैं। स्टे सेफ.स्टे होम का स्लोगन ही आज जीवनदायी बन रहा है। प्रष्न यह है कि हमें हमारी पुराणों या एतिहासिक ग्रंथों को कपोल कल्पना मानकर सिरे से नहीं नकारना चाहिए। रक्तबीज के रक्त से नए दैत्य की उत्पत्ती को पूरी तरह से धार्मिक गल्प के रुप में देखा जाता रहा है। धर्म और पुराण के नाम पर नकारा जाता रहा है। पर देखना यह है कि इस तरह की परिकल्पना या मिथक केवल हवा में नहीं हो सकता। इसे हवा इवाई कहकर नकारा भी नहीं जा सकता। जब आज वैज्ञानिक क्लोन की बात करते हैं या कोरोना महामारी से साक्षात हो रहा है तब लगता है कि माइथोलॉजी में जो मिथक मिलते हैं उनके पीछे कोई कोई लॉजिक अवष्य रहा होगा क्योंकि आज कोरोना के माध्यम से आज यह साफ होता जा रहा है। ऐसे मंे माइथोलॉजी को सिरे से नकारा नहीं जा सकता। मिथकों की परिकल्पना को कल्पना मात्र नहीं माना जा सकता। हमें सोचना व समझना होगा कि कहीं ना कहीं इसके पीछे कोई लॉजिक अवष्य रहा होगा। कोरोना ने आज सबकुछ थाम के रख दिया है। इस तरह की महामारी और लॉकडाउन जैसी स्थितियांे से हमारी पीढ़ी पहली बार साक्षात हो रही है। हमारे कोरोना वारियर्स चिकित्सकए मेडिकलर्मीए पुलिसए प्रषासन पूरे जी जान से जुटा हुआ है ऐसे में सरकार की एडवाइजरी और स्वास्थ्य प्रोटोकाल की पालना सभी नागरिकों का दायित्व हो जाता है।